डीएनए हिंदी: साल 2008 से 2011 के दौरान नोएडा (Noida) में शुरू की गई फार्महाउस योजनाओं (Farmhouse schemes) को उत्तर प्रदेश सरकार ने मंजूरी नहीं दी थी और इस योजना में संदेहास्पद ढंग से आवंटन किए जाने से सरकारी खजाने को 2,833 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) की ओर से प्रदेश विधानसभा में पेश रिपोर्ट में नोएडा फार्महाउस योजना पर कई गंभीर सवाल उठाए गए हैं. इसमें नोएडा प्राधिकरण (Noida Authority) की नीतियों में कई अनियमितताओं का भी जिक्र किया गया है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक सीएजी की इस रिपोर्ट में नोएडा प्राधिकरण की नितियों, प्लानिंग, जमीनों के अधिगृहण, प्रॉपर्टी अलॉटमेंट और आंतरिक नियंत्रण में कई खामियों का भी जिक्र किया गया है. नोएडा प्राधिकरण की इन कमियों की वजह से सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ.
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CAG के 500 पन्नों की रिपोर्ट में अहम खुलासे
सीएजी की इस रिपोर्ट में करीब 500 पेज हैं जिनमें वर्ष 2005 के बाद के दौर की समीक्षा की गई है. सीएजी की इस रिपोर्ट के बारे में नोएडा प्राधिकरण का कहना है कि उन्होंने रिपोर्ट अभी विस्तार से नहीं पढ़ी है. नोएडा प्राधिकरण की सीईओ अधिकारी ऋतु माहेश्वरी (Ritu Maheshwari) ने कहा है कि अतीत में रही आवंटन से संबंधित खामियां अब दुरूस्त की जा रही हैं. ड्राफ्ट रिपोर्ट में उठाए गए कुछ बिंदुओं से हम सहमत थे जबकि कुछ बिंदुओं पर प्राधिकरण ने जवाबी तथ्य भी रखे थे. अंतिम रिपोर्ट की स्टडी अभी बाकी है.
बिना किसी तय प्रक्रियाओं के लाई गई फार्महाउस योजनाएं!
सीनियर IAS अधिकारी ऋतु माहेश्वरी ने कहा कि रिपोर्ट के अध्ययन के बाद सरकार से मिले निर्देशों के मुताबिक कदम उठाए जाएंगे. सीएजी ने फार्महाउस प्लॉट के आवंटन पर कहा है कि साल 2008-11 के दौरान ऐसी दो योजनाएं लाई गई थीं जिनमें 157 आवेदकों को 18.37 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र की जमीन आवंटित की गई. सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों फार्महाउस योजनाएं पूर्व-अनुमति और निर्धारित प्रक्रिया के बगैर ही लाई गई थीं. रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि फार्महाउस की श्रेणी उत्तर प्रदेश सरकार की भवन नियमन (Building Regulations) संबंधी अनुमति के बगैर ही जोड़ दी गई थी.
रिजर्व प्राइस कम रखने पर भी उठ रहे सवाल
CAG रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों योजनाएं प्राधिकरण की क्षेत्रीय योजना के अनुरूप नहीं थीं जिसमें रिहायशी क्षेत्र से दूर फार्महाउस के विकास की बात कही गई थी. इसके साथ ही कैग ने फार्महाउस प्लॉट के लिए रिजर्व प्राइस कम रखने को लेकर भी सवाल उठाए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक नोएडा अथॉरिटी ने किसानों से जमीन खरीदी और कंपनियों के दफ्तरों ( corporate offices) वाले एक विकसित इलाके से सटकर फार्महाउस के प्लॉट आवंटित कर दिए.
क्यों कम रखी गईं प्लॉट की दरें?
कैग ने अपनी रिपोर्ट में फार्महाउस प्लॉट की दरें बहुत कम रखे जाने पर भी सवाल उठाए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक बाजार दर के हिसाब से भुगतान की क्षमता रखने वाले आवंटियों (entities/individuals) को भी 3,100 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से प्लॉट दिए गए जबकि साल 2008-09 में न्यूनतम दर 14,400 रुपये प्रति वर्ग मीटर थी.
संदेहास्पद है प्लाट का आवंटन
रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि इतनी कम दर पर प्लॉट आवंटित किया जाना काफी संदेहास्पद (Highly Questionable) है और इससे आवंटियों को 2,833 करोड़ रुपये का अनुचित मुनाफा हुआ जिससे प्राधिकरण को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ. प्लॉट का आवंटन भी पारदर्शी तरीके से नहीं किया गया है. सरकारी खजाने को 2,833 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
PAC नीतियों पर उठ रहे हैं सवाल
कैग की रिपोर्ट में फार्महाउस प्लॉट के आवंटन में नियमों के उल्लंघन की बात कही गई है. आवंटन के लिए प्लॉट अलॉटमेंट कमेटी (PAC) की नीतियों पर भी कैग ने सवाल खड़े किए हैं. CAG की रिपोर्ट में आवंटन की पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए गए हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि आवंटन की पूरी प्रक्रिया सार्वजनिक हित की जगह व्यक्तिगत हितों की कवायद पर आधारित थी. कई रिपोर्ट्स को बार-बार दबाना आवंटन प्रक्रिया में आई अनियमितताओं की ओर इशारा करता है.
(PTI इनपुट के साथ)
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