डीएनए हिंदी: यदि ज्योतिष शास्त्र में आपकी रुचि है तो आपने लाल किताब के बारे में जरूर सुना होगा. अक्सर लोग जीवन की मुश्किलों का हल लाल किताब में बताए उपायों में ढूंढने की कोशिश करते हैं. क्या आप जानते हैं कि ये लाल किताब कहां से आई? इसे लाल किताब क्यों कहा जाता है, किसने लिखी और क्यों इसे इतना अहम माना जाता है? आइए, इन सवालों के जवाब जानते हैं-
ऐसी किताबों को लाल किताब कहे जाने के पीछे ये वजह बताई जाती है कि जब इसे लिखा गया था तब किताब की जिल्द का रंग लाल था. कुछ जानकार मानते हैं कि लाल किताब को रावण ने लिखा था. अपने गुस्से की वजह से लंका के राजा रावण ने युद्ध में ये लाल किताब खो दी थी. बाद में ये किताब अरब में मिली. यहां इसका उर्दू में अनुवाद किया गया. यहीं से ये किताब फिर से उत्तर भारत और पाकिस्तान पहुंची. यहां इसे पढ़ने वालों को मालूम हुआ कि किताब में नवग्रहों के अनुसार भविष्य और उपायों की चर्चा है. नवग्रह हिंदु ज्योतिष शास्त्र से संबंधित हैं. ऐसे में इसका हिंदी अनुवाद हुआ और यह यहां के पंडित व विद्वानों के लिए भी एक अहम ज्योतिष ग्रंथ बन गया.
ज्योतिष के अनुसार हमारे जीवन के शुभ और अशुभ फलों के लिए ग्रहों को जिम्मेदार माना जाता है. ग्रहों को शांत करने के लिए उपाय बताए जाते हैं. ये सब उपाय ग्रहों के अनुसार लाल किताब में मिलते हैं. लाल किताब में ग्रहों और सामुद्रिक शास्त्र को साथ में जोड़ा गया है यानी हाथ की लकीरों से जन्म कुंडली के ग्रहों के मिलान की बातें इसमें समझाई गई है. ऐसे में इस बात की और ज्यादा पुष्टि हो जाती है कि मूलरूप से लाल किताब भारत में ही लिखी गई थी.
लाल किताब को भारत में पंडित रूप चंद जोशी ने हिंदी में अनुवाद के जरिए काफी पॉपुलर बनाया. इसके पांच सेट हैं-
लाल किताब के फरमान- 1939 में प्रकाशित
लाल किताब के अरमान- 1940 में प्रकाशित
गुटका- 1941 में प्रकाशित
लाल किताब के फरमान- 1942 में प्रकाशित
इल्म-ए-समुद्रिक की बुनियाद पर की लाल किताब- 1952 में प्रकाशित
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