डीएनए हिंदी: भारतीय सेना अपने सामर्थ्य के लिए जानी जाती हैं लेकिन क्या आपको पता है कि भारतीय सेना में एक बकरी भी काम करती है जिसे सेना ने हवलदार का दर्जा दिया है. सेना के सभी अधिकारी उसके साथ किसी अधिकारी की तरह ही बर्ताव करते हैं. भारतीय सेना के 7 कुमाऊं बटालियन में हवलदार सतवीर नाम की बकरी है लेकिन इसकी कहानी क्या है.
हवलदार सतवीर के तौर पर बकरी को अधिकारी की तरह ही ट्रीट किया जाता है. कमांडिंग ऑफिसर कर्नल यज़ाद इलविया उसे खिलाते पिलाते हैं. हवलदारी सतवीर की बात करें तो औपचारिक रूप से हरे और पीले रंग में एक छोटी ऊनी टोपी पहने, कुमाऊं रंग, सोने के धागे में रेजिमेंटल क्रेस्ट के धागे दिखती है. यह लगभग पिछले 60 वर्षों से हर सुबह 7 कुमाऊं के कमांडिंग ऑफिसरों के साथ है.
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सेना के सभी कार्यक्रमों शामिल होती है बकरी
बता दें कि यह पहाड़ी बकरी सेना के सभी सैनिकों के साथ रहती है और सभी नियमों का पालन करती है. कुमाऊंनी सैनिकों के लिए सतवीर असली GOAT (ग्रेट ऑफ ऑल टाइम)है. पहले मैग्निफिसेंट सेवेन कहलाने वाली इस बटालियन ने गर्व से अपना नाम बदलकर SATVIR बटालियन रखा है.
सतवीर दिन की शुरुआत में पीटी और सेना के साथ परेड करती है. वह शाम को भी खेल और परेड में शामिल होती है. उसे वर्दी पहनने तक की छूट दी गई है. सभी औपचारिक अवसरों पर हवलदार SATVIR अपनी औपचारिक पोशाक में दिखाई देती है लेकिन इसकी कहानी क्या है चलिए बताते हैं.
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क्या है Satvir की कहानी
दरअसल, यह कहानी साल 1963 की है. यूनिट के एक लॉन्गरेंज पेट्रोल (LRP) रास्ता भटक गई थी. इसके बाद एक सफेद पहाड़ी बकरी की मदद से ही वह वापस यूनिट लौटने में सफल हुए थे. इसके बाद यूनिट ने सफेद बकरी को अपना लिया था. इसे SATVIR नाम दिया गया.
नाम भी है दिलचस्प
बकरी का नाम भी काफी दिलचस्प रखा गया है. इसमें S यूनिट 7 कुमाऊं का नाम है. A बटालियन का आदर्श वाक्य: ऑल द वे टू बैटल, T तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर कर्नल थम्बू का नाम पर, V लेटर 2IC विश्वनाथन का नाम है. I उस समय सबसे वरिष्ठ कंपनी कमांडर ईश्वर सिंह का नाम और R- तत्कालीन सूबेदार मेजर रावत का नाम था.
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सेना ने दिया विशेष सम्मान
इसका औपचारिक नामकरण 1 सितंबर, 1965 को यूनिट के तीसरे स्थापना दिवस पर किया गया था. SATVIR को लांस नाइक के पद से सम्मानित किया गया था. तब से वह अन्य सभी सेवारत सैनिकों की तरह अपनी प्रोमोशन पा रहा है. उसे 1968 में नाइक के पद पर पदोन्नत किया गया, 1971 में हवलदार के पद पर नियुक्त किया गया तब से यूनिट की यह परंपरा जारी है.
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सेना में हवलदार है ये पहाड़ी बकरी, सैनिकों के साथ सुबह लगाती है रेस