डीएनए हिंदीः वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) और ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) के परिसर में स्थित मां श्रृंगार गौरी समेत कई विग्रहों के ASI सर्वे की इजाजत, वाराणसी कोर्ट ने दी है. ए के विश्वेश की अदालत ने हिंदू पक्ष की याचिका को स्वीकार करते हुए ज्ञानवापी मस्जिद के वैज्ञानिक सर्वेक्षण की अनुमति दी है.
विश्वेश की अदालत ने पूरे ज्ञानवापी परिसर की पुरातात्विक और वैज्ञानिक जांच कराने की मांग से संबंधित मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद 21 जुलाई के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया था. आइए जानते हैं यह विवाद क्या है, विस्तार से समझते हैं.
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काशीविश्वनाथ-ज्ञानपावी विवाद क्या है?
इस मामले में शुरू से ही मस्जिद को लेकर विवाद रहा है. हिंदू पक्ष का कहना है कि करीब चार सौ साल पहले मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद का निर्माण कराया गया था.काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है. यहां अभी मुस्लिम समुदाय रोजाना पांचों वक्त सामूहिक तौर पर नमाज अदा करता है. मस्जिद का संचालन अंजुमन-ए-इंतजामिया कमेटी द्वारा किया जाता है.
साल 1991 में स्वयंभू लॉर्ड विश्वेश्वर भगवान की तरफ से वाराणसी के सिविल जज की अदालत में एक अर्जी दाखिल की गई. इस अर्जी में यह दावा किया गया कि जिस जगह ज्ञानवापी मस्जिद है, वहां पहले लॉर्ड विशेश्वर का मंदिर हुआ करता था और श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी. याचिका में कहा गया कि मुगल शासकों ने इस मंदिर को तोड़कर इस पर कब्जा कर लिया था. याचिका में मांग की गई कि ज्ञानवापी परिसर को मुस्लिम पक्ष से खाली कराकर इसे हिंदुओं को सौंप देना चाहिए. वाराणसी की अदालत ने इस अर्जी के कुछ हिस्से को मंजूर कर लिया और कुछ को खारिज कर दिया.
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मुस्लिम पक्ष क्यों कर रहा विरोध?
इस माले में विरोध की सबसे बड़ी वजह साल 1991 में बना सेंट्रल रिलिजियस वरशिप एक्ट है. मस्जिद कमेटी की तरफ से अदालत में यह दलील दी गई कि इस अर्जी को खारिज किया जाना चाहिए. दलील यह दी गई एक्ट में यह साफ तौर पर कहा गया है कि अयोध्या के विवादित परिसर को छोड़कर देश के बाकी धार्मिक स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी, उसी स्थिति को बरकरार रखा जाएगा. एक्ट के मुताबिक अगर किसी अदालत में कोई मामला पेंडिंग भी है तो उसमे भी 15 अगस्त 1947 की स्थिति के मालिकाना हक को मानते हुए ही फैसला सुनाया जाएगा. इस मामले में मस्जिद कमेटी के साथ ही यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी हाईकोर्ट में इसी दलील के साथ अर्जी दाखिल की थी.
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कितनी जमीन का है विवाद?
पूरा मामला एक बीघा नौ बिस्वा और छह धुर जमीन के विवाद का है. हिन्दू पक्षकार विवादित जगह हिन्दुओं को देकर वहां पूजा करने की इजाजत दिए जाने की मांग कर रहे हैं. हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस प्रकाश पाडिया की सिंगल बेंच में चल रही है.
कैसे हुई इस विवाद की शुरुआत?
काशीविश्ननाथ और ज्ञानवापी मस्जिद का मामला नया नहीं है. 31 सल पहले यह मामला कोर्ट पहुंचा था लेकिन मंदिर के लिए आंदोलन इससे पहले ही शुरू हो गया था. 1984 में देशभर के 500 से ज्यादा संत दिल्ली में जुटे. धर्म संसद की शुरुआत भी यहीं से हुई. इस धर्म संसद में कहा गया कि हिंदू पक्ष अयोध्या, काशी और मथुरा में अपने धर्मस्थलों पर दावा करना शुरू कर दे. स्कंद पुराण में उल्लेखित 12 ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ मंदिर को सबसे अहम माना जाता है. 1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास, संस्कृत प्रोफेसर डॉ. रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की.
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इतिहास के ये तर्क भी महत्वपूर्ण
इस याचिका में कहा गया कि काशी विश्वनाथ के मूल मंदिर का निर्माण 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था. सन् 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया और इसकी जगह मस्जिद बनाई. इस मस्जिद को बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया. अभी वहां पर जो काशी विश्वनाथ मंदिर है, उसे इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था. काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद आपस में सटे हुए हैं, लेकिन उनके आने-जाने के रास्ते अलग-अलग दिशाओं में हैं. दूसरी तरफ जानकारों का यह भी मानना है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने इसका निर्माण 1585 में कराया था. 1669 में औरंगजेब ने इस मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनवाई. इसके बाद 1735 में रानी अहिल्याबाई ने फिर यहां काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाया, जो आज भी मौजूद है.
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काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद क्या है? आसान भाषा में समझें कहानी