डीएनए हिंदी : बिहार में लड़कियों का स्कूल छोड़ना बड़ी समस्या है. इसी के मद्देनज़र मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2015 में लड़कियों के बीच सैनिटरी नैपकिन (Sanitary Napkin) बांटने का फैसला लिया था. यह सैनिटरी नैपकीन स्कूल में दाख़िल उन सभी छात्राओं के लिए था जिनकी उम्र प्यूबर्टी के क़रीब है, पर इस मामले में ताज़ा झोल नज़र आया है.
एक स्कूल में लड़कों को भी सैनिटरी नैपकिन बांटा गया है
सारण ज़िले के मांझी ब्लॉक के हल्कोरी है स्कूल से एक अजीब ओ गरीब मसला सामने आया है जिसके मुताबिक़ सैनिटरी नैपकिन(Sanitary Napkin) के लाभार्थी लड़कियों के साथ लड़के भी हैं. यह स्कूल सह-शिक्षा यानी लड़के और लड़कियों दोनों के लिए है. सरकार के द्वारा दिए गए फंड्स की अनियमितता को उजागर करती इस ख़बर के अनुसार साल 2016-17 में प्रति विद्यार्थी सालाना 150 रूपये ख़र्च के हिसाब से सैनिटरी नैपकिन बांटा गया है. पाने वालों में कम से कम 7 लड़के हैं. ज़िले के शिक्षा पदाधिकारी अजय कुमार सिंह ने बताया कि इस खर्च में अनियमितता की जानकारी उक्त स्कूल के हेड मास्टर ने अधिकारियों को दी है. शिक्षा पदाधिकारी ने जानकारी दी कि इस मामले की जांच के लिए दो सदस्यीय एक कमिटी का गठन किया गया है. अनियमितता के लिए ज़िम्मेदार सरकारी मुलाज़िमों/ कर्मचारियों पर कार्यवाई की जाएगी. कमिटी से चार दिनों के अंदर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है.
साठ करोड़ का है सालाना बजट
स्कूल जाने वाली किशोर लड़कियों को ड्रापआउट से बचाने के लिए लागू की गयी Sanitary Napkin बांटने की इस योजना का सालाना बजट 60 करोड़ रूपये है. सरकारी अनुमानों के अनुसार करीब 37 लाख लड़कियों को इससे फ़ायदा मिलता है. बिहार सरकार ने लड़कियों को स्कूल के लिए उत्साहित करने के लिए पूर्व में सायकिल और छात्रवृत्ति देने की योजना भी चलाई है.
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