डीएनए हिंदी: Maharashtra News- महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा आरक्षण का मुद्दा फिर से गर्मा गया है. जालना जिले के अंतरावली-सुराती गांव में आरक्षण के मुद्दे पर शुरू हुई भूख हड़ताल पुलिस के लाठीचार्ज के बाद हिंसक संघर्ष में बदल गई है. शुक्रवार से जिले में तनाव का माहौल बना हुआ है, जिसके बाद महाराष्ट्र के दूसरे हिस्सों में आरक्षण आंदोलनकारियों के समर्थन की आवाजें आने लगी हैं. NCP सुप्रीमो शरद पवार और शिवसेना (यूबीटी) चीफ उद्धव ठाकरे से लाठीचार्ज का ठीकरा राज्य सरकार के सिर फोड़ा है, लेकिन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम अजीत पवार ने इस पूरे प्रकरण के लिए विपक्ष को ही जिम्मेदार ठहराया है. फिलहाल सरकार मनोज जारांगे पाटिल को मनाने की कोशिश कर रही है, जिनके नेतृत्व में मराठा आरक्षण के लिए भूख हड़ताल शुरू हुई थी. मनोज की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें जबरन अस्पताल ले जाने की प्रशासन की कोशिश के बाद ही पब्लिक भड़की थी, जिससे पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा था. इस सारे विवाद के चलते मनोज पूरे महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन का चेहरा बन गए हैं.
पढ़ाई बीच में छोड़कर आंदोलन से जुड़े थे मनोज
मनोज जारांगे पाटिल मूल रूप से जालना जिले के नहीं बल्कि बीड जिले के रहने वाले हैं. बीड जिले के मातोरी गांव में उनका घर है. पिछले कई साल से वह अपने परिवार के साथ जालना के अम्बाड तालुका के अंकुश नगर एरिया में रह रहे हैं. मनोज लंबे समय से मराठा आरक्षण आंदोलन से जुड़े रहे हैं. उन्होंने साल 2010 में 12वीं क्लास में ही पढ़ाई छोड़ दी थी और आंदोलन से जुड़ गए थे. इस दौरान उन्होंने भरण-पोषण के लिए एक होटल में काम किया और आंदोलन में भी संघर्ष करते रहे. साल 2011 से अब तक वह 30 से ज्यादा बार आरक्षण आंदोलन छेड़ चुके हैं. इसके चलते मराठवाड़ा एरिया में लोग उनका बेहद सम्मान करते हैं. इससे पहले भी वे साल 2016 से 2018 तक जालना जिले में आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व कर चुके हैं. तब भी सरकार को बेहद परेशानी का सामना करना पड़ा था.
आर्थिक स्थिति खराब, फिर भी आंदोलन के लिए बेच दी पैतृक जमीन
मनोज के परिवार में माता-पिता, पत्नी, तीन भाई और चार बच्चे हैं. उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. मनोज ने मराठा आरक्षण से जुड़े मुद्दे उठाने के लिए 'शिवबा' नाम से एक संगठन बना रखा है. आर्थिक स्थिति खराब होने पर भी मनोज आरक्षण आंदोलन के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. संगठन के लिए रकम कम पड़ने पर उन्होंने अपनी 4 एकड़ पैतृक जमीन में से 2 एकड़ बेच दी थी. साल 2021 में भी मनोज के नेतृत्व में जालना के पिंपलगांव में तीन महीने तक मराठा आरक्षण के लिए धरना चला था.
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मराठा आरक्षण के लिए पढ़ाई छोड़ी, जमीन बेची, जानिए कौन हैं इस आंदोलन के नेता मनोज जारांगे पाटिल