डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत ‘तलाक-ए-हसन’ (Talaq-e-Hasan) और अन्य एकतरफा तरीके से तलाक को अवैध और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है. याचिका में केंद्र से तलाक की प्रक्रिया के लिए लैंगिक और धार्मिक रूप से तटस्थ एकसमान आधार तय करने की भी मांग की गई है.

पुणे की एक महिला द्वारा दायर याचिका के अनुसार, रीति-रिवाजों और प्रक्रिया के अनुसार ‘तलाक-ए-हसन' के तहत एक बार तलाक कहने के बाद अगर तीन महीनों या 90 दिनों तक वैवाहिक संबंध से परहेज किया जाता है तो तलाक हो जाता है. जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की बेंच याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई. बेंच ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा.

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स्पीड पोस्ट से शख्स ने भेजा था तलाक
पीड़िता के वकील निर्मल कुमार अंबष्ठ ने दायर याचिका में कहा गया है कि पेशे से इंजीनियर याचिकाकर्ता को उसके पति ने अपने वैवाहिक घर से बाहर करने के बाद ‘तलाक-ए-हसन’ प्रक्रिया के माध्यम से स्पीड पोस्ट के जरिए एक पत्र भेजकर तलाक दे दिया. महिला ने दावा किया कि शादी के 2 साल के दौरान कई मौकों पर उसके साथ मारपीट की गई और उसे ससुराल से बाहर निकाल दिया गया. केवल इस कारण से कि वह अपने पति और उसके परिवार द्वारा पैसे की सभी मांगों को पूरा करने के लिए राजी नहीं हुई. महिला के पति ने उसे 16 जुलाई 2022 को स्पीड पोस्ट के जरिए तलाक का पत्र भेजा था जिसमें उसके खिलाफ विभिन्न आधारहीन और झूठे आरोप लगाए गए थे.

याचिका में कहा गया, ‘याचिकाकर्ता ने अपने पति और ससुराल वालों द्वारा किए गए अत्याचारों और उत्पीड़न और एकतरफा तरीके से शादी तोड़ने के खिलाफ स्थानीय पुलिस से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने इस आधार पर मामला दर्ज नहीं किया कि ‘तलाक-ए-हसन' मुस्लिम विवाहों को भंग करने के लिए एक मान्यता प्राप्त प्रक्रिया है.’ याचिका में कहा गया है कि ‘तलाक-ए-हसन’ और एकतरफा तरीके से दिया गया तलाक संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है. जिससे मुस्लिम महिलाओं की गरिमा के अधिकार का हनन होता है. अनुच्छेद 21 जीवन की सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है.

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क्या है तलाक-ए-हसन?
याचिका में कोर्ट से यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 की धारा 2 संविधान के अनुच्छेद 14,15,21 और 25 का उल्लंघन करने के कारण असंवैधानिक है, क्योंकि यह ‘तलाक-ए-अहसन’ और एकतरफा तरीके से तलाक करने की प्रथाओं को मान्य करने का प्रयास करती है. याचिका पर नोटिस जारी करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इसे दो अलग-अलग लंबित रिट याचिकाओं के साथ जोड़ दिया, जिसमें ‘तलाक-ए-हसन’ के मुद्दे को उठाया गया है. ‘तलाक-ए-हसन’ मुसलमानों में तलाक का एक तरीका है जिसके द्वारा कोई पुरुष तीन महीने की अवधि में हर महीने एक बार तलाक का उच्चारण करके अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है.

(PTI इनपुट के साथ)

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Supreme Court seeks response from Central Government on Talaq-e-Ehsan
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'तलाक-ए-अहसन' पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र सरकार से मांगा जवाब
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'तलाक-ए-हसन' पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र से मांगा जवाब, जानें क्या कहता है कानून?