डीएनए हिंदी: Harbhajan Singh ने लगातार एक दशक तक चिलचिलाती धूप में, सुनसान दोपहरी और दूधिया रोशनी में अपनी spin bowling का कमाल दिखाकर Team India को Cricket Matches में जीत दिलायी और एक दिन अचानक यह सब थम गया.

सभी खूबसूरत प्रेम कथाओं का अंत 'परफेक्ट' नहीं होता और कोई भी कह सकता है कि यह 41 वर्षीय खिलाड़ी इस तरह क्रिकेट मैदान को अलविदा नहीं करना चाहता होगा. लेकिन इस यात्रा में कोई पछतावा नहीं होना चाहिए क्योंकि यह सफर शानदार रहा है जो अनुभवों से भरा रहा जो जीवन को सार्थक बनाता है और जो भी उनका करीबी है वो जानता है कि पछतावा श्ब्द उनकी शब्दकोश में शामिल ही नहीं रहा है.

Harbhajan Singh ने साल 2016 में अंतिम बार Team India के लिए नीली जर्सी पहनी थी, वह पिछले कुछ वर्षों में आधा संन्यास ले चुके थे लेकिन किसी भी कहानी - अच्छी, बुरी या खराब - को अंत की जरूरत होती है और भारत के ‘टर्बनेटर’ के आधिकारिक रूप से संन्यास की घोषणा से भारतीय क्रिकेट के सबसे आकर्षक अध्याय का अंत हो गया.

सौ से ज्यादा Test Matches और 400 से ज्यादा Wickets (जिसमें से ज्यादातर स्पिन के मुफीद पिच पर नहीं मिले हैं) के साथ हरभजन का नाम हमेशा ही भारत के एलीट Cricketers में शामिल रहेगा. और सीमित ओवर के दो विश्व खिताबों के साथ उनका नाम जुड़ा है तो किसी भी शीर्ष स्तरीय क्रिकेटर के लिये यह शानदार करियर है.

वो अपनी सभी कमजोरियों, नाराजगी और विवादों और कई खामियों के साथ अपने ही तरीके में बहुत ही अलग थे जिससे उन्हें और अधिक प्रिय बना दिया. उनके लिए उनके नेतृत्वकर्ता हमेशा Sourav Ganguly रहे जिनकी दूरदर्शिता ने शायद उन्हें 2000 के शुरू में पिता के निधन के बाद अमेरिका में जाकर बसने से रोक दिया. ग्रेग चैपल बनाम गांगुली के दिनों में वह एकमात्र क्रिकेटर थे, जिन्होंने अपने कप्तान का समर्थन किया था.

उन्होंने कभी भी सच्चाई को कहने में झिझक नहीं दिखायी और एक बार राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी में बासी खाने के विरोध में तब के प्रमुख हनुमंत सिंह द्वारा बाहर भी कर दिए गए थे. उनके गेंदबाजी एक्शन पर भी सवाल उठाए गए थे और दो बार उन्हें इस एक्शन का परीक्षण कराना पड़ा जिसमें वह ठीक पाए गए.

वहीं ‘मंकीगेट’ प्रकरण में उन पर एंड्रयू साइमंड्स ने नस्लीय टिप्प्णी करने का आरोप लगाया था और इसका उन पर मानसिक तौर पर असर पड़ा जो उन्हें समय बीतने के साथ महसूस भी हुआ. Indian Premier League के दौरान एस श्रीसंत को धक्का देने से संबंधित विवाद से बचा नहीं जा सकता था और पहले चरण में हुई इस घटना से उन्हें निलंबित कर दिया गया.

गांगुली की अगुआई में जब भारतीय क्रिकेट टीम ‘मैच फिक्सिंग’ प्रकरण से हिलने के बाद उबरने के प्रयासों में जुटी थी तब उनके रंग बिरंगे पटकों और हर विकेट पर शेर की दहाड़ ने हरभजन को उन दिनों ‘रॉकस्टार’ बना दिया था. हरभजन ने उन दिनों ऐसा ‘स्वैग’ दिखाया था जो आज भी कुछ एक ही क्रिकेटर दिखा सकते हैं,

कहते हैं कि किसी भी खिलाड़ी की महानता अपने युग की सर्वश्रेष्ठ टीम के खिलाफ प्रदर्शन से दिखती है और आस्ट्रेलिया के खिलाफ उनके 32 विकेट (तीन टेस्ट की श्रृंखला में) हमेशा उनके अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की चमकदार उपलब्धि रहेगी. उन्होंने पोंटिंग, मैथ्यू हेडन, एडम गिलक्रिस्ट, डेमियन मार्टिन, स्टीव वॉ, जाक कैलिस, एंड्रयू फ्लिंटाफ जैसे दिग्गजों को अपना शिकार बनाया.

हां, शिवनारायण चंद्रपाल, यूनिस खान और कुमार संगकारा ने परेशानियां पैदा की लेकिन वे टीम को टेस्ट मैच जीतने में उन्हें अहम योगदान करने से नहीं रोक पाए. अगर कोई हरभजन के 2001 से 2011 के सर्वश्रेष्ठ वर्षों को देखकर आकलन करे तो भारत मुश्किल से इस दौरान स्पिनरों के लिये मददगार पिच पर खेला, कि मैच दो से ढाई दिन में खत्म हो गये हों.

भारत में जब अनिल कुंबले और हरभजन सिंह सबसे घातक मैच विजेता गेंदबाजी जोड़ी थी तब भारत ने ज्यादातर मैच चौथे या पांचवें दिन के शुरू में जीते. फिर हरभजन को क्या चीज विशेष बनाती है? तो पिच से हासिल अजीब उछाल और गति ने उन्हें घातक बना दिया और उनकी ‘दूसरा’ गेंद जो सरल शब्दों में ऑफ स्पिनर की लेग ब्रेक होगी जो उन्होंने सकलेन मुश्ताक को देखकर सीखी और फिर इसे अपने अनुरूप ढाला ताकि बल्लेबाजों के लिये खतरा बन सकें.

अकसर विकेटकीपर कहते कि जब हरभजन लय में हो तो गेंद सांप की तरह की सरसराती आवाज निकालती है. कोई भी उनसे पहले ऐसा नहीं कर पाया और जालंधर के इस स्पिनर के बाद से कोई भी अब भी उनकी तरह नहीं सकता है. वर्ष 2007 से 2011 के बीच तब के कोच गैरी कर्स्टन के मार्गदर्शन में उन्हें नयी जिंदगी दी जिसमें वह सफेद गेंद के शानदार गेंदबाज बन गए. 

बाद में IPL के आने के बाद वह T20 गेंदबाजी में रन रोकने में सर्वश्रेष्ठ बन गए, उन्होंने लीग में 150 विकेट चटकाये जिसमें से ज्यादातर Mumbai Indians के लिए थे. पर 2011 से 2016 के बीच उनका करियर नीचे जाने लगा जिसमें रविचंद्रन अश्विन की स्पिन ने कमाल दिखाना शुरू किया. वह जब महज 31 वर्ष के थे तो 400 विकेट ले चुके थे और वह आसानी से 500 विकेट के पार जा सकते थे.

लेकिन जब 2011 में उन्होंने चोट से वापसी की तो चयनकर्ताओं ने आगे बढ़ने का फैसला किया. वह भारतीय जर्सी के साथ शानदार तरीके से करियर का अंत करना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हो सका. सचिन तेंदुलकर ने एक बार कहा था, "हरभजन ने एक पीढ़ी को ऑफ स्पिन की कला से प्यार करना सीखा दिया. उसने सचमुच ऐसा किया." (इनपुट- भाषा)

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Harbhajan Singh Profile records controversies
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Harbhajan Singh: एक मैच विजेता जिसने जीत के लिए अपना सबकुछ दिया
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