डीएनए हिंदी: भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में एक इलाका है पंबन द्वीप. दूसरी तरफ श्रीलंका देश है. बीच में समुद्र और मन्नार की खाड़ी है. भारत के पंबन द्वीप और श्रीलंका के मन्नार द्वीप को जोड़ने वाले पुराने पुल को 'रामसेतु' (Ram Setu) कहा जाता है. इस पुल के आसपास के पत्थर पानी में तैरते हैं. बड़े से बड़े पत्थरों का पानी में यूं तैरना लोगों को हैरान करता है. कुछ लोगों की मान्यता है कि यह प्रभु श्रीराम की कृपा है. महाकाव्य रामायण (Ramayana) के मुताबिक, सीता को लंका के राजा रावण के कब्जे से छुड़ाने के लिए भगवान श्रीराम (Lord Rama) को जब लंका जाना था, तो उन्होंने सुग्रीम की वानर सेना की मदद से यह पुल बनवाया था. सैटेलाइट तस्वीरों में इस पुल की संरचना देखी जा सकती है. हालांकि, अब यह पानी में कई फीट नीचे दब गया है.
रामायण में लिखा गया है कि पत्थरों को पानी पर तैराने के लिए उन पर भगवान राम का नाम लिखा गया. भगवान का नाम लिखने की वजह से ही ये पत्थर पानी पर तैरने लगे और उस समय बिना किसी चूना-पत्थर के भी इतना लंबा पुल बनाया जा सका. रामायण के मुताबिक, सुग्रीव की वानर सेना और भगवान श्रीराम इसी पुल से लंका गए और रावण को हराकर सीता को मुक्त कराया. इन्हीं वजहों से इस पुल को हिंदू धर्म के लोग बेहद पवित्र मानते हैं. अब आइए इसके वैज्ञानिक पहलू को समझते हैं...
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लगभग 50 किलोमीटर लंबी पुल के जैसी यह संरचना अजूबों से भरी है. इसके आसपास का समुद्र काफी उथला है. कहा जाता है कि साल 1480 तक यह पुल पानी के ऊपर था. वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस पुल को चूना पत्थर, ज्वालामुखी से निकली चट्टानों और कोरल रीफ से बना हुआ है. यही वजह है कि पानी के जहाज इस रास्ते से नहीं गुजरते हैं. इन जहाजों को श्रीलंका का चक्कर लगाना पड़ता है.
क्यों तैरते हैं रामसेतु के पत्थर?
रामसेतु के पत्थरों का अध्ययन करने से पता चला है कि ये पत्थर अंदर से खोखले होते हैं. यानी इन पत्थरों के अंदर छोटे-छोटे छेद होते हैं. इन छेदों के अंदर हवा भरी होने से ये खोखले महसूस होते हैं और इनका वजन बहुत कम हो जाता है. पत्थरों का वजन कम होने से इन पर पानी की ओरे लगने वाला उत्प्लावक बल (Buoyancy Force) इन्हें डूबने से रोक लेता है. इस बल के संतुलित हो जाने की वजह से ही यहां के पत्थर पानी में नहीं डूब सकते. ठीक इसी Buoyancy Force को संतुलित कर पाने की वजह से पानी के बड़े से बड़े जहाज भी पानी में तैरते रहते हैं.
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इसी तरह के तैरने वाले पत्थर न्यूजीलैंड, फिजी, वनुताउ, न्यू सेलेडोनिया और क्वीन्सलैंड में भी पाए जाते हैं. भारत के भी कुछ पहाड़ी राज्यों में इस तरह के पत्थर पाए जाते हैं जो पानी में तैरते हैं. इन पत्थरों के पीछे का साइंस इतना ही है कि ये भी खोखले होते हैं और इनका वजह बहुत कम होता है. इन पत्थरों में 90 प्रतिशत हवा ही होती है. इन पत्थरों को Pumice stone भी कहा जाता है.
Pumice Stone क्या होते हैं?
ज्वालामुखी से निकलने वाले लावा जब ठंडा होकर जम जाता है तो इस तरह के Pumice पत्थरों का निर्माण होता है. तेज तापमान और उच्च दाब की वजह से ज्वालामुखी से काफी तेजी से लावा निकलता है. इसका तापमान लगभग 1500 डिग्री सेल्सियस होता है. इतना गर्म लावा जब हवा या समुद्र के पानी से मिलता है तो 'कोल्ड शॉक' की स्थिति बनती है. इसी स्थिति में गर्म लावा के अंदर हवा भर जाती है और तुरंत ही यह ठंडी हो जाती है. यह हवा लावा में रह जाती है और बहुत छोटे-छोटे बबल बन जाते हैं. ये बबल मिलकर ही बड़ा सा पत्थर बन जाते हैं. अंदर हवा भरी होने की वजह से इन पत्थरों का वजन बहुत कम हो जाता है.
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सेतुसमुद्रम योजना क्या है और क्यों है विवाद?
साल 2005 में यूपीए सरकार के कार्यकाल में सेतुसमुद्रम योजना लाई गई. इस योजना के तहत भारत-श्रीलंका के बीच एक गहरा जल मार्ग बनाया जाना था. इस प्रोजेक्ट के तहत रामसेतु को तोड़ा जाना था. उस समय कई हिंदू संगठनों ने इसे तोड़ने का विरोध किया. दरअसल, इस पुल की वजह से पानी के जहाजों को श्रीलंका के चारों ओर घूमकर जाना पड़ता है. प्लान था कि बीच से रास्ता बनाकर इस चक्कर की दूरी कम कर दी जाए. इस मामले में बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है और रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग की है, ताकि इसका संरक्षण किया जा सके.
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रामसेतु का पत्थर पानी में कैसे तैरता है? जानिए पूरी कहानी और साइंस