डीएनए हिंदी. सन् 1969 में नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद पर पहला कदम रखा था. तब से लेकर अब तक चांद पर पहुंचने और वहां जीवन की संभावनाएं तलाशने के लिए कई प्रयास किए जा चुके हैं. एक नया प्रयास अमेरिकी अंतरिक्ष एंजेसी नासा और ऑस्ट्रेलियाई स्पेस एजेंसी द्वारा किया जा रहा है. हाल ही में दोनों एजेंसीज ने एक डील साइन की है. इसके तहत एक ऑस्ट्रेलियाई रोवर को चांद पर भेजा जाएगा. ये रोवर चांद की उन चट्टानों को इकट्ठा करेगा, जो वहां सांस लेने लायक ऑक्सीजन पैदा कर सकती हैं.
दरअसल एक शोध के मुताबिक चांद की सतह पर पर्याप्त ऑक्सीजन मौजूद हैं. ये ऑक्सीजन इतनी है कि एक लाख साल तक 800 करोड़ लोगों की ऑक्सीजन की जरूरत को पूरा किया जा सकता है. औसतन चांद की सतह के एक क्यूबिक मीटर में 1.4 टन मिनरल्स हैं. इसमें 630 किग्रा ऑक्सीजन शामिल है. मनुष्य को प्रतिदिन 800 ग्राम ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है. इसका सीधा मतलब है कि दो साल तक प्रति व्यक्ति ऑक्सीजन की जरूरत के हिसाब से 630 किग्रा पर्याप्त है. इसका सीधा मतलब ये भी है कि चांद पर लगभग 800 करोड़ लोगों के लिए एक लाख साल तक ऑक्सीजन की जरूरत को पूरा किया जा सकता है .
ये बात जानना जरूरी है कि चंद्रमा का अपना एक वातावरण है, यह ज्यादातर हाइड्रोजन, नियॉन और आर्गन से बना है. चंद्रमा पर भरपूर ऑक्सीजन भी है, लेकिन यह सिर्फ गैसीय रूप में नहीं है. इसके बजाय यह चंद्रमा को ढकने वाली चट्टान की परत और महीन धूल जिसे रेजोलिथ कहा जाता है, में फंस गई है। रोवर के जरिए इन्हीं चट्टानों को इक्ट्ठा करने का लक्ष्य रखा गया है.
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