डीएनए हिंदी: इसी महीने रिलीज हुई विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' को लेकर जबरदस्त चर्चाएं जारी हैं. सच्ची घटनाओं पर आधारित इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों के पलायन का दर्द पर्दे पर उकेरा गया है. वहीं, घाटी से पलायन की सच्ची घटना की बात करें तो ऐसा माना जाता है कि पंडित टीका लाल टपलू की हत्या के बाद ही घाटी में पंडितों का कत्लेआम और पलायन शुरू हुआ था. पंडित टीका लाल टपलू पेशे से वकील और जनसेवक भी थे. जनता के हितों के लिए काम करने वाले पंडित टीका लाल घाटी में लाला जी के नाम से मशहूर थे. आगे जानें लाला जी की जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें जो उनके बेटे ने साझा की हैं.
जब शुरू हो गया था पंडितों के खिलाफ षड्यंत्र
पंडित टीका लाल टपलू जनसंघ से जुड़े थे और बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी थे. वहीं, उनके बेटे आशुतोष टपलू ने हमारे संवाददाता कुमार साहिल संग बातचीत के दौरान पिता के बारे में कुछ ऐसी बातें शेयर की हैं जिनके बारे में कम ही लोग जानते होंगे. आशुतोष टपलू बताते हैं कि 'यह बात करीब 1986 के आसपास की है जब कश्मीर में हिंदुओं और खासकर पंडितों के खिलाफ षड्यंत्र शुरू हो गया था जो मेरे पिता यानी पंडित टीका लाल टपलू को चुभने लगी थी. कश्मीर में उस वक्त फारुख अब्दुल्ला सीएम थे. दिल्ली को कश्मीर के सही हालात नहीं बताए जा रहे थे और कश्मीर में पाक समर्थित आतंकवादियों की संख्या बढ़ती जा रही थी'.
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'कश्मीर हमारा है, मैं पीछे नहीं हटूंगा'
उन्होंने बताया कि 'मुस्लिम युवाओं को पंडितों के खिलाफ उकसाया जा रहा था जिसके खिलाफ मेरे पिता पंडित टीका लाल टपलू आवाज उठा रहे थे. उस वक्त कश्मीर के हालातों से दिल्ली सरकार को भी कोई फर्क पड़ रहा था लेकिन मेरे पिता हार मानने वाले नहीं थे. उन्हें धमकियां मिल रही थी, हम सब घरवाले परेशान थे, मां भी चिंतित थीं. मैं बीस साल का था लेकिन दुनियादारी की समझ थी. मैंने पिताजी से कहा कि कश्मीर के अलावा हम लोगों की जिम्मेदारियां भी आप पर हैं. इस पर पिताजी ने कहा कि देखो मैं इस लड़ाई से पीछे नहीं हटूंगा. कश्मीर हमारा है, हमारी जन्म भूमि है हम कैसे छोड़ सकते हैं'?
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13 सितंबर को आतंकियों ने ले ली जान
आशुतोष टपलू के मुताबिक '13 सितंबर 1989 को पिताजी घर से बाहर कोर्ट जाने के लिए निकले तब किसी गली में एक बच्ची रो रही थी, पिताजी ने पूछा कि क्यों रो रही हो तो उसकी मां ने बताया कि इसे जलसे में जाना है और पैसे मांग रही है. ये सुनकर पंडित टीका लाल टपलू ने पांच रुपये का नोट निकालकर बच्ची के हाथ पर रख दिया. इसके कुछ देर बाद ही वहां घात लगाए बैठे आतंकियों ने पिताजी की पीठ पर गोलियों की बौछार कर दी. पिताजी वहीं निढाल हो गए. जब हमें जानकारी मिली तो मैं नि:शब्द था, मां हैरान थी, हम उसी परेशानी में घाटी पहुंचे. वहां पहुंचते ही हमें गिरफ्तार लिया गया और यही नहीं बिना किसी बात के कई प्रतिबंध भी लगा दिए गए'.
रो रहे थे हर धर्म के लोग
आशुतोष ने बताया कि कैसे उनके पिता के निधन पर मुसलमान भी रो रहे थे. उन्होंने कहा- 'मैं पिताजी के अंतिम संस्कार में लोगों से मिला, पड़ोसियों से मिला. वहां, हिंदुओं के अलावा मुसलमान भी रो रहे थे. एक चश्मदीद ने जो बताया कि जब पिताजी की अंतिम सांसें चल रही थीं तब उन्होंने गोलियां बरसा रहे आतंकियों से कहा कि तुम लोग कायर हो, पंडित टीका लाल टपलू की पीठ पीछे वार किया? ऐसी कोई गोली बनी ही नहीं जो पंडित टीका लाल टपलू के सीने को पार कर सके.
ये पहली हत्या थी और फिर शुरू हुआ तांडव
बताया जाता है कि पंडित टीका लाल टपलू की हत्या वो पहली हत्या थी जिसमें आतंकियों के मंसूबे कामयाब हो गए थे. इसके बाद तो उनकी बर्बरता का रूह कंपा देने वाला सिलसिला शुरू हो गया. बढ़ती आतंकी घटनाओं की वजह से वहां के पंडितों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा. हत्याएं, गली- नुक्कड़ों पर भड़काऊ पोस्टर चिपकाए जाने शुरू हो गए. हालात इतने खराब हो गए थे कि पंडितों से कहा जाने लगा कि या तो धर्म बदल लो या घाटी छोड़ दो.
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इस कश्मीरी पंडित की हत्या के बाद शुरू हुआ था Kashmir में आतंकियों का तांडव, बेटे ने सुनाई दर्दनाक कहानी