डीएनए हिंदी: 'इश्क में और कुछ नहीं होता,
आदमी बावरा सा रहता है'
गुलजार ने इस शायरी में काम की बात कही है. प्यार दिल का कम और दिमाग का मामला ज्यादा है लेकिन दिल के आकार के बैलून, लाल गुलाब और सॉफ्ट टॉयज वाले बाजार को यह बात सूट नहीं करती इसलिए दुनिया चाहती है कि आपके इमोशन्स को हवा मिलती रहे और प्यार का 'कारोबार' चलता रहे. हालांकि आज हम आपको सिलसिलेवार यह बताएंगे कि प्यार में क्यों आपका बस नहीं चलता.
दरअसल आप दिल के हाथों नहीं, दिमाग के हाथों मजबूर होते हैं. वैसे मिर्जा गालिब ने सदियों पहले बता दिया था,
कहते हैं इश्क जिसे
खलल है दिमाग का.
आज आप प्यार के इस दिमागी खलल को आसानी से समझ जाएंगे. आप इसे प्यार का विज्ञान भी कह सकते हैं.
बता दें कि प्रेम की भावनाओं के लिए आपका दिल नहीं बल्कि सिर्फ आपका दिमाग और शरीर में मौजूद कुछ केमिकल्स जिम्मेदार हैं. यानी अगर आपके शरीर में कुछ विशेष प्रकार के Harmones का प्रवेश करा दिया जाए तो आपको ऐसा लगने लगेगा कि आप प्रेम में हैं. वैज्ञानिक मानते हैं कि रोमांस और प्रेम की भावनाएं तीन चरणों में किसी को प्रभावित करती हैं-
पहला चरण है किसी को पाने की त्वरित यानी Instant. इस दौरान दिमाग Testosterone और Estrogen नाम के Harmones को तेजी से रिलीज करने लगता है. इसे आप वासना भी कह सकते हैं.
दूसरा चरण है आकर्षण. इस दौरान दिमाग डोपामाइन (Dopamine), नोरएपिनेफ्रीन (Norepinephrine) और सेरोटोनिन (Serotonin) नाम के Harmones रिलीज करता है. Dopamine आपकी भावनाओं के लिए जिम्मेदार होता है. इससे आपको कोई ईनाम जीतने जैसी खुशी मिलती है. जबकि नोरएपिनेफ्रीन आपको ऊर्जा से भर देता है. भविष्य के सपने दिखाने लगता है और कई बार इससे आपकी भूख-प्यास और नींद भी गायब हो जाती है. वहीं सेरोटोनिन आपके मूड को अच्छा बनाता है. प्यार का शुरुआती दौर इन्हीं हार्मोन से चार्ज रहता है.
रोमांस का तीसरा चरण होता है किसी के साथ जुड़ाव यानी Attachment. इसके लिए मुख्य रूप से दो केमिकल्स जिम्मेदार होते हैं. पहला है Oxytocin और दूसरा है Vasopressin. हालांकि इस चरण पर पहुंचने के लिए शुरुआती दौर का सही सलामत निकलना जरुरी है. ऑक्सीटोसिन प्यार में ठहराव और मैच्योरिटी लाता है.
यही Oxytocin माता-पिता के बच्चों के प्रति प्यार, दोस्ती और समाज के साथ मधुर संबंध बनाए रखने के लिए भी जिम्मेदार होता है. गले मिलने पर दिल को ठंडक मिलने वाला अहसास इसी हार्मोन की देन है. यानी प्यार का फॉर्मूला किसी लैब में भी तैयार किया जा सकता है और इस फार्मूले को अपनाकर आप खुश महसूस कर सकते हैं.
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प्यार होने पर दिल में घंटियां बजती हों या वॉयलन यह सब दिमाग का ही फितूर है. दिमाग का बायां हिस्सा यानी लेफ्ट साइड हमारे इमोशंस के लिए जिम्मेदार होता है. विज्ञान की भाषा में इसे लिंबिक सिस्टम कहा जाता है. किसी को देखने पर दिमाग के इसी हिस्से में केमिकल्स का कॉकटेल बनने लगता है. हैप्पी हार्मोन निकलने लगते हैं और दुनिया अच्छी लगने लगती है.
प्यार आपको तनाव भी देता है. रिश्तों की उलझनों से दो चार हो रहे लोगों के दिमाग में Cortisol हार्मोन रिलीज होता है. यह स्ट्रेस हार्मोन भी कहलाता है. इश्क में बीमार महसूस करने के पीछे आप इस हॉर्मोन को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं.
क्या ये रसायनिक प्रेम सच्चा प्रेम होता है? क्या प्रेम को जीव विज्ञान और रसायन विज्ञान की भाषा में समझा जा सकता है?
प्रेम में आपका अपना कुछ नहीं होता, सबकुछ दूसरे को समर्पित होता है. प्रेम पर संत कबीर ने अपने एक दोहे में कहा था कि 'प्रेम गलि अति सांकरी जा में दो ना समाएं..'
यानी प्रेम की गली इतनी संकरी होती है कि उसमें दो के लिए कोई जगह नहीं होती, किसी एक को तो मिटना ही पड़ता है.
प्रेम की कुछ शर्तें भी होती हैं जिसमें पहली शर्त ही होती है स्वतंत्रता. अगर आप प्रेम में पड़ने के बाद स्वंतत्र महसूस नहीं करते और दूसरे को भी स्वतंत्र महसूस नहीं होने देते तो आपका प्रेम सिर्फ कुछ रासायनिक बदलावों का नतीजा है इसके अलावा कुछ नहीं.
प्रेम दिमाग से शुरू होता है और दिमाग ही इसकी उम्र तय करता है. यानी आपका रिश्ता कितना लंबा चलेगा यह दिमाग ही तय करता है.
कुछ वर्ष पहले तक जब इंटरनेट क्रांति नहीं हुई थी, भावनाओं को एक दूसरे तक पहुंचने के लिए चिट्ठियों का रास्ता तय करना पडता था या प्रेमी को एक मुश्किल सफर पार करना होता था. वह भी बंदिशों और दायरों से बंधे समाज में इतना आसान नहीं था.
रिश्ते बनते भी मेहनत से थे और बिगडने से पहले भी सोच विचार का वक्त मिल जाता था. दिमाग भावनाओं को प्रोसेस कर सकता था लेकिन इंटरनेट की इंस्टेंट जानकारी, इंस्टेंट मैसेजिंग और इंस्टेंट इमोशन की मेहरबानी से आजकल प्रेम की उम्र घट रही है. प्यार की उम्र या मियाद इतनी कम है कि यह तय करना मुश्किल है कि अब आप मोबाइल फोन पहले बदलेंगे या आपका पार्टनर पहले बदल जाएगा क्योंकि एक्शन और रिएक्शन दोनों आपकी मोबाइल पर चल रही उंगलियां यानी इंस्टेंट मैसेजिंग तय कर लेती हैं, सच झूठ वीडियो कॉल्स और ऑडियो मैसेज से तय हो जाते हैं.
एक्सपर्ट की मानें तो प्यार भी नशे की लत की तरह दिमाग को गिरफ्त में ले लेता है. प्यार को नशे की तरह ही आदत और लत वाला माना जाता है इसलिए यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि यह नशा आप पर इतना हावी ना हो जाए कि प्यार जूनून में बदल जाए. आंकड़े गवाह हैं कि नाकाम रिश्ते, एकतरफा प्यार और ब्रेकअप ने जुर्म की बहुत सी कहानियों को जन्म दिया है.
(इनपुट- पूजा मक्कड़)
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प्यार दिल का कम और दिमाग का मामला ज्यादा है, यहां जानें Science of Love