डीएनए हिंदीः दुनिया में प्यार और समर्पण का अगर सबसे बड़ा कई नाम है तो भगवान श्रीकृष्ण उनमें सबसे ऊपर हैं. जिस गंगा जमुनी सभ्यता की मिसाल दी जाती है उसे श्रीकृष्ण की भक्ति (Krishna bhakti) ने नए आयाम दिए हैं. ये श्रीकृष्ण की भक्ति ही थी जिसने कभी धर्म और जात का बंधन नहीं देखा. हिंदी से लेकर उर्दू शायरों ने श्रीकृष्ण का इतिहास में जो वर्णन किया है उसे भक्त आज भी गुनगुनाते हैं. 14वीं शताब्दी के आसपास तो मुस्लिम कवियों में श्रीकृष्ण की भक्ति पूरे चरम पर थी. उन्होंने कृष्ण का ऐसा वर्णन किया जिसे शायद हिंदी भाषी कवि भी ना कर पाएं. आज हम ऐसे ही महान मुस्लिम कवियों के बारे में बातें करेंगे जिन्हें सारी दुनिया कृष्ण भक्त के नाम से जानती है...
भक्ति और सूफ़ीवाद का रिश्ता
श्रीकृष्ण की भक्ति के बारे में बात करने से पहले आपको इतिहास में सूफीवाद की शुरुआत की जानकारी पहले बता देते हैं. दरअसल 14वीं सदी के आसपास सूफीवाद की शुरुआत मानी जाती है. सूफावाद को प्रेम और आत्मा की आवाज कहा जाता है. सूफी कवियों ने कृष्ण भक्ति की शुरुआत यहीं से की. सूफ़ी कवि वास्तव में प्रेमी कवि थे और इनकी कविताओं में रहस्यवाद मुख्य था. आध्यात्मिक प्रेम को इन कवियों ने अलग रूप में पहचान दी.
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रहीम की कृष्ण भक्ति
भगवान कृष्ण की भक्ति में डूबने वाले कवियों में रहीम का नाम कर कोई जानता है. रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम खानखाना था. उन्होंने भगवान कृष्ण के मन को मोहने वाले रूप का गुणगान करते हुए रहीम खानखाना कहते हैं कि –
जिहि रहीम मन आपनो , कीन्हों चारु चकोर। निसि-वासर लाग्यो रहे ‘कृष्ण’ चन्द्र की ओर ।।
कान्हा की भक्ति में डूबकर रहीम कहते हैं –
मोहन छबि नैनन बसी, पर-छबि कहां समाय। रहिमन भरी सराय लखि आप पथिक फिरि जाय।।
अमीर खुसरो की कृष्ण भक्ति
हजरत निजामुद्दीन औलिया के सबसे चहेते शागिर्दों में से एक माने गए हैं अमीर खुसरो. कहा जाता है कि एक दिन औलिया के सपने में कृष्ण ने दर्शन दिए थे और उसके बाद औलिया ने खुसरो से कृष्ण के लिए कुछ रचने को कहा था. अमीर खुसरों ने भी भगवान कृष्ण की महिमा का गुणगान कुछ ऐसा किया, जो आज तक लोगों की जुबां पर कायम है.
अमीर खुसरो की इस रचना ने रचा इतिहास
‘छाप तिलक सब छीन ली रे मोसे नैना मिलाइ के’
‘…ऐ री सखी मैं जो गई थी पनिया भरन को, छीन झपट मोरी मटकी पटकी मोसे नैना मिलाईके…’
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सैयद इब्राहिम उर्फ रसखान
भगवान कृष्ण के परम भक्तों में रसखान का नाम भी शामिल है. उनका असली नाम सैयद इब्राहिम था. ये श्रीकृष्ण के प्रति उनका समर्पण ही थी कि उन्होंने अपना नाम रसखान रख लिया. कहा जाता है कि रसखान ने भागवत का अनुवाद फारसी में किया था. दरअसल रसखान ने दिल्ली की उठापटक से खिन्न होकर वृंदावन और मथुरा को ही अपना घर इसलिए बना लिया. उन्हें कृष्ण प्रेम में गिरफ्तार भी किया गया. मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गांव के ग्वारन, रसखान की ही देन है.
नजीर अकबराबादी को कहा जाता था दूसरा रसखान
नजीर अकबराबादी का कृष्ण प्रेम मिसाल के तौर पर दर्ज दिखता है. राधा के साथ मीरा के कृष्ण प्रेम की जिस तरह तुलना की जाती है, वैसे ही नज़ीर के कृष्ण काव्य की तुलना रसखान से किए जाने की गुंजाइशें निकाली जाती हैं. उनकी एक प्रसिद्ध कृष्ण प्रेम है.
तू सबका ख़ुदा, सब तुझ पे फ़िदा, अल्ला हो ग़नी, अल्ला हो ग़नी
है कृष्ण कन्हैया, नंद लला, अल्ला हो ग़नी, अल्ला हो ग़नी
तालिब है तेरी रहमत का, बन्दए नाचीज़ नज़ीर तेरा
तू बहरे करम है नंदलला, ऐ सल्ले अला, अल्ला हो ग़नी, अल्ला हो ग़नी
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नवाब वाजिद अली शाह ने अपना नाम रखा ‘कन्हैया’
कृष्ण की भक्ति ने कई मुस्मलिम शासकों को भी अपना बना लिया था. फैजाबाद का प्रेम भगवान राम के प्रति जगजाहिर है. वहां से लखनऊ आकर बसे नवाबों के आखिरी वारिस वाजिद अली शाह कृष्ण के दीवाने थे. कहा जाता है कि 1843 में वाजिद अली शाह ने राधा-कृष्ण पर एक नाटक करवाया था. वाजिद अली शाह कृष्ण के जीवन से बेहद प्रभावित थे. वाजिद के कई नामों में से एक ‘कन्हैया’ भी था.
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रहीम से लेकर रसखान तक... इन मुस्लिम कवियों को भी रहा श्रीकृष्ण से प्रेम, ऐसे किया गुणगान