दुर्रू शेहवार. ये नाम है तुर्की की उस राजकुमारी का जिसने मिस्र के राजा, पर्शिया के राजकुमार का रिश्ता ठुकराकर एक भारतीय से शादी की थी. दुर्रू शेहवार की शादी साल 1931 में हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली खान के बड़े बेटे आज़म जाह बहादुर से हुई थी. उस दौर में हैदराबाद के निज़ाम दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति थे.
कौन थीं दुर्रू शेहवार?
दुर्रू शेहवारी तुर्की के आखिरी खलीफा अब्दुल मजीद II की इकलौती बेटी थीं. वह अपने पिता की वारिस बनना चाहती थीं. उन्होंने मॉडर्न एजुकेशन के साथ-साथ मार्शियल आर्ट्स की ट्रेनिंग भी ली थी. सन 1924 में तुर्की लोकतंत्र बना. तब वहां के राजघरानों को देश छोड़ना पड़ा. आखिरी खलीफा अब्दुल मजीद द्वितीय का परिवार फ्रांस के नीस शहर में रहने लगा. इस दौरान ब्रिटेन की रेड क्रेसेंट सोसायटी ने पूरी दुनिया के मुस्लिम शासकों से अपील की कि वो खलीफ़ा की मदद करें. मदद का हाथ बढ़ाने वालों में हैदराबाद के सातवें निज़ाम मीर उस्मान अली भी थे. उन्होंने खलीफा को पेंशन के तौर पर 300 पाउंड और उनके परिवार के दूसरे सदस्यों के लिए गुजारा भत्ता भेजने का फैसला किया.
कैसे तय हुई थी शादी?
दुर्रू शहवार जब शादी की उम्र की हुईं तब उनके लिए पूरी दुनिया के कई मुस्लिम राजघरानों से रिश्ता आया. रिश्ता भेजने वालों में पर्शिया के शाह और मिस्र के राजा भी शामिल थे. तब मौलाना शौकत अली के कहने पर निज़ाम ने अपने बड़े बेटे आज़म जाह का रिश्ता शहज़ादी दुर्रू शेहवार के लिए भेजा. खलीफा इस रिश्ते से इनकार नहीं कर पाए, क्योंकि मुश्किल वक्त में निज़ाम ने उनका साथ दिया था. जवाब में खलीफा ने निज़ाम से कहा कि वो अपने छोटे बेटे मौज़म जाह की शादी उनके भाई की बेटी निलोफर से कर दें. दोनों भाइयों की शादी नीस शहर में 12 नवंबर, 1931 को हुई थी.
शादी के बाद की कहानी
शादी के बाद दुर्रू शेहवार को दुरदाना बेगम और प्रिंसेस ऑफ बेरार का टाइटल दिया गया. निज़ाम ने अपने दोनों बेटों को वारिस नहीं बनाया, उन्होंने दुर्रू शेहवार और आज़म जाह के बड़े बेटे मुकर्रम जाह को अपना वारिस बनाया, जो बाद में हैदराबाद के आठवें निज़ाम बने. आज़म जाह के शादी के बाहर के रिश्तों के चलते दुर्रू और उनके बीच दूरियां आ गईं, उन्होंने 1954 में तलाक ले लिया. तलाक के बाद वो कुछ वक्त हैदराबाद में रहीं, फिर लंदन चली गईं.
दुर्रू और उनकी बहन निलोफर ने मिलकर हैदराबाद में लड़कियों की पढ़ाई को बढ़ावा देने की दिशा में काम किया. उन्होंने लंदन में कई मैटरनिटी यूनिट, स्कूल, कॉलेज, दवाखाने और अस्पताल खुलवाए थे. वह बीच-बीच में हैदराबाद आया करती थीं और जब भी आतीं तब बड़ी संख्या में लोग उनसे मिलने पहुंचा करते थे. दुर्रू का निधन साल 2006 में लंदन में हुआ.
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तुर्की की वो राजकुमारी जो भारत की बहू बनीं, मिस्र के राजा का रिश्ता ठुकराकर की थी शादी