पूर्वोत्तर का एक राज्य मिजोरम (Mizoram). यहां की राजधानी आइजोल (Aizawl) है. यहां मिजो जनजाति (Mizo Tribe) बहुसंख्यक है. इसकी सीमाएं, त्रिपुरा (Tripura), असम (Assam) और मणिपुर (Manipur) से होकर गुजरती हैं. इस राज्य की करीब 722 किलोमीटर तक की सीमा बांग्लादेश (Bangladesh) और म्यांमार (Myanmar) से लगती है.
साल 1972 तक मिजोरम असम का हिस्सा था. कैसे यह भारत का 23वां राज्य बना, कैसे यहां उग्रवाद पनपा, कैसे यहां के सशस्त्र विद्रोह का दमन हुआ और कैसा था यहां का पहला आम चुनाव, आइए जानते हैं.
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क्यों बागी हो गए थे मिजोरम के लोग?
मिजोरम के अतीत में विद्रोह की नींव है. साल 1947 में जब देश स्वतंत्र हुआ तब यह राज्य असम का हिस्सा था. साल 1959 में भीषण अकाल पड़ा तो यहां के लोगों ने असम और केंद्र सरकार से मदद मांगी. मिजोरम के लोगों को लगा कि उन्हें मदद नहीं मिल रही है.
कैसे एक शख्स ने भड़का दी बगावत?
मिजोरम घाटी भुखमरी का शिकार हो गई थी. लोगों ने हथियार हाथों में लेकर हिंसक आंदोलन किया. जिस संगठन ने शुरुआत की उसका नाम मिजो नेशनल फ्रंट था. MNF नेता लालडेंगा अगुवा थे.
पाकिस्तान-चीन भी साजिश में थे शामिल!
इस आंदोलन में विदेशी ताकतें कूद पड़ीं. पाकिस्तान और चीन विद्रोहियों तक हथियार पहुंचाने लगे. 1 मार्च 1966 को ऑपरेशन जेरिको लॉन्च हुआ. विद्रोहियों ने घोषणा की कि वे भारत से आजाद हैं.
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भारत से अलग होना चाहते थे विद्रोही
विद्रोहियों के हौसले इतने बुलंद हो गए थे कि उन्होंने असम राइफल्स के हेडक्वार्टर पर फहरा रहे तिरंगे तक को उतार फेंका. टेलीफोन एक्सचेंज को विद्रोहियों ने तोड़ दिया, जिससे वहां की कोई खबर भारत तक न पहुंचे. यह खबर इंदिरा गांधी को लगी.
इंदिरा गांधी ने उतार दी थी वायुसेना
3 मार्च को सेना ने सिल्चर से मिजो पहाड़ियों में दाखिल होने की कोशिशों में जुट गई. सेना हेलीकॉप्टर से पर्चे गिरा रही थी कि किसी भी कीमत पर आम लोग विद्रोम में शामिल न हों.
5 मार्च 1966 को मिजोरम की राजधानी आइजोल में इंदिरा गांधी ने वायुसेना को उतार दिया था. वायुसेना ने कुछ गोले बरसाए थे. कहा गया कि ये राहत सामग्री हैं लेकिन लोगों ने विधानसभा ले जाकर दिखाया कि ये बम हैं, फूड पैकेज नहीं.
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इस बहादुर जनरल ने की बागियों की बोलती बंद
सैन्य अभियान की अगुवाई जनरल मार्शल सैम मानेक शॉ कर रहे थे.उनकी सख्त कार्रवाई की वजह से स्थानीय लोगों का विद्रोह और बढ़ गया. सेना के बढ़ते खौफ के चलते लोग MNF नेताओं की शामत आई और उन्हें भागना पड़ा. MNF के सबसे बड़े नेता लालडेंगा पाकिस्तान के रास्ते भागे और लंदन चले गए.
क्या थी सरकार और मिजो विद्रोहियों की शर्तें?
वे कई साल बाद भारत लौटे. सेना ने विद्रोह कुचल दिया था. साल 1980 में लालडेंगा ने कहा कि वे सरकार के साथ शांति वार्ता चाहते हैं. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इसके लिए तैयार हो गई थीं. उन्होंने शर्त रखी कि भारतीय संविधान के तहत ही MNF की मांगे मानी जा सकती हैं.
और ऐसे पड़ी सबसे बड़ी बाधा
अक्टूबर 1984 को लालडेंगा और इंदिरा के बीच शांति वार्ता होने वाली थी लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी. उनके बॉडीगार्ड्स ने उन्हें मार डाला था. जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो मिजोरम शांति वार्ता आगे बढ़ी. 30 जून 1986 को मिजोरम शांति समझौता हुआ.
कैसे अलग राज्य बना मिजोरम?
साल 1986 में किसी तरह मिजोरम नेशनल फ्रंट और भारत सरकार के बीच मिजोरम शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए. साल 1987 में मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला. मिजोरम में 2 दशकों का हिंसक संघर्ष चला. 1987 में मिजोरम प्रदेश में पहली बार चुनाव हुए और लालडेंगा मिजोरम के पहले मुख्यमंत्री बने.
आइए जानते हैं मिजोरम का चुनावी इतिहास
मिजोरम में कांग्रेस और मिजो नेशनल फ्रंट की ही चुनावी लड़ाई रही है. यह अलग राज्य जब नहीं बना था, तब भी यहां की लोकसभा सीट अस्तित्व में थी. मोजरम में साल 1971 से लोकसभा चुनाव हो रहे हैं.
मिजोरम के पहले सासंद संगालिना थे. वे पांचवी लोकसभा (5 मार्च 1971-18 जनवरी 1977) तक के लिए चुने गए थे. मिजोरम के दूसरे सांसद डॉ. रोथुमा थे. वे पीपुल्स कॉन्फ्रेंस से चुनाव लड़े थे. उन्होंने 7वें लोकसभा चुनाव में भी जीत हासिल की थी. मिजोरम के चौथे सांसद लालदुहावमा थे. वे आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए थे. वह कांग्रेस से थे.
इसके बाद क्रमश: डॉ. सी सिल्वर, डॉ. एच.लालुंगमुआना, वनलालजौमा सांसद रहे. वनलालजौमा मिजो नेशनल फ्रंट के नेता रहे हैं, वे 14वीं लोकसभा के लिए भी चुने गए थे. सीएल रुआला दो बार सांसद चुने गए. मिजोरम के मौजूदा सांसद सी लालरोसांगा हैं. वे मिजो नेशनल फ्रंट के हैं.
क्या है मिजोरम का चुनावी माहौल?
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में मिजो नेशनल फ्रंट के नेता सी लालरोसांगा मिजोरम के सांसद चुने गए थे. मिजोरम में इस बार मिजो नेशनल फ्रंट बुरी तरह से हारी और जोरम पीपुल्स मूवमेंट को शानदार जीत मिली. लालदुहोमा इस राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं.
मोदी लहर में, जोरमथंगा के नेतृत्व वाली मिजो नेशनल फ्रंट चुनाव हार गई. बीजेपी इस पार्टी के साथ गठबंधन में थी. 40 सदस्यों वाली विधानसभा में मिजो नेशनल फ्रंट को महज 10 सीटें मिली हैं. बीजेपी दो सीटों पर कामयाब हुई. सत्तारूढ़ ZPM के पास कुल 27 सीटें हैं. अब देखने वाली बात यह होगी कि इस चुनाव में NDA गठबंधन की जीत होती है या ZPM ही बाजी मार लेगी.
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जिस मिजोरम में भड़की थी बगावत, इंदिरा ने उतारी थी सेना, वहां अब कैसा है चुनावी माहौल?