दिल से जुड़ी बीमारियां और इससे होने वाली मौत के आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं. बढ़ती उम्र के साथ वैसे भी दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है. इन दिनों युवाओं में भी ये समस्याएं देखने को मिलने लगी हैं. जानकार बताते हैं कि लोगों में हृदय संबंधी समस्याओं को लेकर पूरी तरह से जागरुकता नहीं है. सही जानकारी हो तो हृदय संबंधी समस्याओं का भी समय से इलाज कर निवारण किया जा सकता है.
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नई दिल्ली के फोर्टिस एस्कोर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट के एडिशनल डायरेक्टर विशाल रस्तोगी कहते हैं, 'हार्ट फेल्यिर भारत में एक बढ़ती समस्या है. हमारे अस्पताल में हम हर महीने लगभग 20 ऐसे मरीजों से मिलते हैं, जो हार्ट फेल्यिर संबंधी समस्याओं के कारण भर्ती होते हैं. लोगों के लिए हार्ट संबंधी समस्याओं से जुड़े मिथ और सटीक तथ्यों के बारे में जानना जरूरी है.
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हार्ट फेल्यिर और हार्ट अटैक दोनों कार्डियोवास्कुलर डिसीज ही हैं, लेकिन इन दोनों में फर्क होता है. हार्ट अटैक का मतलब है हार्ट तक पहुंचने वाले ब्लड फ्लो में अचानक कोई ब्लॉकेज आ जाना. जबकि हार्ट फेल्यिर एक गंभीर बीमारी है, जो समय के साथ बढ़ती जाती है. इसमें हृदय से खून का प्रवाह ठीक तरीके से नहीं हो पाता है. हार्ट अटैक की वजह से हार्ट फेल्यिर हो सकता है.
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हार्ट फेल्यिर के लक्षणों के बारे में जानकारी हो तो इसका पता लगाया जा सकता है और इसे होने से रोका भी जा सकता है. यदि हृदय संबंधी समस्याओं की फैमिली हिस्ट्री है तो आपको पहले ही सतर्क रहना चाहिए. इसके अलावा कुछ लक्षणों का खासतौर पर ध्यान रखें. मसलन सांस लेने में दिक्कत, मोटापा, चक्कर आना, थकान महसूस होना, एक्सरसाइज करने के बाद बेहतर महसूस होने में काफी वक्त लगना और एड़ियों पर सूजन. ऐसे लक्षण आपको काफी समय तक महसूस हों तो डॉक्टर से जांच जरूर करवाएं. ये हृदय संबंधी समस्या की तरफ संकेत करता है.
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बेशक हार्ट फेल्यिर की समस्या ज्यादातर अधिक उम्र के लोगों को ही होती है, लेकिन युवा आबादी भी अब इसका काफी शिकार हो रही है. शोध बताते हैं कि भारतीयों में हृदय संबंधी समस्याएं विदेशी लोगों की तुलना में काफी पहले से हैं और तुलनात्मक रूप से ज्यादा हैं.
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हार्ट फेल्यिर का मतलब ये नहीं है कि आपके हृदय ने काम करना बंद कर दिया है. ये जीवन का अंत भी नहीं है. बेशक इसका कोई सटीक इलाज नहीं है, लेकिन इससे होने वाली परेशानियों को लक्षणों के आधार पर कम किया जा सकता है. डाइट में बदलाव, डॉक्टर की सलाह के आधार पर नियमित एक्सरसाइज और सही दवाइयों की मदद से मरीज बेहतर जीवन जी सकता है.