हम बात कर रहे हैं थायरोकेयर के संस्थापक डा. यह वेलुमानिनी हैं, जिन्होंने हाल ही में दो प्रकार के लोगों पर अपने विचार व्यक्त किए, एक वे जो खाना बनाना सीखते हैं और दूसरे वे जो इसे समय की बर्बादी मानते हैं. उनके अनुसार, पहली श्रेणी के लोग मजबूत रिश्तों और सुखी वैवाहिक जीवन का आनंद लेते हैं. जबकि दूसरी श्रेणी के लोग, भले ही वे किसी धनी परिवार में विवाह कर लें, अपने रिश्तों को बनाये रखने के लिए हमेशा संघर्ष करते रहते हैं.
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपनी दिवंगत पत्नी सुमित वेलुमणि को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा, 'खाना पकाने की कला एक आवश्यक जीवन कौशल है. विशेषकर उन परिवारों में जहां आय 5 से 25 लाख रुपये के बीच है.' उन्होंने सलाह दी है कि जो माता-पिता अपने बच्चों को खाना खाना नहीं सिखाते, उन्हें पछताना पड़ सकता है. क्योंकि भोजन भावनात्मक संबंध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. चाहे आप कितने भी अमीर हों.
डॉ. वेलुमणि ने कहा कि उनकी पत्नी ने एसबीआई में अपने पेशेवर करियर के बावजूद पारिवारिक जिम्मेदारियों और काम को बहुत अच्छी तरह से संभाला. उन्होंने कहा कि जब उनकी पत्नी रसोई में खाना बना रही थीं, तब वह खुशी-खुशी बर्तन धो रहे थे. यह उनकी साझेदारी में एक छोटा लेकिन बहुत महत्वपूर्ण योगदान था.
There are two kinds.
— Dr. A. Velumani.PhD. (@velumania) March 5, 2025
1. Intelligent enough to Learn a good deal of cooking. They enjoy a happy married life by building bilateral relationships.
2. Lazy enough to think that cooking is waste of time. Even if they find a rich spouse, they struggle in generating or sustaining… pic.twitter.com/rVHR6jM3fu
डॉ. वेलुमनी की पोस्ट को सोशल मीडिया पर काफी प्रतिक्रियाएं मिलीं. एक यूजर ने लिखा, 'साथ मिलकर खाना बनाना सिर्फ एक हुनर नहीं है, इससे रिश्ते भी मजबूत होते हैं. करीबी रिश्ते सिर्फ पैसा पाने के लिए नहीं बनाए जाते. एक यूजर ने कहा, 'मैंने हाल ही में अपने बेटे के साथ खाना बनाना शुरू किया, जो एक बुनियादी जीवन कौशल है. भोजन हमें भावनात्मक स्तर पर एक-दूसरे से जुड़ने में मदद करता है.'
इससे पहले, जीरोधा के निखिल कामत ने बताया था कि जब वे सिंगापुर में थे, तो वहां जिन लोगों से उनकी मुलाकात हुई, उनमें से अधिकांश लोग घर पर खाना नहीं पकाते थे और कुछ के घरों में रसोई भी नहीं थी. उन्होंने कहा कि ये लोग ज्यादातर बाहर ही खाना खाते हैं और इसकी तारीफ भी करते हैं. इससे उन्हें यह विचार आया कि क्या यह प्रवृत्ति भारत में भी अपनाई जा सकती है. विशेषकर अर्थव्यवस्था और जीवनशैली में बदलाव के कारण. इससे पहले करीना कपूर खान की डायटीशियन ने कहा था, 'अमीर लड़के क्या कहते हैं, इस पर ध्यान मत दीजिए.' घर का बना खाना न केवल बाहर के खाने से अधिक पौष्टिक होता है, बल्कि इसे खाने से पारिवारिक रिश्ते भी मजबूत होते हैं.
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