डीएनए हिंदीः निजता के अधिकार (Right of Privacy) को लेकर सर्वाधिक देश की अदालतों का रुख सदैव ही स्पष्ट रहा है. वही खास बात ये है कि पत्नियों को लोग निजता के अधिकार से दूर लगते हैं. पत्नियों को अधिकारों को लेकर सर्वाधिक आलोचनात्मक बयान दिए जाते हैं. इसके विपरीत लोगों की इस मानसिकता को बदलने को लेकर पंजाब हारियाणा हाइकोर्ट ने एक सकारात्मक फैसला लिया है. कोर्ट का स्पष्ट कहना है कि पत्नी की मर्जी के बिना रिकॉर्ड की गई कॉल्स की रिकॉर्ड पत्नी के निजता के अधिकार का हनन है.
हाइकोर्ट का का बड़ा फैसला
दरअसल, पंजाब हरियाणा हाइकोर्ट (Punjab-Haryana Highcourt) ने पत्नी की कॉल रिकॉर्डिंग (Wife's Call Recordings) को लेकर न्यायमूर्ति लिसा गिल की खंडपीठ ने एक फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है. इस आदेश में पति को तलाक के मुकदमे (हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत) में पत्नी के खिलाफ क्रूरता का मामला दर्ज कराने के लिए उसके और उसकी पत्नी के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत को साबित करने की अनुमति दी गई थी.
नहीं की जा सकती है रिकॉर्डिंग
दरअसल, फैमिली कोर्ट ने कॉम्पैक्ट डिस्क में दर्ज कथित टेलिफोन पर बातचीत साबित करके पति को पत्नी के खिलाफ लगाए गए क्रूरता के आरोपों को साबित करने की अनुमति दी थी. पति ने यह बातचीत फोन के मेमरी कार्ड में रिकॉर्ड की थी और इसे सीडी में लेकर कोर्ट पहुंचा था. शीर्ष कोर्ट ने इसे याचिकाकर्ता की पत्नी के मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन करार दिया.
नहीं मानी जाएगी गवाही
कोर्ट ने कहा कि बिना स्वीकृति के पत्नी की कॉल रिकॉर्ड करना एक निजता के अधिकार का संकेत है. कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसी कोई रिकॉर्डिंग इस तरह कोर्ट में आती है तो ऐसे में कोर्ट इन रिकॉर्डिंग को मान्यता नहीं देगीं. हाईकोर्ट के इस फैसले को सकारात्मक तौर पर देखा जा रहा है. वहीं फैमिली कोर्ट भी इस मामले में पत्नी की रिकॉर्डिंग को मान्यता नहीं देगा.
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