कई बार एक क़िस्सा सुना था, लखनऊ में लोगों की गाड़ी अक्सर ‘पहले आप-पहले आप’ के ज़िक्र में छूट जाती है. तहज़ीब के इस शहर की कहानियाँ बहुत कही और सुनी जाती हैं. इस शहर में इस बार फिर जाना हुआ पर इस बार का जाना थोड़ा अलग था.   वाजिद शाह के शहर को अपनी सवारी में ख़ुद आगे-पीछे घूमते जानना था.

दिल्ली से लगभग साढ़े पाँच सौ किलोमीटर दूर बसे इस शहर तक पहुँचने के लिए एक  बेहद शानदार राष्ट्रीय राज्यमार्ग है. ख़ूब लम्बे चौड़े इस राज्यमार्ग से गुज़रना यात्रा के सबसे बेहतरीन अनुभव से रुबरु होना है. खैर, हर अच्छी चीज़ की एक मियाद होती है. मियाद एक ग़ज़ब की सड़क यात्रा की भी पूरी हुई और अपनी स्टीयरिंग सम्भाले मैं लखनऊ में दाख़िल हुई...

बेसब्री से धीरज की ओर

लखनऊ में दाख़िल होना बेसब्र रफ़्तार से धीरज के पाले में आना था. धीरज क्यों, वह कहानी भी ग़ज़ब है. शायद दुनिया भर में ट्रैफिक के नियम क़ायदे चलते हैं, लखनऊ में शांत मन से अपने रास्ते में बढ़ना होता है. चाहे इससे कोई नियम क्यों न टूटे. कोई रास्ता क्यों न छूटे...

हाईवे से उतरते ही, आलमबाग़ की ओर मुड़ते ही गाड़ी की रफ़्तार स्वतः ही दस-बीस के बीच पहुँच जाती है. यह कोई सरकारी नियम नहीं है, मज़बूरी है. यह मज़बूरी आपके चेहरे पर गुस्सा नहीं मुस्कुराहट लेकर आएगी और आप एक बार फिर लखनऊ की आबोहवा में मौजूद धीरज पर निहाल हो जाएँगे.

महानगरों की रफ़्तार के आदि हैं तो बीच सड़क पर अलमस्त चलते लोगों को देखकर हौले-हौले गाड़ियों को आगे बढ़ाना जान जाएँगे.

और फिर दिखना एक महिला चालक का

हाँ, ठीक है लखनऊ में धीरज बहुत है. वे हरी बत्ती पर भी रुक जाना जानते हैं और लाल बत्ती पर चलना जानते हैं पर उनके सब्र की भी एक सीमा होती है. जैसे ही वैसे किसी चौराहे पर पहुँचते हैं वे जल्द से जल्द आगे निकल जाना चाहते हैं. ऐसी जगहों पर ट्रैफिक पुलिस के लोग बिना टिकट तमाशा देखने का काम करते हैं. लोग हॉर्न बजा कर एक दूसरे से बाहर निकलने की होड़ में बेज़ार हुए पड़े हों, नियम कायदों से चलने वाले लोग भौंचक्क हुए पड़े हों और अफरा-तफरी में कोई छोटी ग़लती कर दें. ट्रैफिक पुलिस के इन कारिंदों की नींद झप्प खुल जाती है. स्टीयरिंग के पीछे जैसे ही इन्हें महिला दिखती है, वे सारी अफरा-तफरी का ज़िम्मेदार उसे मान लेते हैं.

“कौन दे देता है आप लोगों को स्टीयरिंग?”

यह किसी फ़िल्म का डायलॉग नहीं है. यह आम टिप्पणी है जो किसी फ़ीमेल ड्राईवर को देखते ही उनकी ज़ुबान पर आ जाती है. सबसे मज़ेदार तो यह है कि उन्हें लगता ही नहीं है कि उन्होंने कुछ ग़लत कहा है. ग़लत तो लखनऊ में कुछ होता ही नहीं, सब बड़ी शान्ति से होता है. इतनी शांति से कि सीधी जाती ग्रीन लाइट पर कोई बाएँ से आ जाए और आप महानगरीय अंदाज़ में तैश खाएँ तो वह आपको धीरज बरतने की सलाह देता हुआ निकल जाए. आप सोचते रह जाएँ, “आप” से पहले “मैं” क्यों नहीं था क़िस्से में...

Url Title
Driving in Lucknow
Short Title
लखनऊ में फ़ीमेल ड्राईवर के अनुभव
Article Type
Language
Hindi
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
Lucknow traffic
Date updated
Date published