डीएनए हिंदी: अगर आपको लगता है कि भारत में सबसे प्रदूषित जगह दिल्ली है तो जनाब आप गलत हैं. दिल्ली प्रदूषण की राजधानी का तमगा तो हासिल कर ली है लेकिन देश में ही ऐसी कई जगहें हैं जहां दिल्ली से ज्यादा प्रदूषण है. एक जगह ऐसी भी है, जहां प्रदूषण का स्तर, दिल्ली से तीन गुना तक, ज्यादा रहता है. ये जगह है मध्य प्रदेश का सिंगरौली जिला, जिसकी पहचान, पूरे देश में बिजली और कोयला उत्पादक जिले के तौर पर है. अब सिंगरौली पर प्रदूषण का काला साया छा चुका है. दुनियाभर के प्रदूषित क्षेत्रों का डेटा तैयार करने वाली अमेरिकी संस्था, ब्लैक स्मिथ ने सिंगरौली को दुनिया के 10 प्रदूषित क्षेत्रों में शामिल किया है. भारत की केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण एजेंसी ने भी सिंगरौली को देश के 22 सबसे प्रदूषित क्षेत्रों की लिस्ट में रखा है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (NGT) की रिपोर्ट के मुताबिक सिंगरौली जिले में प्रदूषण की वजह से लोग गंभीर तौर पर बीमार पड़ रहे हैं. हमारे खास शो डीएनए में जानिए सौरभ जैन से सिंगरौली का हाल.
सिंगरौली देश का एक ऐसा शहर है, जहां हवा से लेकर पानी तक में जहर इस कदर घुल चुका है कि अब इंसानों की जान तक पर बन आई है. प्रदूषण की वजह से वहां रहने वाले लोगों की हड्डियां गलने लगी हैं. 40 साल की उम्र में लोग बूढ़े हो रहे हैं और लोगों की औसत उम्र भी करीबन पांच साल घट रही है. सिंगरौली जिले की पहचान ही, वहां रहने वाले लोगों की जान की दुश्मन बन चुकी है. सिंगरौली, मध्य प्रदेश का वह जिला है जहां देश मे सबसे अधिक मात्रा में बिजली और कोयले का उत्पादन किया जाता है.
सिंगरौली का विकास, वहां के विनाश का कारण बना है. यहां 11 थर्मल पॉवर प्लांट, 16 कोयले की खदानें, 10 केमिकल प्लांट, 309 क्रशर प्लांट के साथ-साथ स्टील और सीमेंट के उद्योग भी हैं. NGT की रिपोर्ट के मुताबिक इन उद्योगों से हर वर्ष 45 लाख टन कचरा निकलता है. इसमें से 35 लाख टन तो सिर्फ कोयले की राख है. देश के एक बहुत बड़े हिस्से को बिजली से रोशन करने वाला मध्य प्रदेश का सिंगरौली, खुद प्रदूषण के अंधेरे में घिरा हुआ है, जिसका असर ना सिर्फ वहां की आबो-हवा बल्कि, वहां रहने वाले लाखों लोगों की जिंदगी पर भी पड़ रहा है.
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Zee News की टीम ने सिंगरौली में प्रदूषण के खतरनाक स्तर और उसके असर की पड़ताल की तो जो तस्वीर सामने आई, वह बेहद चिंताजनक नजर आई. अगर आप दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में रहते हैं और अकसर ये शिकायत करते हैं कि प्रदूषण की वजह से सांस लेना मुश्किल हो रहा है.
कम उम्र में बूढ़े हो रहे हैं लोग
सिंगरौली जिले में NTPC के पास उत्तरप्रदेश की सीमा में सोनभद्र जिले के चिल्खाटांड गांव में बदहाली का आलम ये है कि यहां हर एक घर छोड़कर लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में हैं. यहां के चिलकाटाड़ गांव के नंदलाल 40 की उम्र में ही बूढ़े हो गए. 15 की उम्र तक सामान्य थे. इसके बाद हड्डियां गलनी शुरू हुईं. चिल्खाटांड गांव में छोटे-छोटे बच्चे भी गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं. हिमांशु जब डेढ़ साल का था, तो उसे शुगर की बीमारी ने घेर लिया. अब 17 साल का हो चुका हिमांशु इस बीमारी से इस तरह घिर चुका है कि उसे हर दिन इन्सुलिन के सहारे जीना पड़ रहा है.
सिंगरौली की जमीन दूषित हो गई है. ये सिंगरौली में प्रदूषण के साइड इफेक्ट्स हैं जो यहां रहने वाले लोग झेल रहे हैं. यहां की अधिकांश आबादी अब भी हैंडपंप, कुएं और नदी के पानी पर ही निर्भर है. इसकी वजह से लोग फ्लोरोसिस और कैंसर जैसी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं. सिंगगरौली की जमीन भी दूषित हो चुकी हैं. इस जमीन में उगने वाली सब्जियां और अनाज खाकर भी लोग बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं.
तूसाखांड गांव के किसान छोटेलाल के पास 8 एकड़ जमीन है. पहले एक एकड़ में 20 से 25 क्विंटल धान हुआ करता था, लेकिन अब पॉवरप्लांट की वजह से जमीन इतनी ख़राब हो चुकी हैं कि इसकी उर्वरक क्षमता बेहद कम हो चुकी हैं. सिंगरौली में थर्मल पॉवर प्लांट से 21 हजार मेगावाट बिजली रोज पैदा होती है. इसके लिए 10.3 करोड़ टन कोयले की जरूरत पड़ती हैं. प्रबंधन नहीं होने की वजह से बिजली उत्पादन के बाद लिक्विड फ्लाई ऐश को खुले नदी-नालों में बहा दिया जाता है. कोल माइंस में लगातार कोयले की खुदाई से मिट्टी और राख के पहाड़ खड़े हो चुके हैं. ये कभी भी तेज बारिश में भरभराकर पूरे गांव को तबाह कर सकते हैं.
नाम की बनी समिति, काम नहीं हुआ है कुछ
सिंगरौली में प्रदूषण की जाँच और उसके निपटारे के नाम पर उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश की एक जॉइंट हाई लेवल कमेटी बनाई गई है लेकिन फ़िलहाल कोई नतीजा सामने दिखाई नहीं दे रहा. सिंगरौली में प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड का दफ्तर भी महज एक औपचारिकता बनकर रह गया है.
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सिंगरौली में प्रदूषण सिर्फ हवा और पानी में नहीं है बल्कि वहां के प्रशासन, सिस्टम में भी लापरवाही का प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है , जहां सिर्फ बातों के जरिये प्रदूषण से निबटने की कवायदें चलती रहती हैं. बड़े बड़े दावों से अगर प्रदूषण नियंत्रित हो पाता तो सिंगरौली में प्रदूषण का नामो-निशान कब का मिट चुका होता. अगर अभी भी सिंगरौली को प्रदूषण से नहीं बचाया गया तो आने वाले सालों में यहां रहने वाले सैकड़ों लोग बेवक्त और बेमौत मारे जाएंगे.
सिंगरौली का मिट्टी-पानी सब हो चुका है प्रदूषित
रोजाना हजारों टन केमिकल कचरा, राख और प्रदूषित धुएं की वजह से, सिंगरौली का अंडर ग्राउंड वाटर भी दूषित हो चुका है. यहां पानी में टोटल डिसॉल्व्ड सॉलिड्स यानी TDS का लेवल 500 से 700 तक है, जो आमतौर पर 100 होना चाहिए. पानी में फ्लोराइड की मात्रा प्रति लीटर डेढ़ मिलीग्राम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए लेकिन सिंगरौली के पानी में ये 3 से 4 मिलीग्राम प्रति लीटर है. सिंगरौली के पानी में मर्करी यानी पारे की मात्रा 0.026 मिलीग्राम, प्रति लीटर है, जो 0.001 होनी चाहिए.
अगर नहीं हुआ काम तो तबाह हो जाएगा सिंगरौली
सिर्फ पानी ही नहीं, सिंगरौली की मिट्टी भी पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी है. यहां प्रति किलो मिट्टी में 10.009 मिलीग्राम पारा मिला है जबकि ये 6.6 मिलीग्राम, प्रति लीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए. इसका असर ये हो रहा है कि सिंगरौली में जमीन से पैदा होने वाली सब्जियां और अनाज खाकर लोग बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं. प्रदूषित पानी पीकर भी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं. आंकड़ों के मुताबिक, साल 2022 में सिंगरौली में टीबी के 1,836 मरीज मिले थे. साल 2023 में 1,000 से ज्यादा मरीज अब तक सामने आ चुके हैं. यह प्रदूषण की वजह से हो रहा है लेकिन चिंता की बात ये है कि मध्य प्रदेश में करीब डेढ़ दशक से सत्ता के सिंहासन पर विराजमान, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सिंगरौली में बढ़ते हुए प्रदूषण की चिंता नहीं सताती.
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सिंगरौली पर प्रदूषण का काला छाया, क्यों बर्बादी से नहीं बचा रही सरकार?