डीएनए हिंदी: खिलाड़ियों पर ज़रूरत से ज़्यादा उम्मीद अतिरिक्त दबाव डालती हैं. दबाव का सीधा असर परफॉर्मेंस पर पड़ता है. एथिलीट्स के लिए यही प्रेशर धीमे-धीमे जहर बन जाता है. धीरे-धीरे उनकी परफॉर्मेंस खराब (Player's Performance Down) होती है और वे फिर डिप्रेशन से जूझने लगते हैं. इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि खिलाड़ियों पर जीत के दबाव का असर उनके मेंटल हेल्थ (Mental Health of Players) पर नकारात्मक असर डालता है. टोक्यो ओलंपिक 2020 ने पूरी दुनिया को यही सबक दिया है लेकिन सबक कौन याद रखता है?

सिमोन के मेंटल हेल्थ पर पड़ा नकारात्मक असर

अमेरिका की एक खिलाड़ी हैं- सिमोन बाइल्स. टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) जब पूरे शुमार पर था और खिलाड़ियों में जबरदस्त उत्साह और नजरें थी कि गोल्ड मेडल अपने देश के लिए झटक कर आना है. 24 वर्षीय इस जिमनास्ट ने अपने मेंटल हेल्थ पर फोकस करने की बात कही और फाइनल में मैच नहीं खेलने का निर्णय ले लिया. हश्र यह हुआ कि सीमोन बाइल्स के बाहर होते ही महिलाओं की टीम को लगातार चौथा स्वर्ण हासिल करने से चूकना पड़ा और यह खिताब रूस के खाते में चला गया. सिमोन बाइल्स असाधारण खिलाड़ी हैं. उन्होंने रियो ओलंपिक्स 2016 में कमाल का प्रदर्शन किया था और स्वर्ण पदक हासिल किया था. जब वे महज 16 साल की थीं तब 2013 में विश्व चैंपियनशिप में उन्होंने 2 गोल्ड जीत लिया था.

मैच हारते ही मिलने लगते हैं ताने

सीमोन बाइल्स के इस निर्णय की पूरे दुनिया में तारीफ हुई. लोगों ने कहा कि खेल फिर खेला जा सकता है लेकिन मानसिक स्वास्थ्य अगर बिगड़ा तो ट्रैक पर आने में वर्षों लग सकते हैं. खिलाड़ियों पर अपने देश को और खुद को जिताने का बोझ उन्हें कमजोर करता जाता है. हमेशा नंबर वन आने का प्रेशर, इतना बुरा है कि लोग समझ ही नहीं पाते. एक मैच हारते ही खिलाड़ियों को इतने ताने मिलते हैं कि उनका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है.

होना यह चाहिए कि अगर हार मिली तो पीछ थपथपाई जाए, जीत मिली तो स्वागत हो. वैसे भी खेल महत्वपूर्ण है, खेल का फैसला नहीं. हार-जीत या ड्रॉ, यही होता है खेल में लेकिन इस खेल में लोगों की उम्मीदें, खिलाड़ियों को तोड़ती हैं. यही उम्मीदें विनेश फोगाट से थीं.

विनेश फोगाट भी हो चुकी हैं डिप्रेशन का शिकार

विनेश फोगाट, दुनिया की बेहतरीन रेसलर्स में शुमार होती हैं. 2 बार वे ओलंपिक्स में भाग ले चुकी हैं. उसने पास राष्ट्रमंडल खेलों में 2 स्वर्ण पदक और एशियाई खेलों में एक स्वर्ण पदक है. साल 2019 में उन्होंने विश्व चैंपियनशिप में कांस्य के अलावा 2021 में ही एशियाई चैंपियन में पदक अपने नाम किया था. टोक्यो ओलंपिक 2020 में जब वे महिलाओं की 53 किलोग्राम फ्री स्टाइल कुश्ती में बेलारूस की खिलाड़ी वनीसा कलादजिस्काया से हारीं तो देशभर में उनकी आलोचना होने लगी.

लोगों को उम्मीद थी कि विनेश फोगाट देश के लिए पदक लेकर आएंगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. वे लगातार मेंटल हेल्थ से जूझ रही थीं. यह कम न था कि भारतीय कुश्ती महासंघ ने अनुशासनहीनता के एक मामले में अस्थाई रूप से निलंबित कर दिया. वजह जो भी रहा हो लेकिन मुकाबला हारने के बाद खिलाड़ियों से सहानुभूति रखनी चाहिए, अनुशासनात्मक कार्रवाई बाद में भी हो सकती है. 

दरअसल 2017 में उन्हें चोट लगी थी जिससे वे हाल ही में उबरीं थीं. इसके बाद वह कोरोना संक्रमित हुईं, जिसका उनके स्वास्थ्य पर बेहद बुरा इसर पड़ा. उनकी फिजियोथेरेपिस्ट न होने की वजह से मुश्किलें बढ़ीं. विनेश ने एक इंटरव्यू में कहा था कि टोक्यो ओलंपिक के पहले मुकाबले में वे कांप रही थीं. विनेश ने कई इंटरव्यू में दोहराया कि वे लगातार मेंटल फिटनेस से जूझ रही हैं. उन्होंने यहां तक कह दिया था कि मुझे नहीं पता कि मैं मैट पर कब दोबारा लौटूंगी. पदक लाने का दबाव खिलाड़ियों को कितना तोड़ता है, यह बानगी भर है.

पाकिस्तान से हारते ही टीम ​इंडिया निशाने पर 

बीते 24 अक्टूबर को टी-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप में दुबई इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए मुकाबले में भारत बुरी तरह से हार गई. पाकिस्तान ने बिना कोई विकेट गंवाए 17.5 ओवर में ही भारतीय टीम को हरा दिया. 10 विकेट से मिली यह जीत इसलिए भी खास है क्योंकि पाकिस्तान की विश्वकप में भारत के खिलाफ यह पहली जीत है. 

पड़ोसी देश की टीम से मिली हार के बाद सोशल मीडिया पर भारतीय खिलाड़ियों की लिंचिंग का दौर शुरू हो गया है. भारतीय टीम अब लोगों के निशाने पर है. भारत ने 20 ओवर में 7 विकेट के नुकान पर 151 रन बनाए थे, जिसे पाकिस्तान ने बिना विकेट गंवाए आसानी से हासिल कर लिया. लोग विराट कोहली को इसी मैच के बाद से ही कप्तानी छोड़ने की बात कह रहे हैं, वहीं कुछ लोग रोहित शर्मा को हटाने की बात कर रहे हैं क्योंकि वे जीरो पर आउट हो गए. विराट ने विराट पारी खेली लेकिन टीम की जीत नहीं मिली तो लोगों का गुस्सा उनपर फूट रहा है. ऐसे में जाहिर तौर पर भारतीय खिलाड़ी मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे हैं.

क्यों होता है खिलाड़ियों पर दबाव?

खिलाड़ियों का काम सिर्फ खेलना है. जीतना हर खिलाड़ी चाहता है लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता है. ट्रेनिंग, फिजिकल फिटनेस और सामने वाले खिलाड़ी या टीम की बिना गलती के खेलना, ऐसी स्थितियां बना देते हैं कि हार हो जाती है. यह खेल का हिस्सा है. वे अपना काम कर रहे हैं, जीतने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हार मिली तो यह सहज और सामान्य होनी चाहिए. ट्रांजीशन पीरियड भी जिंदगी का हिस्सा है. मनोचिकित्सकों की राय होती है कि खिलाड़ियों को एक अंतराल के बाद थोड़ा ब्रेक लेना चाहिए. लोगों की टिप्पणियों को नजरअंदाज कर अपने काम पर फोकस करना चाहिए ताकि वे दोबारा से अच्छा खेल सकें. और वैसे भी लोग तो लोग हैं. विराट अगर जीरो पर आउट हो जाए तो गालियां देते हैं, शतक या अर्धशतक जड़े तो किंग कोहली बना देते हैं. 

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खिलाड़ियों पर जीत का हमेशा प्रेशर, मेंटल हेल्थ पर क्यों बात नहीं करते लोग?
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टी20 में भारत-पाकिस्तान के मैच का एक दृश्य
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टी20 में भारत-पाकिस्तान के मैच का एक दृश्य

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