डीएनए हिंदी: चार्ल्स शोभराज, चार्ल्स गुरुमुख शोभराज. अपराध की दुनिया में आज भी 'द सर्पेंट' और 'बिकनी किलर' जैसे नामों से बदनाम है. चार्ल्स शोभराज यानी 'द सर्पेंट', दरअसल वो एक कॉनमैन था, एक ठग जो ठग विद्या की हर कला में पारंगत था. वह अपने शिकार पर सांप की तरह कुंडली मारता था, लच्छेदार बातों के जाल में मकड़ी की तरह फंसा लेता था. कई भाषाओं का जानकार था, इससे उसे शिकार को फंसाने में मदद मिलती थी. महिलाएं, खासकर विदेशी महिलाएं उसे पसंद थीं, वे आसानी से फंस जाती थीं, उसका आसान शिकार. कहते हैं वह जिस भी महिला को फंसाने की ठान लेता था, उसे अपना दीवाना बना लेता था. इस मामले में उसे कभी भी नाकामी हाथ नहीं लगी. लोग उसकी सम्मोहक शख्सियत का शिकार बन जाते थे. वह उन्हें आराम से जहर दे कर, उनका कीमती सामान ले कर फरार हो जाता था.
हिंदुस्तानी बाप से थी बेइंतहा नफरत
'बिकनी किलर', रेशमी साजिश के धागों से शिकार को मौत की नींद सुला देने वाला शायद सबसे दुर्दांत सीरियल किलर. कहा जाता है कि उसने 70 और 80 के दशक में 12 से ले कर 24 हत्याएं की लेकिन सच में उसने कितने लोगों को मारा यह राज आज भी शोभराज के दिल में ही दफ्न है. हिंदुस्तानी पिता और वियतनामी मां का बेटा, जिसे उसके पिता ने बचपन में ही छोड़ दिया. इसका बदला उसने जमाने से लिया. कहते हैं कि वह पिता से इतनी नफरत करता था कि उन्हें बदनाम करने के लिए ही उसने जुर्म का रास्ता अख्तियार कर लिया. मासूम लोगों को खासकर महिलाओं को निशाना बनाने वाला दुनिया का सबसे चर्चित सीरियल किलर बन गया.
चार्ल्स, जिसके इशारे पर बंद हो जाते थे जेल के दरवाजे
चार्ल्स शोभराज, मीठे जहर वाली अपनी शख्सियत की चाशनी में शिकार को इस कदर डुबो देता था कि उनका दम घुट जाता था, लेकिन गुनाह की दुनिया में वह एक और बात के लिए बदनाम था. दुनिया की जेलों के दरवाजे उसके सामने अपने आप खुल जाते थे. मजबूत से मजबूत जेल के दरवाजे भी वह ऐसे खोल देता था जैसे शोभराज के इशारे पर ही खुलते और बंद होते हों.
फरार ऐसे होता जैसे पुलिस ने दी हो राह
1971 में रोड्स पुलिस स्टेशन की ऊपरी मंजिल से कूद कर भाग निकला. उसी साल तब के बंबई में उसने अपेंडिसाइटिस के दर्द का बहाना बनाया है और जेल से भाग निकला. 1972 में जब वह काबुल की जेल में बंद था तब उसने गार्ड्स को कोई नशीली चीज खिला कर बेहोश कर दिया और भाग निकला. 1975 में ग्रीस की बेहद सुरक्षित मानी जाने वाली ऐजिना टापू की जेल से वह भाग निकला.
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शातिर शोभराज ने पुलिस वैन में आग लगा दी और उसके बाद जो हड़बड़ी और भ्रम का माहौल बना, उसका फायदा उठा कर वह भाग निकला. एक बार वह थाईलैंड में पकड़ा गया जहां सजा होती तो उसे शर्तिया सजा-ए-मौत दे दी जाती. लेकिन वह पुलिस को भरोसा दिलाने में कामयाब हो गया उनसे गलती हुई है, वह दरअसल शोभराज नहीं बल्कि एक अमेरिकी प्रोफेसर है.
हालांकि इन सभी मामलों में सबसे ज्यादा चर्चित दिल्ली के अति सुरक्षित तिहाड़ जेल से उसकी फरारी थी. यह बिल्कुल आसान नहीं थी, इसके लिए उसे राजू भटनागर जैसे गैंगस्टर का साथ भी चाहिए था और फरारी का तरीका भी ऐसा इस्तेमाल करना था कि पहले किसी ने सोचा भी न हो.
तिहाड़ में जुगलबंदी मशहूर थी जुगलबंदी
16 मार्च 1986 को चार्ल्स शोभराज दिल्ली की अति सुरक्षित समझी जानी वाली तिहाड़ जेल से भाग निकला. वह अकेला नहीं था. तिहाड़ से उसके साथ तीन और लोग भागे थे जिनमें डॉन राजू भटनागर के साथी बृज मोहन और लक्ष्मी नारायण भी थे. शातिर चार्ल्स ने अपनी फरारी की योजना को इतनी चालाकी से अंजाम तक पहुंचाया कि तिहाड़ के गेट नंबर 3 'तमिल नाडु स्पेशल पुलिस' के दो संतरी पेट के बल पसरे दिखाई पड़ रहे थे. आग उगलने वाली उनकी .
303 राइफल उनके बगल में किसी बेचारी की तरफ खामोश पड़ी थी. जेल के अंदर छह जेल अधिकारी बेहोशी की हालत में पड़े थे. वहां से आधा किलोमीटर दूर, वार्डर आनंद स्वरूप गिरे पड़े थे, उनके मुंह पर स्कॉच-टेप लगा था. यह किसी बॉलीवुड फिल्म के सीन से कम नहीं था. जेल के दरवाजे खुले पड़े थे और पंछी फरार हो गए थे. सभी राजस्थान के रेगिस्तान की तरफ बढ़ रहे थे. दिल्ली में जुर्म की दुनिया के अपने कनेक्शन का इस्तेमाल कर राजू भटनागर ने चार्ल्स शोभराज को भागने के लिए जरूरी तमाम सहूलियतें मुहैया कराईं थीं.
तिहाड़ से कैसे हो गया था फरार?
चार्ल्स शोभराज ने तिहाड़ से फरारी का प्लान बहुत ही चालाकी से बनाया. दरअसल, अपनी चुंबकीय शख्सियत की बदौलत चार्ल्स जहां भी रहता था, वहां बहुत जल्दी अपना दबदबा बना लेता था. तिहाड़ में भी वह सजा काटने आया था लेकिन रहता यहां के डॉन की तरह था. जेल के अफसर भी उसे सम्मान से 'चार्ल्स साहब' कहते थे. अपने इसी रुआब का फायदा उठा कर चार्ल्स ने तिहाड़ में बंद ब्रिटिश ड्रग पेडेलर डेविड हाल को अपना शागिर्द बना लिया. चार्ल्स ने डेविड हाल को तिहाड़ से निकालने का वादा किया.
उसने हाल को अपनी वह ट्रिक सिखा दी जिसका इस्तेमाल कर गुजिश्ता वक्त में दो मौके पर खून की उल्टियां कर चार्ल्स जेल से निकल चुका था. हाल ने भी ऐसा ही किया. तिहाड़ के डॉक्टर ने हाल को किडनी फेलियर की बीमारी बता दी, उसे 12 हजार के मुचलके पर बेल दे दी गई. तिहाड़ से निकलने के बाद दूसरे विदेशी ड्रग पेडलर्स की तरह हाल भागा नहीं, बल्कि दिल्ली में ही रुक गया. राजू भटनागर की मदद से हाल ने जेल के बाहर कार, ट्रेन के टिकट आदि का इंतजाम किया. इनमें सबसे जरूरी थीं नींद की गोलियां.
रविवार, 16 मार्च 1986 की सुबह डेविड हाल नींद की 820 गोलियों में डूबे अंगूर, बर्फी और पेठा ले कर कार से तिहाड़ जेल पहुंचा. बहाना चार्ल्स शोभराज का जन्मदिन मनाने का था. कमाल की बात यह थी कि चार्ल्स शोभराज का जन्मदिन 16 मार्च को नहीं बल्कि 6 अप्रैल को पड़ता था. जेल के रिकॉर्ड में सब दर्ज था लेकिन बड़े अफसर भी चार्ल्स और डेविड हाल की बातों में आ गए. बाकी का काम नशीले अंगूर, बर्फी और पेठा ने किया. चार्ल्स, डेविड हाल और राजू भटनागर गैंग के बृज मोहन और लक्ष्मी नारायण समेत तीन लोगों ने मिनटों में तिहाड़ की सुरक्षा को चकमा दे दिया.
चार्ल्स ने शागिर्द डेविड को भी धोखा दिया
देश में ही नहीं पूरी दुनिया में चार्ल्स शोभराज की फरारी के चर्चे होने लगे. तिहाड़ की सुरक्षा, दिल्ली पुलिस सबकी भद्द पिट गई. सबसे ताज्जुब की बात थी कि चार्ल्स शोभराज जेल से भागा ही इसलिए था कि वापस जेल आ सके. फरारी के महज दो हफ्ते बाद ही चार्ल्स और डेविड हाल गोवा के एक शानदार रेस्ट्रॉन्ट से गिरफ्तार कर लिए गए. डेविड हाल तब नहीं जानता था कि चार्ल्स खुद चाहता था कि वह गिरफ्तार हो जाए.
दरअसल, तिहाड़ में चार्ल्स शोभराज की सजा पूरी होने वाली थी. सजा खत्म होने के बाद यकीनन उसे थाईलैंड प्रत्यर्पित कर दिया जाता जहां कत्ल के एक मामले में वह दोषी साबित हो चुका था. वहां उसे फांसी की सजा मिलनी तय थी. इसलिए शोभराज ने जानबूझ कर तिहाड़ से फरारी की योजना बनाई, ताकि एक नया आरोप लगे, एक नया मुकद्दमा चले और भारत की सुस्त न्याय प्रणाली की मेहरबानी से उसकी जिंदगी महफूज रहे. गोवा से गिरफ्तार होने के बाद शोभराज और डेविड हाल को अगल-बगल के सेल में ही रखा गया लेकिन हाल ने वर्षों तक उससे बात नहीं की. क्योंकि उसे पता चल चुका था कि चार्ल्स ने उसका इस्तेमाल कर फेंक दिया था.
....अपराधी जो बने मददगार
चार्ल्स की फरारी में डेविड हाल के साथ डॉन राजू भटनागर भी बराबर का मददगार बना था. चार्ल्स शोभराज की फरारी के चर्चे पूरी दुनिया में हुए. लेकिन हैरतअंगेज बात है कि उसकी फरारी से पहले राजू भटनागर भी तिहाड़ से फरार हो गया था, लेकिन उसकी चर्चा तक नहीं हुई. डॉन राजू भटनागर की फरारी के चर्चे इसलिए नहीं होते क्योंकि उसकी फरारी तिहाड़ प्रशासन ही नहीं, पुलिस और कानूनी प्रक्रिया सबके लिए शर्मनाक थी. लिहाजा इस मामले में सभी चुपचाप अपमान का घूंट पी गए. शोभराज को बहुत से लोगों को बेहोश करना पड़ा लेकिन राजू भटनागर को सिर्फ अपने पैरों को तकलीफ देनी पड़ी थी, वह अपने पैरों पर चल कर तिहाड़ से निकल गया, बड़े आराम से.....
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