डीएनए हिन्दी: ज्येष्ठ मास की अमावस्या की तिथि को प्रत्येक वर्ष सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्री व्रत ( Vat Savitri Vrat Katha ) रखती है. साथ ही उनकी और अपने परिवार की सुख समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करती हैं. इस वर्ष यह व्रत 30 मई को है. हिन्दू पंचांग के अनुसार अमावस्या तिथि 29 मई, रविवार को दोपहर 2 बजकर 54 मिनट पर शुरू हो रही है. इसका समापन अगले दिन यानि 30 मई सोमवार को शाम 4 बजकर 59 मिनट पर होगा. अब क्योंकि सूर्योदय 30 मई को होगा और प्रातः 7 बजकर 12 मिनट पर सर्वार्थ सिद्धि योग की शुरुआत होगी तो वट सावित्री व्रत 2022 ( Vat Savitri Vrat 2022 ) 30 मई को ही रखा जाएगा. साथ ही इस दिन व्रत रखने से और वट सावित्री की कथा सुनने से पुण्य की प्राप्ती भी होगी. आइए जानते हैं क्या है वट सावित्री व्रत कथा.
महर्षि नारद ने की थी यह भविष्यवाणी
एक बार मद्रदेश में महान प्रतापी और धर्मात्मा राजा अश्वपति राज करते थे, उनकी संतान नहीं थी. राजा ने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ का आयोजन किया. कुछ समय बाद ही उनके घर कन्या का जन्म हुआ, उनका नाम सावित्री रखा गया. समय के साथ-साथ कन्या की उम्र में भी बढ़ोतरी होने लगी. उसकी शादी के लिए वर खोजने का आदेश दिया गया. सावित्री ने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पति के रूप में स्वीकार किया.
जब महर्षि नारद को जब इस बात की भनक लगी तो वे राजा अश्वपति पहुंचे और बोले कि आपकी कन्या से बड़ी भारी भूल हुई है. उसका वर भले ही लाखों में एक है, परंतु वह अल्पायु है. एक वर्ष के अंदर ही सत्यवान की मृत्यु हो जाएगी. जब राजा ने नारद जी की बात सुनी तो वह उदास हो गए और पुत्री से कोई अन्य वर चुन लेने के लिए कहा. लेकिन सावित्री ने ऐसा करने से मना कर दिया और अपने फैसले पर दृढ़ रही. अंत में हार मानकर राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री का विवाह विधि-विधान से सत्यवान से करा दिया.
यमराज आए सत्यवान को लेने
सत्यवान वन में रहता था और सावित्री भी वहीं रहकर अपने सास-ससुर की सेवा में लगी रही. अपने पति पर नारद जी द्वारा की भविष्यवाणी का दिन नजदीक आता देख सत्यवती ने व्रत रखना शुरू कर दिया. सावित्री के पति की मृत्यु का जो दिन नारद जी ने बताया था, वह दिन भी आ गया. सत्यवान लकड़ी काटने के लिए वन में निकल पड़ा, सावित्री भी उसके साथ वन में चली गई. पेड़ पर चढ़ते समय सत्यवान के सिर में तेज पीड़ा उठने लगी और वह सावित्री की गोद में अपना सिर रखकर लेट गया.
थोड़ी देर बाद अनेक दूतों के साथ यमराज खड़े हो गए और सत्यवान अंगुष्ठ प्रमाण जीव को लेकर चल पड़े. सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी. सावित्री को देखकर यमराज बोले 'तुमने अपने पति का साथ वहां तक दे दिया है जहां तक मनुष्य-मनुष्य का साथ देता है, अब वापस लौट जाओ.' यह सुनकर सावित्री निडरता से बोली मेरे पति जहां तक जाएंगे, मुझे भी वहां तक जाना चाहिए, यही धर्म कहता है.
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पति की ओर इस भक्तिभाव को देख यमराज हुए थे अतिप्रसन्न
सावित्री की यह बात सुनकर यमराज प्रसन्न हुए और वर मांगने के लिए कहा तो उसने अपने सास- ससुर आंखों की ज्योति वापस मांगी. यमराज ने उस वर की पूर्ति की और आगे बढ़ गए. लेकिन अभी भी सावित्री पीछे-पीछे चलती रही. यमराज वापस मुड़े और एक दूसरा वर मांगने को कहा. सावित्री ने अपने ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा. यमराज ने फिर उस वर की पूर्ति की और उसे लौट जाने को कहा. लेकिन सावित्री से पीछा छुड़ा पाना यम के लिए आसान नहीं था.
अपने पति के प्रति इस भक्तिभाव और निष्ठा को देखकर यमराज अत्यन्त प्रसन्न हुए. साथ ही सावित्री से एक और वर मांगने के लिए कहा, इस समय उसने सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांग. यह सुनकर यमराज और भी प्रसन्न हुए और इस प्रकार की पति भक्ति को देखकर उन्होंने अंतिम वरदान प्रदान करते हुए सत्यवान को जीवन दान दे दिया और यमलोक की ओर प्रस्थान कर गए. उसी वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीवन की अनुभूति हुई और वह उठ गया. इस तरह सत्यवान के माता-पिता की आंखों की रौशनी ठीक हो गई साथ ही खोए हुए राज्य पर वह वापस शासन करने लगे.
मान्यता यह है कि वट सावित्री पर्व के दिन सावित्री की इस पुण्य कथा को सुनने से महिलाओं के जीवन और परिवार में सुख समृद्धि आती हैं और सभी विपत्तियां दूर हो जाती है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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