डीएनए हिन्दी: लोकसभा की आजमगढ़ (Azamgarh) व रामपुर (Rampur) सीटों के उपचुनाव के परिणाम में 2024 के दूरगामी संदेश छिपे हैं. दरअसल, ये दोनों सीटें समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का गढ़ रही हैं. यहां पर विपरीत धारा में भी साइकिल की रफ्तार धीमी नहीं हो पाई थी, लेकिन उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के दोनों किले ढह गए.

ये दोनों सीटें ऐसी थीं, जिनकी पहचान प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और पार्टी के कद्दावर नेता आजम खां से है, जो सामाजिक लिहाज से काफी मजबूत माने जाते रहे हैं. जीत के परंपरागत फॉर्म्यूले एमवाई के प्रतीक रहे हैं. नतीजों के बाद सपा खेमें की ओर से सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया जा रहा है. वहीं इस जीत ने बीजेपी को काफी बल दिया है. मुलायम और आजम जैसे कद्दवार नेताओं के संसदीय क्षेत्र में उनकी अपनी पकड़ ढीली होती दिखाई दी है.

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राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अखिलेश यादव का ओवर कान्फिडेंस था कि वह दोनों जगहों पर प्रचार के लिए भी नहीं पहुंचे थे. यहां तक की अपने इस्तीफे से खाली हुई सीट आजमगढ़ भी अखिलेश नहीं गए थे. इसे प्रचार के दौरान बीजेपी ने मुद्दा भी बनाया था. तब सपा की तरफ से कई तरह की बातें कहीं गई थीं. सपा की तरफ से यह भी कहा गया था कि उपचुनाव में अखिलेश प्रचार नहीं करते हैं. वोटिंग के बाद प्रशासन पर सख्ती करने का भी आरोप लगाया था. रामपुर में पार्टी के पोलिंग एजेंट को भगाने की भी शिकायत की गई थी.

प्रदेश के सियासी पंडितों का कहना है कि बीजेपी के लिए यह जीत 2024 के लिए बड़ा संदेश होगी. बीजेपी से आर-पार की लड़ाई करने वाले सपा मुखिया प्रचार में क्यों नहीं गए, वह भी जब मुख्यमंत्री योगी और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने इसे प्रतिष्ठा की लड़ाई बनाई थी, जबकि आजमगढ़ में उनके परिवार के सदस्य ही मैदान में थे. रामपुर में आजम के दबाव में टिकट दिया गया. अगर वह रामपुर प्रचार में जाते तो आजम खान के साथ उनके रिश्ते में और निखार आता.

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राजनीति के जानकारों का कहना है कि ऐसा न करके उन्होंने अपनी राजनीतिक आदूरदर्शिता का परिचय दिया है. इस निर्णय ने सपा के अंदर और भी अंतरविरोध बढ़ेगा. गठबंधन के लोग पहले ही उंगली उठा रहे हैं. ओमप्रकाश राजभर ने दोबारा कमरे से निकल कर संगठन मजबूत करने की सलाह दी है. इधर बीजेपी गैरजाटव और गैरयादव समीकरण को भी मजबत करते हुए आगे बढ़ रही है.

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सियासी पंडितों का कहना है कि बीएसपी मुखिया मायावती ने आजमगढ़ पर पूरा फोकस किया था. इसीलिए उन्होंने शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को उतारा था, जिससे मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो और सपा की निश्चित हार हो. वहीं रामपुर में प्रत्याशी न उतार कर दलित वोटों का बंटवारा होने से रोका और बीजेपी की राह भी आसान की है. इन उपचुनाव के नतीजों का असर कार्यकर्ताओं पर पड़ेगा.

उन्होंने कहा कि बीजेपी को इस परिणाम से मजबूती मिलेगी और 2024 की राह भी आसान होगी जबकि सपा को अभी और मेहनत करने की जरूरत है. आने वाले लोकसभा में अगर सफलता हासिल करनी है तो अभी और ज्यादा कड़े परिश्रम की जरूरत है.

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Win in Azamgarh and Rampur indicative of far-reaching message for 2024 Lok Sabha elections
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Lok Sabha Bypolls: आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव के नतीजों में छिपे हैं दूर के संदेश!
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आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव के नतीजों में छिपे हैं दूर के संदेश!