डीएनए हिंदी: उत्तराखंड के सिल्क्यारा सुरंग में बीते 14 दिनों से 41 मजदूर फंसे हुए हैं. उनके परिजन इस उम्मीद में हैं कि वे घर से बाहर आ जाएंगे लेकिन ये इंतजार लंबा होता जा रहा है. सिलक्यारा सुरंग में फंसे अपने बेटे के सुरक्षित निकलने का इंतजार कर रहे एक शख्स ने कहा कि एक बार वह बाहर आ जाए तो वह फिर उसे यहां कभी काम नहीं करने दूंगा.
मुंबई में हुई एक हादसे में चौधरी अपने बड़े बेटे को गंवा चुके हैं. उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के खेतिहर मजदूर चौधरी फिलहाल अपने दूसरे पुत्र की सुरक्षित वापसी के इंतजार में बेचैनी से समय गुजार रहे हैं.
'अगर बेटे को कुछ हुआ तो क्या करेंगे'
मजदूरों का रेस्क्यू लंबा खिंचा तो उन्होंने कहा, 'मंजीत मेरा इकलौता बेटा है. अगर उसे कुछ हो गया तो मैं और मेरी पत्नी कैसे जीएंगे.' बाइस वर्षीय मंजीत उन 41 श्रमिकों में शामिल है जो 12 नवंबर को चारधाम यात्रा मार्ग पर बन रही साढ़े चार किलोमीटर लंबी सिलक्यारा सुरंग के एक हिस्से के ढह जाने से उसमें फंस गए हैं.
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'युद्ध है लेकिन डरो मत'
सुरंग के ढहने के दूसरे दिन घटनास्थल पर पहुंच गए मंजीत के पिता ने उससे रविवार को यहां छह इंच के पाइप के जरिए स्थापित संचार माध्यम से बातचीत की. उन्होंने कहा, 'मेरा बेटा ठीक है. बचाव कार्यों में देरी की वजह से मैं थोड़ा चिंतित हूं. आज मैंने उसे बताया कि यह एक युद्ध है लेकिन उसे डरना नहीं है. हम जल्दी ही सफल होंगे . हम बहुत गरीब हैं और पत्नी के गहने गिरवी रख 9000 रुपये का ऋण लेकर यहां आए थे. यहां प्रशासन ने मुझे एक जैकेट और जूते दिए और मेरा ऋण भी चुका दिया.'
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इतंजार की वजह से टूट रही उम्मीद
सुरंग के बाहर मौजूद एक अन्य मजदूर ने कहा कि उसकी उम्मीद टूट रही है. प्रशासन ने सुरंग के बाहर फंसे हुए श्रमिकों के परिजनों के लिए एक शिविर स्थापित किया है. उनकी हर दिन सुरंग में फंसे अपने परिजनों से बात भी कराई जा रही है. अमेरिकी ऑगर मशीन के खराब हो जाने के कारण फंसे श्रमिकों तक पहुंचने के लिए मलबे में रास्ता बनाए जाने वास्ते की जा रही ड्रिलिंग रूक गई थी. मलबे में फंसे ऑगर मशीन के ब्लेड को काटने के लिए हैदराबाद से लाए गए प्लाज्मा कटर और चंडीगढ़ से लाए गए लेजर कटर की मदद ली जा रही है. (इनपुट: भाषा)
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मजदूरों का परिवार परेशान, किसी ने गिरवी रखा जेवर, किसी की टूटी उम्मीद