डीएनए हिंदी: Significance and Meaning of Swastik- हम हर शुभ कार्य के दौरान सबसे पहले स्वास्तिक बनाते हैं, लेकिन बहुत कम लोग ऐसे हैं जिन्हें इसके महत्व के बारे में पता है,भले ही इसका धार्मिक महत्व है लेकिन इसका हमारे जीवन के साथ क्या जुड़ाव है इसके बारे में आज जानते हैं. गणेश और लक्ष्मी पूजन के दौरान ये अधिकतर बनाया जाता है, घर के मुख्य द्वार पर या फिर कोई मंगल कार्य़ शुरू होने से पहले ये बनाया जाता है. 

लक्ष्मी का आह्वान और स्वास्तिक बनाने का अर्थ क्या है?

स्वास्तिक अर्थात स्व का अस्तित्व, मुझ आत्मा का अस्तित्व अर्थात मेरी पहचान क्या है तो स्वास्तिक का चित्र हम एक बार अगर मन में खींचे तो देखेंगे कि चार भाग बनते हैं, ये जो चार भाग हैं ये मुझ आत्मा की ज्योति को दर्शाते हैं कि मैं आत्मा पहले क्या थी, फिर क्या बनी और अब आज क्या हूं और मुझे फिर कहां जाना है. अतः स्वास्तिक हमारी पहचान और यात्रा को समझाता है. स्वास्तिक में चार भाग दिखाते हैं, पहले भाग का हाथ हॉरिजॉन्टल होता है, जिसका अर्थ है हाथ सीधा होता है, दूसरे भाग में हाथ को वर्टिकली नीचे की ओर चला जाता है, तीसरे भाग में हाथ हॉरिजॉन्टल हो जाता है और चौथे भाग में हाथ ऊपर की ओर चला जाता है. अगर हम मन में स्वास्तिका का चित्र खींचे, अर्थात हाथ पहले ऐसे, ऐसे, ऐसे और फिर ऐसे. यह सृष्टि का चक्र है  कि मैं आत्मा सबसे पहले जब इस सृष्टि पर आती हूं तो मैं सतयुगी आत्मा हूं. सृष्टि के उस समय को स्वर्ग, जन्नत, पैराडाइस, हेवन अथवा सतयुग कहते हैं.

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सतयुग में आत्मा ऐसे थी - दुआएं देने वाली यानी सबको देने वाली आत्मा। तो स्वास्तिका का पहला भाग हाथ ऐसा है, हम सब देने वाले हैं. दूसरा भाग मैं आत्मा त्रेतायुग में पहुंची,जहां देने की शक्ति थोड़ी-2 घटनी शुरू हो गई. हाथ नीचे हो गया. जैसे-2 आत्मा की शक्ति और देने की शक्ति कम होने लगती है, आत्मा मांगना शुरू कर देती है. अतः उस समय मैं आत्मा भूल जाती हूँ कि मैं आत्मा पवित्र आत्मा हूँ. मैं महसूस करती हूँ कि मुझे व्यक्तियों, वस्तुओं और परिस्थितियों से माँगने की आवश्यकता है. और जब हम मांगना शुरू करते हैं, वो है सृष्टि का तीसरा युग - द्वापर युग, जहां हाथ ऐसे हो जाते हैं (मांगना या चाहना रखना). अतः जब हम मांगना शुरू कर देते हैं और मांगते मांगते भी जब मिलता नहीं है, हमारी शक्ति और घट जाती है और हम चौथे युग में पहुंच जाते हैं, जो है कलयुग. उस समय हमारा हाथ ऐसे हो जाता है, अर्थात हम एक दूसरे पर हाथ भी उठाना शुरू कर देते हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि  इस कलयुग के भाग के बाद कौनसा भाग आ रहा है, इस कलयुग के बाद वापिस सतयुग आ रहा है.

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सृष्टि का सबसे महत्वपूर्ण समय चल रहा है, जहां सृष्टि पर सिर्फ कलयुग नहीं है, घोर कलयुग है, मतलब घोर रात्रि। लेकिन उस रात्रि के बाद तो सवेरा आना है. अतः हम सबको मिलकर के इस सृष्टि का परिवर्तन करना है. सिर्फ नया साल नहीं आना है, इस सृष्टि पर नया युग आना है. वो नया युग हम सबको मिलकर लाना है, हाथ नीचे की ओर नहीं, हाथ सदा देने वाला हो, मन और बुद्धि जैसा कि सतयुग में है.

अब प्रश्न उठता है, सतयुग कैसे आएगा? हम सबको मिलकर लाना है. अतः हमारे हाथ सदा देने वाले हों, मन बुद्धि से सदा सबको दे रहे हैं. हमारे संस्कार बदल जाएंगे, मांगने के संस्कार ख़त्म हो जायेंगे, नाराज़, दुखी, आहत (हर्ट) होने के संस्कार ख़त्म हो जायेंगे क्योंकि हमें किसी से कोई इच्छा ही नहीं है, किसी से हमें कुछ नहीं चाहिए तो देने वाला हाथ जब बन जाता है तो श्री गणेश और श्री लक्ष्मी का आह्वान होता है. श्रीलक्ष्मी अर्थात दिव्यता, पवित्रता का प्रतीक. लक्ष्मी का अर्थ है मन का लक्ष्य माना हमारे जीवन का उद्देश्य, कई बार हम कहते हैं कि मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? हमारे जीवन का उद्देश्य देना है. जो भी कर्म कर रहे हैं, चाहे घर को संभाल कर रहे हैं, परिवार को संभाल रहे हैं, काम कर रहे हैं. हर कार्य में जीवन का उद्देश्य पूरा होना चाहिए, जिसका अर्थ है, हम हर कर्म करते हुए सबको देते रहें. जब देते रहेंगे तो हम सदा संतुष्ट रहेंगे। हमने सोचा था कि जब हमें मिलेगा, तब हम संतुष्ट होंगे। हमने कितना प्राप्त कर लिया है.

हमें हमारे घर में और हमारे करियर्स में भी चेक करना है. लेकिन सब कुछ पाने के बाद भी कहते हैं, "पता नहीं, अंदर खाली-खाली क्यों है?"  "मैं हमेशा खुश महसूस क्यों नहीं करता हूँ?"  "मैं संतुष्ट क्यों नहीं हूं?" ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम चाहिए की तरफ वाली पंक्ति में खड़े हैं. संतुष्ट और सदा खुश वही आत्मा होगी, जो देने की तरफ कड़ी है. लक्ष्मी अर्थात  मेरे जीवन का और मन का लक्ष्य है - सदा देते रहना है,  अतः दिव्यता का आह्वान करें, श्री लक्ष्मी का आह्वान करें, तो हमारे जीवन ही नहीं, सृष्टि में भी खुशहाली, पवित्रत और शान्ति सब आ जायेंगे. अतः हमें स्वास्तिका को सदा याद रखना चाहिए, इसलिए हर कार्य की शुरुआत स्वास्तिका को चित्रित करके करते हैं, जिसका अर्थ यह समझना है कि मुझ आत्मा की पहचान क्या है.

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मैं देने वाली आत्मा हूं, मैं कलयुग में नहीं हूं, सतयुग को लाने वाली आत्मा हूं. जब हम उस अस्तित्व में स्थित होकर हरेक कार्य करेंगे, तो हर कार्य शुभ होगा। जीवन में श्री लक्ष्मी जी का आह्वान होगा, सृष्टि पर नया स्वर्ग आएगा। तो नव वर्ष में सिर्फ नए साल की मुबारक नहीं देनी है, नए जीवन की और  आने वाले युग की. अब प्रश्न उठता है वो सतयुग कब शुरू होगा? यह सतयुग हमारे लिए अब आरम्भ हो ता है. क्योंकि सतयुग हमारे मन में है. जब-जब हम दूसरों को देने के सतयुगी संस्कारों को व्यवहार में लाते हैं, हमारा जीवन सतयुगी है. जब हम माँगने लगते हैं, हमारा जीवन कलेह, कलेश वाला कलयुगी बन जाता है.  अतः मेरे लिए सतयुग अभी आरम्भ होता है, क्योंकि मैं आत्मा देने वाली सतयुगी आत्मा हूं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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Swastik spiritual significance meaning of swastik in life brahmakumaris ganesh lakshmi puja
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क्या है स्वास्तिक बनाने का अर्थ, मनुष्य के अस्तित्व को दर्शाता है ये
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Swastik Spiritual Significance: क्या है स्वास्तिक बनाने का अर्थ, मनुष्य के अस्तित्व को दर्शाता है ये