डीएनए हिंदी: दिल्ली कैबिनेट ने एक दशक से अधिक समय पहले यमुना में जाने वाले सीवेज को फंसाने और उसका ट्रीटमेंट करने के लिए इंटरसेप्ट सीवर प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी. दिल्ली जल बोर्ड (DJB) के अनुसार अब इस इंटरसेप्टर सीवर प्रोजेक्ट (ISP) परियोजना का काम अब पूरा हो चुका है.
डीजेबी के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सीलमपुर में एक खंड ऐसाको छोड़कर नालों में सीवेज को 'ट्रैप' करने की सुविधा ज्यादातर पूरी हो चुकी है. वहीं सीलमपुर का एक खंड भी मार्च में पूरा हो जाएगा. हालांकि फंसे हुए सीवेज के लिए उपचार क्षमता अभी पूरी तरह से चालू नहीं हुई है. आईएसपी पर काम सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है.
इस मामले में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा जल मंत्रालय को सौंपी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, 242 एमजीडी (प्रति दिन मिलियन गैलन) अपशिष्ट जल में से परियोजना को रोकने और उसके ट्रीटमेंट करने की उम्मीद थी और लगभग 170 एमजीडी का इलाज किया जा रहा है.
डीजेबी अधिकारी ने कहा कि कोंडली, रिठाला और कोरोनेशन पिलर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में काम चल रहा है और दिसंबर 2022 तक पूरा होने की उम्मीद है. डीपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार, शहर में उत्पन्न होने वाले सीवेज की अनुमानित मात्रा 720 एमजीडी है और 34 एसटीपी पर मौजूदा ट्रीटमेंट क्षमता 577 एमजीडी है जिससे 143 एमजीडी अपशिष्ट जल को अनुपचारित छोड़ दिया जाता है. मौजूदा क्षमता में से केवल 514 एमजीडी का उपयोग किया जाता है. दिसंबर में 22 एसटीपी ने डीपीसीसी द्वारा निर्धारित उपचार मानकों का पालन नहीं किया था.
गौरतलब है कि दिल्ली के तीन बड़े नाले नजफगढ़, पूरक और शाहदरा का सीवेज को यमुना में जाता हैं जबकि छोटे नाले इन बड़े नालों से मिलते हैं. आईएसपी के हिस्से के रूप में इन नालियों में सीवेज को 'ट्रैप' करने के लिए इंटरसेप्टर चैंबर्स का निर्माण किया गया है. इसके लिए कचरे को निकटतम सीवेज पंपिंग स्टेशन और वहां से निकटतम एसटीपी में स्थानांतरित करने के लिए नालियों के किनारे पाइप बिछाए गए हैं. परियोजना के तहत करीब 108 नालों का पानी बंद किया जाएगा.
इस परियोजना से जुड़े अधिकारी ने बताया कि आईएसपी यानी ट्रैपिंग सिस्टम की कीमत करीब 1,395 करोड़ रुपये है. इसमें एसटीपी पर काम की लागत शामिल नहीं है. पर्यावरणविद इस परियोजना के नदी पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर संशय में हैं. पर्यावरणविद दीवान सिंह ने कहा, “मौजूदा एसटीपी ठीक से काम नहीं कर रहे हैं और उपचारित पानी के लिए निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करते हैं. उस समय के सीवेज आउटपुट के आधार पर इस परियोजना की कल्पना बहुत पहले की गई थी. तब से उत्पादन में वृद्धि हुई है और उपचार अंतर अभी भी बना रहेगा.”
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यमुना नदी की सफाई और कायाकल्प की निगरानी के लिए एनजीटी के आदेश पर नियुक्त प्रधान समिति की पिछले महीने हुई बैठक के कार्यवृत्त के अनुसार प्रोफेसर एके गोसाईं, प्रोफेसर एमेरिटस, आईआईटी दिल्ली ने बताया कि दिल्ली जल बोर्ड द्वारा किया जा रहा नालों को फंसाने और नदी में अनुपचारित सीवेज के प्रवेश को नियंत्रित करने का काम शहर के लिए सीवरेज मास्टर प्लान लागू होने तक एक अस्थायी उपाय रहेगा.
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