डीएनए हिंदी: भारत में कोरोना के खिलाफ लड़ाई में दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन अभियान जारी है. पिछले साल शुरू हुए इस वैक्सीनेशन अभियान की सफलता पर शुरुआत में आशंका जताई जा रही थी लेकिन जिस तेजी की साथ हमारे देश ने वैक्सीनेशन किया इससे पूरी दुनिया अचंभित है. भारत ने यह सब मुख्य तौर पर देश में ही बनाई गईं कोवैक्सीन और कोविशील्ड वैक्सीन का उपयोग कर किया है.
क्या आपने सोचा है कि हमारे देश में बड़ी तादाद में विदेशी वैक्सीन कंपनियां क्यों नहीं आ पाईं. इसका खुलासा पहली बार स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से किया गया है. दरअसल इसकी वजह थी विदेशी वैक्सीन कंपनियों की दादागिरी.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि मॉडर्ना और फाइज़र की वैक्सीन भारत को एक बड़े बाज़ार के तौर पर देख रही थी. इन दोनों अमेरिकी कंपनियों को लगता था कि भारत कभी विदेशी वैक्सीन के बिना अपने देश की 136 करोड़ से ज्यादा आबादी को वैक्सीन नहीं लगा पाएगा.
स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से जानकारी दी गई कि जब नवंबर 2020 में भारत में कोरोनावायरस की पहली लहर पीक पर थी, हर रोज तकरीबन 1 लाख केस आ रहे थे. उस समय मॉडर्ना और फाइजर भारत सरकार से वैक्सीन खरीदने के लिए मोलभाव कर रही थीं या यूं कहें कि भारत को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रही थीं.
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यह खुलासा हुआ एक किताब के लॉन्च के दौरान. किताब का नाम है- A nation to protect - Leading India through the covid crisis. इसकी लेखिका हैं प्रियम गांधी मोदी ने. किताब के लांच के मौके पर जी न्यूज के एडिटर इन चीफ सुधीर चौधरी मंच संचालन कर रहे थे.
इस मौके पर सुधीर चौधरी ने सवाल किया कि विदेशी वैक्सीन भारत में क्यों नहीं आ पाई. अब तक सरकार इस सवाल के कूटनीतिक जवाब ही देती आई है लेकिन पहली बार स्वास्थ्य मंत्री ने साफ किया कि यह नया भारत है जो अपनी शर्तों पर चलता है. हमने विदेशी कंपनियों के सामने झुकना मंज़ूर नहीं किया. हमने अपनी वैक्सीन बना ली.
स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना ने भारत सरकार के सामने शर्त रखी कि वो वैक्सीन बेचेगी और वो भी शर्तों के साथ. मॉडर्ना ने indemnity against liability clause रखा यानी वैक्सीन की वजह से कोई साइड इफेक्ट हो जाए या वैक्सीन की वजह से किसी की मौत हो जाए तो कंपनी की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी.
उन्होंने बताया कि इसी तरह फाइज़र कंपनी की शर्त थी कि उन्हें Sovereign immunity waiver मिले. मोटे तौर पर इस Waiver का मतलब यह है कि भारत के कानून के तहत कंपनी पर कोई केस नहीं चलाया जा सकेगा. उन्होंने कहा कि आज भारत में जो वैक्सीन बन रही हैं. वो या तो पूरी तरह स्वदेशी हैं या भारत में ही बनाई जा रही हैं.
उन्होंने कहा कि कोवैक्सीन भारत में ही बनी है, कोविशील्ड भारत में ही बनाई जाती है. इनके अलावा भारत सरकार ने स्पूतनिक और जॉनसन एंड जॉनसन की सिंगल डोज वैक्सीन को मंजूरी दी है. यह दोनों भी भारतीय फार्मा कंपनियां ही बना रही हैं.
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स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि इन कंपनियों ने वैक्सीन बेचने के नाम पर कई देशों का किस तरह शोषण किया है. फाइजर कंपनी ने अर्जेंटीना की सरकार से कहा था कि अगर उसे कोरोना की वैक्सीन चाहिए तो वो एक तो ऐसा इंश्योरेंस यानी बीमा खरीदे जो वैक्सीन लगाने पर किसी व्यक्ति को हुए नुकसान की स्थिति में कंपनी को बचाए यानी अगर वैक्सीन का कोई साइड इफेक्ट होता है तो मरीज को पैसा कंपनी नहीं देगी बल्कि बीमा कंपनी देगी.
उन्होंने बताया कि जब सरकार ने कंपनी की बात मान ली थी तो फाइजर ने वैक्सीन के लिए नई शर्त रख दी और कहा था कि इंटरनेशनल बैंक में कंपनी के नाम से पैसा रिजर्व करे. देश की राजधानी में एक मिलिट्री बेस बनाए जिसमें दवा सुरक्षित रखी जाए. एक दूतावास बनाया जाए जिसमें कंपनी के कर्मचारी रहें ताकि उनपर देश के कानून लागू न हों.
स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि इसी तरह फाइजर ने ब्राजील के सामने शर्ते रखी. फाइजर कंपनी ने ब्राजील के सामने वैक्सीन के बदले ऐसी ही तीन मुश्किल शर्तें रखी थी. पहली शर्त, वैक्सीन का पैसा बैंक के इंटरनेशनल अकाउंट में जमा करना है. दूसरा यह कि साइड इफेक्ट्स होने पर कंपनी के ऊपर मुकदमा नहीं चलेगा और तीसरी शर्त ये कि ब्राजील अपनी सरकारी संपत्तियां कंपनी के पास गारंटी की तरह रखे.
(रिपोर्ट- पूजा मक्कड, जी मीडिया)
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