डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बिहार के एक जज द्वारा चार दिन में पॉक्सो मामले (POCSO case) के एक दोषी को फांसी की सजा और एक अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाए जाने पर आपत्ति जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जज का यह फैसला 'सराहनीय' नहीं कहा जा सकता है. जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ बिहार के एक निलंबित अतिरक्त सत्र न्यायाधीश की रिट याचिका पर विचार कर रही थी. जिसमें आरोप लगाया गया कि पॉक्सो मामलों में कुछ दिन के अंदर दोषी को सजा सुनाए जाने पर पटना हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की.
बिहार के अररिया में अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश शशिकांत राय ने 6 साल की बच्ची से दुष्कर्म के मामले में चार दिन के अंदर ट्रायल पूरा करने के बाद दोषी को फांसी की सजा सुनाई थी. साथ ही एक अन्य पॉक्सो मामले में दोषी को एक दिन के भीतर मुकदमें में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में नोटिस जारी किया है और पटना हाईकोर्ट से मामले से जुड़े दस्तावेज मंगवाए हैं.
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आरोपी को पर्याप्त नोटिस दिए बगैर मौत की सजा देना गलत-SC
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह में जवाब मांगा है. पीठ ने कहा, ‘याचिका पर जवाब में निलंबन के आदेश के अनुरूप उठाए गए कदमों का संकेत दिया जाएगा और सभी संबंधित दस्तावेज रिकॉर्ड पर रखे जाएंगे.’ पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अनेक फैसले हैं जिनमें उसने कहा है कि सजा उसी दिन (सुनवाई पूरी करके) नहीं सुनाई जानी चाहिए. पीठ ने कहा, 'हमारे हिसाब से यह न्याय का उपहास होगा कि आप उस व्यक्ति को पर्याप्त नोटिस या अपनी बात रखने का अवसर तक नहीं दे रहे जिसे अंतत: मौत की सजा मिलने वाली है.’
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अररिया के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश शशिकांत राय की याचिका में कहा कि उन्हें लगता है कि उनके खिलाफ एक ‘संस्थागत पूर्वाग्रह’ है क्योंकि उन्होंने 6 साल की एक बच्ची से बलात्कार से जुड़े पॉक्सो (बच्चों को यौन अपराध से संरक्षण कानून) के एक मामले में सुनवाई एक ही दिन में पूरी कर ली थी और एक अन्य मामले में एक आरोपी को चार दिन की सुनवाई में दोषी ठहराकर मौत की सजा सुनाई थी. उन्होंने दावा किया कि ये फैसले व्यापक रूप से खबरों में छाये रहे और उन्हें सरकार और जनता से सराहना मिली.
'HC का आदेश मनमाना और सिद्धांतों का उल्लंघन'
शशिकांत राय की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि याचिकाकर्ता को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का 8 फरवरी, 2022 का पटना हाईकोर्ट का आदेश ‘स्पष्ट रूप से मनमाना और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाला’ है. याचिकाकर्ता 2007 में बिहार न्यायिक सेवा का हिस्सा बने थे. उनकी याचिका में दावा किया गया है कि उन्होंने केवल उच्च न्यायालय की नई मूल्यांकन प्रणाली के आधार पर वरिष्ठता बहाल करने पर विचार करने का अनुरोध किया था, लेकिन हाईकोर्ट ने कारण बताओ नोटिस जारी किया और बाद में कोई कारण बताए बिना महज फैसलों के मूल्यांकन की प्रक्रिया पर सवाल उठाने के लिए उन्हें निलंबित कर दिया.
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