डीएनए हिंदी: कैंसर के इलाज से जुड़े नए डेटा चौंकाने वाले हैं. जानलेवा बीमारी से पीड़ित बच्चों के इलाज में लैंगिक भेदभाव साफ नजर आ रहा है. 10 साल के डेटा बताते हैं कि मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में 2 लड़कों पर एक ही लड़की का ट्रीटमेंट हो रहा है. टीएमएच कैंसर का देश में सबसे बड़ा अस्पताल है. 

इलाज में भी हो रहा है भेदभाव 
लैंगिक भेदभाव के ये आंकड़े हैरान करने वाले हैं. कैंसर विशेषज्ञों का भी कहना है कि यह एक गंभीर मुद्दा है और इस पर सही तरीके से बात की जानी चाहिए. हमें समझना होगा कि इसके पीछे कौन से कारण हैं. बच्चियों को कैंसर का इलाज नहीं मिल पाने की वजह पूर्वाग्रह हो सकते हैं. जागरुकता का अभाव या फिर आर्थिक स्थिति भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. कारण जो भी हो लेकिन कैंसर स्पेशलिस्ट का कहना है कि इसे समझकर दूर करने की कोशिश होनी चाहिए. 

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10 साल के आंकड़ों में मिली जानकारी 
एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के अनुसार, 2011 से 2021 के बीच में टीएमएच में देश भर से आए 18,394 बच्चों का ट्रीटमेंट किया गया था. इनमें 11,962 यानी कि 65 फीसदी लड़के हैं. इस दौरान सिर्फ 6,432 लड़कियों का इलाज किया गया था जो कि 35 फीसदी है. 

दूसरे इंस्टिट्यूट में भी यही है ट्रेंड 
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि यह ट्रेंड किसी एक इंस्टिट्यूट तक ही सीमित नहीं है. वाराणसी के होमी जहांगीर भाभा में भी यही ट्रेंड देखने को मिल रहा है. बच्चों के कैंसर ट्रीटमेंट के लिए यह टीएमसी के बाद दूसरा सबसे बड़ा अस्पताल है. साल 2019 में 325 कैंसर मरीज बच्चों में 197 यानी कि 60 फीसदी लड़के थे. साल 2020 में 392 मरीजों में से 250 यानी कि 63 फीसदी बच्चे लड़के थे. 

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gender gap in cancer treatment Girls losing out to boys in getting treatment 
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Cancer जैसी बीमारी के इलाज में भी बेटियों से भेदभाव, हैरान करने वाले आंकड़े
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