डीएनए हिंदी: Bihar News- बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार को पटना हाई कोर्ट ने करारा झटका दे दिया है. हाई कोर्ट ने राज्य में चल रही जातीय जनगणना (bihar caste census) पर अंतरिम रोक लगा दी है. पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस वी चन्द्रन की बेंच ने ये फैसला सुनाया. इस मामले की अगली सुनवाई 3 जुलाई को होगी, जिसमें तय होगा की इस जाति आधारित सर्वे को आगे जारी रखा जाए या नहीं. इसे सत्ता में मौजूद जदयू और राजद के गठबंधन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, जो केंद्र सरकार के विरोध के बावजूद जातियों का सही आंकड़ा जुटाने के नाम पर जाति आधारित जनगणना करा रहे थे. हालांकि नीतीश कुमार सरकार इस विरोध को यह कहकर नकारती रही है कि जातियों का सही आंकड़ा मिलने पर राज्य की जनकल्याणकारी नीतियों के सही मैनेजमेंट में मदद मिलेगी. अब इस पर रोक लग जाने से उनका यह महत्वाकांक्षी अभियान बीच में ही थम गया है. उधर, नीतीश कुमार ने हाई कोर्ट के फैसले के बाद कहा कि जाति आधारित जनगणना सब लोगों की राय से तय हुई है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि इसका विरोध क्यों हो रहा है.
जाति आधारित जनगणना सब लोगों के राय से तय हुआ है ये सबके हित के लिए हो रहा है लेकिन मुझे समझ में नहीं आ रहा इसका विरोध क्यों हो रहा है...इसका मतलब लोगों को मौलिक चीज़ों की समझ नहीं है। ये पहले अंग्रेज़ों के जमाने से तो होता ही था, ये 1931 से बंद हुआ: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश… pic.twitter.com/yZrTDPMgrO
— ANI_HindiNews (@AHindinews) May 4, 2023
सुप्रीम कोर्ट ने किया था रोक से इनकार
जातीय जनगणना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से भी रोक लगाने की गुहार की गई थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कमेंट किया था कि ये सभी पब्लिसटी हासिल करने के लिए दाखिला याचिका लगती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सभी को हाई कोर्ट जाने का निर्देश दिया था.
कोर्ट का निर्देष पढ़ने के बाद ही सरकार अपना अगला कदम उठाएगी। मगर ये जाति आधारित जनगणना नहीं था बल्कि सर्वे था, जो सरकार का कोई पहला सर्वे नहीं था। हमारी सरकार ये सर्वे कराने के लिए प्रतिबद्ध है। ये जनता के हित में था और जनता की मांग थी कि ये सर्वे होना चाहिए: पटना हाईकोर्ट के… pic.twitter.com/n9a0wIdN5W
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पहले जान लेते हैं कि जातीय जनगणना क्या है
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने राज्य में लोक कल्याणकारी नीतियों के उचित प्रबंधन के लिए सही जातीय आंकड़े जुटाने की मुहिम शुरू की थी. उनका कहना है कि सही आंकड़े नहीं होने से पिछड़े वर्ग और अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग की योजनाओं का लाभ अति पिछड़ों व महा दलितों (दलित वर्ग में भी बेहद पिछड़ा हुआ तबका) को नहीं मिल पा रहा है. राज्य सरकार का तर्क है कि 1951 से आने वाले डाटा में SC/ST का आंकड़ा गिना जा रहा है, लेकिन ओबीसी और अन्य जातियों का सही आंकड़ा मौजूद नहीं है. साल 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करते समय भी साल 1931 के ओबीसी डाटा को आधार बनाया गया था, जिसके आधार पर देश की 52% आबादी इस वर्ग में मानी गई थी. इसके आधार पर ही ओबीसी का 27% आरक्षण तय हुआ है. सरकार का मानना है कि ओबीसी की आबादी इससे कहीं ज्यादा है, जिसके हिसाब से आरक्षण में उनकी हिस्सेदारी का आंकड़ा सही नहीं है. इसी कारण उन्होंने जाति आधारित सर्वे शुरू कराने का निर्णय लिया था, जिसे जातिगत जनगणना कहा जा रहा है.
बिहार सरकार ने इस मुद्दे को ठीक से हाईकोर्ट के सामने नहीं रखा इसलिए इस प्रकार का निर्णय आया है। मैं तो इस महागठबंधन सरकार पर आरोप लगाता हूं कि जाति आधारित जनगणना पर इनकी (बिहार सरकार) मंशा गलत थी। NDA सरकार ने तो जाति आधारित जनगणना कराने का निर्णय लिया था: पटना हाईकोर्ट द्वारा… https://t.co/5N3kgRzA5Z pic.twitter.com/BHPzCjDn3i
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मई में पूरी होनी थी जातीय गणना, अब लगा ब्रेक
केंद्र सरकार की तरफ से जातीय जनगणना का विरोध किए जाने के बावजूद नीतीश कुमार लगातार इस तरफ आगे बढ़ते रहे हैं. उन्होंने बिहार विधानसभा में 18 फरवरी, 2019 को और फिर विधान परिषद में 27 फरवरी, 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव पारित कराकर इसकी राह साफ कर दी थी. इस साल जनवरी में जातीय गणना की शुरुआत की गई थी. इसे दो चरण में मई तक पूरा किया जाना था. हालांकि अब हाई कोर्ट के रोक लगा देने से फिलहाल इसके आंकड़े सामने आने पर ब्रेक लग गया है.
हाई कोर्ट में राज्य सरकार ने दिए थे ये तर्क
जातीय जनगणना के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में 6 याचिकाएं दाखिल कर इस पर रोक लगाने की मांग की गई थी. इन याचिकाओं पर हाई कोर्ट के चीफ जस्टि, के. विनोद चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की डिविजन बेंच सुनवाई कर रही है. राज्य सरकार ने हाई कोर्ट बेंच के सामने बताया था कि जातीय जनगणना आरक्षण के सही बंटवारे के लिए जरूरी है. राज्य सरकार ने निकाय व पंचायत चुनावों के आरक्षण का हवाला दिया था, जिसमें फिलहाल 37 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है. यह आरक्षण ओबीसी को 20%, अनुसूचित जाति को 16% और अनुसूचित जनजाति को 1% मिल रहा है. राज्य सरकार का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट की 50% की सीमा के हिसाब से वह अभी 13% आरक्षण और दे सकती है, लेकिन इसके सही बंटवारे के लिए सही जातिगत डाटा की जरूरत है. हाई कोर्ट बेंच ने सुनवाई के बाद बुधवार को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
#WATCH कोर्ट का निर्देष पढ़ने के बाद ही सरकार अपना अगला कदम उठाएगी। मगर ये जाति आधारित जनगणना नहीं था बल्कि सर्वे था, जो सरकार का कोई पहला सर्वे नहीं था। हमारी सरकार ये सर्वे कराने के लिए प्रतिबद्ध है। ये जनता के हित में था और जनता की मांग थी कि ये सर्वे होना चाहिए: पटना हाईकोर्ट… pic.twitter.com/wdUj028VvI
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केंद्र बता रहा संविधान के खिलाफ
केंद्र सरकार जातिगत जनगणना के खिलाफ है. पिछले साल फरवरी में लोकसभा में गृह राज्यमंत्री ने SC/ST से इतर किसी भी जाति की गणना को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताया था. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई के दौरान हलफनामे में यही बात कही थी. भारतीय संविधान का गणना कानून 1948 किसी राज्य को जातीय गणना कराने का अधिकार नहीं देता है. इसी कारण नीतीश सरकार ने कागजों में इसे जातीय जनगणना के बजाय जाति आधारित सर्वे कहा है.
नीतीश-तेजस्वी साधना चाहते हैं सियासी गणित
बिहार की राजनीति में पिछड़ी जातियों का दबदबा है. इनके बूते पर ही 1990 में मंडल आयोग लागू होने के बाद इसका समर्थन करने वाले नेताओं की क्षेत्रीय पार्टियों ने ही वहां राज किया है. इनमें पहले लालू प्रसाद यादव की RJD हावी रही तो उसके बाद भाजपा के कंधे पर पैर रखकर नीतीश कुमार की JDU ने सत्ता सुख भोगा है. भाजपा भी लगातार ओबीसी वोटबैंक को ही फोकस कर रही है. नीतीश और लालू की जगह अब RJD की कमान संभाल रहे तेजस्वी यादव को जातिगत जनगणना के जरिये ओबीसी की गिनती कराकर 50% आरक्षण की सीमा को आगे बढ़वाने का कानूनी आधार तय करना चाहते हैं ताकि इसका सियासी लाभ उन्हें ओबीसी वोटबैंक में एक बड़े समर्थक तबके के तौर पर मिल जाए.
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क्या है बिहार का जातीय जनगणना मामला जिस पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक, नीतीश-तेजस्वी सरकार को क्यों लगा फैसले से झटका