Haryana Assembly Elections 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव में 5 अक्टूबर को जनता अपने प्रतिनिधि का निर्वाचन करने वाली है. लेकिन पार्टियों में आवाजाही अब भी चल रही है. गुरुवार को अशोक तंवर जैसे कद्दावर नेता की कांग्रेस में वापसी इसका बड़ा उदाहरण है. वोटिंग से एक दिन पहले भी कांग्रेस और भाजपा को इतनी चिंता एक-दूसरे के कैंडीडेट्स से मिल रही चुनौतियों की नहीं सता रही है, जितनी परेशानी 'भितरघातियों' ने खड़ी कर रखी है. विधानसभा चुनाव 90 सीटों के लिए हो रहे हैं, जबकि भाजपा के लिए कम से कम 19 तो कांग्रेस के लिए 29 विधानसभा सीटों पर टिकट नहीं मिलने से बागी हुए 'अपने' नेताओं ने ही जीत की गारंटी को दूर कर रखा है. गुरुग्राम और हिसार जैसी कुछ सीटों पर तो पार्टियों पर बागी उम्मीदवार निर्दलीय उतरकर भी ऐसे भारी पड़ रहे हैं कि उनका जीतना तय माना जा रहा है. एकतरफ इन बागियों के कारण पार्टी के कोर वोट बैंक में सेंध लगने से नुकसान होने के आसार हैं, वहीं जहां वोटर्स भाजपा-कांग्रेस दोनों से ही नाराज हैं, वहां ये बागी विजेता बनकर भी उभरते दिख रहे हैं.
क्या है बागी उम्मीदवारों का समीकरण
विधानसभा चुनाव में नामांकन वापसी के दिन तक भी कांग्रेस और भाजपा ने अपने बागी नेताओं को मनाने की पूरी कोशिश की थी. भाजपा ने जहां 33 नेताओं को मान-मनौव्वल के जरिये पर्चे वापस लेने के लिए मना लिया था, वहीं कांग्रेस भी 36 बागियों को मनाने में सफल रही थी. इसके बावजूद भाजपा और कांग्रेस के सामने कम से कम दो दर्जन सीटों पर अपने 'भितरघातियों' की चुनौती कुतुबमीनार की तरह खड़ी हुई है. भाजपा का 15 सीटों पर 19 और कांग्रेस को 20 सीटों पर 29 बागी उम्मीदवारों का सामना करना पड़ रहा है. कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा तो भाजपा में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी खुद बागियों से घर लौटने की अपील करते दिखे, लेकिन सबकुछ बेकार रहा है. इसके चलते भाजपा ने बड़े पैमाने पर बागी नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखाया है.
कई दिग्गज नाम भी हैं बागी नेताओं में
भाजपा के लिए बागी नेताओं में हिसार से सावित्री जिंदल, रानिया से रणजीत सिंह चौटाला, तोशाम से शशि रंजन परमार, लाडवा से संदीप गर्ग, कलायत से विनोद निर्मल आदि शामिल हैं, जबकि कांग्रेस के लिए पानीपत (ग्रामीण) से विजय जैन, उचाना कलां से वीरेंद्र घोघडिया, अंबाला कैंट से चित्रा सरवारा आदि का नाम है.
गुरुग्राम सीट बन रही बागी उम्मीदवार के भारी होने का उदाहरण
बागी उम्मीदवार किस तरह पार्टियों के समीकरण बिगाड़ रहे हैं. इसका बड़ा उदाहरण गुरुग्राम सीट बन रही है. गुरुग्राम सीट पर भाजपा ने पिछले दोनों चुनाव वैश्य उम्मीदवारों की बदौलत जीते थे, लेकिन इस बार ब्राह्मण चेहरे मुकेश शर्मा को उतार दिया. इस सीट पर ब्राह्मण उम्मीदवार कभी नहीं जीता है. इससे नाराज होकर वैश्य समाज से दावा ठोक रहे नवीन गोयल पार्टी छोड़कर निर्दलीय के तौर पर उतर गए हैं. इससे भाजपा का कोर वोटर बंटना तय हो गया है. वैश्य समाज तो सीधे तौर पर अपने इकलौते उम्मीदवार यानी नवीन गोयल के समर्थन की घोषणा भी कर चुका है. कांग्रेस का कोर वोटबैंक इस सीट पर पंजाबी समुदाय है. कांग्रेस ने इसी समुदाय के मोहित ग्रोवर को टिकट दिया है, जो 2019 में भी यहां चुनाव हार गए थे. कांग्रेस के इसी चयन ने पंजाबी समुदाय को उनसे छिटका दिया है. पंजाबी समुदाय यहां भाजपा के साथ नहीं जाता है, इसलिए उसका रुझान भी नवीन गोयल की तरफ दिखाई दे रहा है. इससे नवीन गोयल निर्दलीय होने के बावजूद दलीय उम्मीदवारों पर भारी पड़ रहे हैं.
क्या है गुरुग्राम का जातीय समीकरण
गुरुग्राम सीट पर कुल 4,43,593 वोटर हैं. इनमें सबसे ज्यादा करीब 1 लाख पंजाबी वोटर हैं. करीब 40 हजार जाट और 40 हजार ब्राह्मण वोटर भी हैं. इसी तरह यहां वैश्य वोटर भी करीब 45 हजार हैं. जाट वोटर भी इस सीट पर पंजाबी समुदाय के उम्मीदवार के साथ नहीं खड़ा होता है. वैश्य वोटर समेत उसका साथ भी नवीन गोयल को मिल सकता है. ये फैक्टर भी इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार को भारी साबित कर रहा है.
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