तारिख थी 3 मार्च और साल था 1707. भारत में अपनी आखिरी सांसें गिनती मुगलिया सल्तनत को उस वक़्त बड़ा झटका लगा. जब 88 बरस की उम्र में महाराष्ट्र के अहमदनगर में औरंगजेब की मौत हुई. मुग़ल बादशाह औरंगजेब का जीवन तमाम रहस्यों से भरा है. ऐसा ही एक रहस्य यह भी है कि दिल्ली की जिस गद्दी को हासिल करने के लिए उसने अपने सगे पिता शाहजहां को सलाखों के पीछे किया, अपने ही भाई दाराशिकोह की बेदर्दी से हत्या करवाई, उस औरंगजेब को आखिर कैसे अपने अंतिम वक़्त में दिल्ली ने खुद से कोसों दूर कर दिया? इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले तमाम शिक्षाविद ऐसे हैं, जिनका मानना है कि इसकी स्क्रिप्ट और किसी ने नहीं बल्कि खुद औरगजेब ने तैयार की थी.
साल 1658 में हिंदुस्तान का छठे मुगल शासक बने औरंगजेब के विषय में माना यही जाता है कि वो बचपन से ही महत्वकांशी था. उसकी आंखों में दुनिया जीतने का ख्वाब था. अपने इसी ख्वाब को पूरा करने के लिए औरंगजेब ने दिल्ली से दूर दक्षिण का रुख किया.
ध्यान रहे कि साल 1680 में छत्रपति शिवाजी महाराज की मौत के बाद औरंगजेब ने भी अपने मिशन को विस्तार देने के लिए प्लानिंग करने की शुरुआत कर दी. इससे पहले शाहजहां के शासन के दौरान 1636 से 1644 तक औरंगजेब दौलताबाद का सूबेदार था. तब उसने अपना मुख्यालय औरंगाबाद को बना लिया था, जिसे तब फतेहनगर कहा जाता था.
यूं तो औरंगजेब का शुमार एक निर्दयी शासक के रूप में होता है. लेकिन जैसे ही उसने अपना अंत देखा अपने को 'धार्मिक' कर लिया.चूंकि इस समय तक औरंगजेब सूफी फकीरों की संगत में आ चुका था, उसकी इच्छा खुल्दाबाद में सूफी संत जैनुद्दीन शिराजी के दरगाह के समीप दफन होने की थी. बाद में औरंगजेब को खुल्दाबाद में ही दफनाया गया.
शायद आपको यह जानकर हैरत हो कि हुमायूं, अकबर और शाहजहां के विपरीत औरंगजेब ने अपने मरने को बहुत सस्ता रखा. बताते चलें कि तब मौत के बाद औरंगजेब की कब्र बनवाने में कुल 14 रुपए 12 आने खर्च हुए थे.
बता दें कि मरने से पहले औरंगजेब ने अपनी वसीयत लिखी थी, जिसमें उसने इस बात का जिक्र किया था कि उसकी मौत पर किसी तरह का कोई दिखावा न हो या ही उसपर कोई समारोह आयोजित हो.
औरंगजेब की कब्र के विषय में दिलचस्प तथ्य यह भी है कि 1904-05 में जब लॉर्ड कर्जन भारत आया तो उसने औरंगजेब की एकदम साधारण सी कब्र पर सवाल उठाए और बाद में इसका जीर्णोद्धार करवाया.
बहरहाल जैसा कि हम सभी इस बात से भी परिचित हैं कि औरंगजेब के मकबरे को लेकर देश में सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है. सवाल ये है कि क्या वाक़ई इस मकबरे को हटाया जा सकता है?
ध्यान रहे तमाम हिंदूवादी संगठन ऐसे हैं जिन्होंने इस बात की चेतावनी दी है कि यदि औरगजेब की कब्र को लेकर कोई ठोस फैसला नहीं होता है तो बाबरी की तर्ज पर इसका नामों निशान मिटाने के लिए कार सेवा को अंजाम दिया जाएगा.
बाकी खुल्दाबाद से औरंगजेब की कब्र को हटाना एक मुश्किल कृत्य इसलिए भी है क्योंकि कब्र को एएसआई द्वारा संरक्षित इमारत घोषित किया गया है. दस्तावेजों के मुताबिक, 11 दिसंबर, 1951 में गैजेट नोटिफिकेशन के माध्यम से इस कब्र को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था.
बाद में इसी एक्ट में 1958 में संशोधन हुआ, जिसके तहत इस कब्र को राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की सूची में शामिल किया गया था.
Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act (AMASR) के सेक्शन-19 के अनुसार, किसी भी संरक्षित इमारत को तोड़ना, हटाना और नुकसान पहुंचाना गैरकानूनी है. इस मामले में सजा का भी प्रावधान है. ऐसे में राज्य सरकार इस कब्र को तब तक कुछ नहीं कर सकती जब तक कब्र ASI की संरक्षित स्मारकों की सूची में शामिल है.
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