कभी आप रात के वक्त घर से बाहर निकले हों तो जानवरों की चमकती आंखें देखकर जरूर ठहर गए होंगे. जानवरों की चमकती हुई आंखें कभी चौंकाने वालीं तो कभी थोड़ी डरावनी भी हो सकती है. प्राचीन मिस्र के लोगों का मानना था कि बिल्लियां अपनी आंखों में डूबते सूरज की चमक को कैद कर लेती हैं और सुबह होने तक उसे सुरक्षित रखती हैं. प्राचीन यूनानियों का मानना था कि जानवरों की आंखों के अंदर एक प्रकाश स्रोत होता है जो चमकती हुई आग की तरह होता है. हालांकि अब हम जानते हैं कि निशाचर जानवरों की आंखें चमकती हुई इसलिए दिखाई देती हैं क्योंकि वे प्रकाश को परावर्तित करते हैं.
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धरती पर मौजूद सभी आंखें प्रकाश को परावर्तित करती हैं लेकिन कुछ आंखों में एक विशेष परावर्तक संरचना होती है जिसे टेपेटम ल्यूसिडम कहा जाता है. ये रात में चमकने का आभास देती है. टेपेटम ल्यूसिडम मूल रूप से कई प्रकार के निशाचर जानवरों की आंखों के पीछे एक छोटा दर्पण है. यह मूल रूप से इन जानवरों को रात में बहुत अच्छी तरह से देखने में मदद करता है.
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यह कैसे काम करता है?
जब प्रकाश जानवरों की आंख में प्रवेश करता है तो वह कई मार्गों से जा सकता है. कुछ प्रकाश सीधे रेटिना से टकराता है. ये फोटोरिसेप्टर कोशिकाएं तंत्रिका आवेगों को ट्रिगर करती हैं जो ऑप्टिक तंत्रिका के माध्यम से मस्तिष्क तक जाती हैं जहां एक दृश्य छवि बनती है. कुछ प्रकाश रेटिना से होकर या उसके आस-पास से होकर टेपेटम ल्यूसिडम से टकराता है. टेपेटम ल्यूसिडम दृश्यमान प्रकाश को रेटिना के माध्यम से वापस परावर्तित करता है जिससे फोटोरिसेप्टर का उपलब्ध प्रकाश बढ़ जाता है. इससे बिल्लियां और दूसरे निशाचर जानकर मनुष्यों की तुलना में अंधेरे में बेहतर देख पाती हैं.
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वहीं टेपेटम ल्यूसिडम से टकराने वाली कुछ रोशनी रेटिना से नहीं टकराती और बिल्ली की आंखों से वापस लौट जाती है. यह परावर्तित प्रकाश या आंखों की चमक ही वह चीज है जिसे हम तब देखते हैं जब बिल्ली या दूसरे जानवरों की आंखें चमकती हुई दिखाई देती हैं.
क्या मनुष्य में भी टेपेटम ल्यूसिडम होता है?
हमारी आंखें बिल्लियों की आंखों से बहुत मिलती-जुलती हैं लेकिन इंसानों में यह टेपेटम ल्यूसिडम परत नहीं होती. यही वजह है कि हम इंसानों की आंखें बिल्लियों या दूसरे निशाचर जानवरों की तरह रात में नहीं चमकतीं.
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Animal Eyes Glowing in Dark
रात के अंधेरे में क्यों चमकती हैं जानवरों की आंखें? ये है साइंटिफिक कारण