डायबटीज TYPE-2 से पीड़ित युवा मरीजों की मशल्स तेजी से कमजोर हो रही हैं. मशल्स कमजोर होने को सारकोपेनिया कहते हैं. पहले यह कमजोरी 65 साल से अधिक आयु के लोगों में देखी जाती थी लेकिन अब ये 40 साल और उससे कम उम्र के आयु के लोगों में तेजी से बढ़ी है.

यह खुलासा ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस की हाल ही में आई स्टडी मे हुआ है. इंटरनल मेडिसिन विभाग के प्रमुख इन्वेस्टीगेटर डॉ. नवल किशोर विक्रम ने कहा है कि वो लोग डायबिटीज के मरीज हैं उन्हें दूसरे मेजर्स के साथ सारकोपेनिया की जांच जरूर करानी चाहिए.

यदि समय पर इसकी जांच हो जाती है तो इसका इलाज आसान हो जाता है. डॉ. नवल ने यह भी कहा," इससे होने वाली परेशानियों की रोकथाम समय रहते की जा सकती हैं. साथ ही खुराक में हाई प्रोटीन शामिल करने व मशल्स से जुड़ी एक्सरसाइज कर इसे कमजोर होने से बचाया जा सकता है."


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डॉ. नवल किशोर की यह रिसर्च इंटरनेशनल जर्नल एल्सवीयर में छपी है. डायबिटीज टाइप-2 से पीड़ित 229 मरीजों पर की गई इस रिसर्च में पाया गया कि मरीजों में 35-40 की उम्र में ही मशल्स कमजोर होने लगी हैं. डॉ किशोर ने बताया कि 20-30 की उम्र में मशल्स सबसे मजबूत होती थीं और 60 की उम्र में कमजोर होना शुरू होती थी लेकिन अब 30 और उससे भी कम उम्र में मशल्स कमजोर हो रही हैं.

सारकोपेनिया

 

एक्सरसाइज और समय पर पहचान बचाएगी Sarcopenia से

डॉ. विक्रम ने बताया कि मशल्स चेक करने के लिए हमलोग डायनामो मीटर का उपयोग करते हैं. 30 साल से कम उम्र के टाइप-2 डायबिटीज पेशेंट में 2.2 फीसदी में मशल्स कमजोर मिले, जबकि 31-40 उम्र के लोगों में 19.02 फीसदी, 51-60  साल के मरीजों में 31 फीसदी और 41 से 50 साल की आयु में मशल्स कमजोर होने की शिकायत 47.6 फीसदी पाई गई. वहीं 51 से 60 साल की आयु वाले लोगों में 31 फीसदी थे.

डॉ. नवल बताते हैं," ऐसे मरीजों की पहचान अगर समय पर हो जाती है तो हाई प्रोटीन इनटेक और कुछ एक्सरसाइज के साथ सुधार किया जा सकता है. डॉ.  ने यह भी बताया कि ऐसे मरीजों के लिए एरोबिक्स, पुश-अप्स, वॉक और डम्बल्स मशल्स को मजबूत बनाने में सहयोग करते हैं.


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महिलाओं पर प्रभाव

2021 के आंकड़े के अनुसार, भारत में करीब 74.2 मिलियन लोग डायबिटीज के मरीज हैं. करीब 229 मरीजों पर रिसर्च की गई, जिसमें 20 से 60 साल के मरीज शामिल थे. अगर ग्रिप स्ट्रेंथ की बात करें तो यह आंकड़ा 14: 17 फीसदी है. यानि 14 फीसदी पुरुषों की ग्रिप कमजोर है तो 17 फीसदी महिलाओं की. वहीं फिजिकल परफॉरमेंस की बात करें तो महिलाओं की 50 फीसदी तक शरीर कमजोर हैं जबकि पुरुषों की संख्या 26.7 फीसदी तक है.

हालांकि, महिलाओं में सारकोपेनिया होने के चांस ज्यादा पाए गए हैं. 54 फीसदी महिलाओं में सारकोपेनिया की मरीज होने का चांस होता है वहीं पुरुषों में यह संख्या 29.5 फीसदी तक सीमित है. वहीं सीवियर सारकोपेनिया की बात करें तो महिलाएं ज्यादा प्रभावित पाई गईं है. यह आंकड़ा 7.3(महिलाएं) : 4.8 (पुरुष) फीसदी का है.  

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sarcopenia in type 2 diabetes know how to prevent sarcopenia in women
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Type-2 Diabetes के हैं मरीज? कहीं आप भी तो नहीं हो रहे Sarcopenia के शिकार
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