डीएनए हिंदी: रूस यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के बीच यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को लेकर लोगों के मन में यह सवाल आ रहा होगा कि आखिर ये मेडिकल की पढ़ाई करने वहां क्यों गए. इसकी वजह सस्ती फीस और आसान दाखिला है. यूक्रेन समेत कई देशों में हर साल यूपी से बड़ी तादाद में छात्र-छात्राएं दाखिले ले रहे हैं. अधिकारियों का कहना है कि यूपी के प्राइवेट कॉलेजों में हर साल एमबीबीएस (MBBS) की पढ़ाई पर करीब 25 लाख का खर्च आ रहा है जो कि आम व्यक्ति के लिए एक सहज स्थिति है.
यूपी में वार्षिक खर्च के अनुसार देखें तो इस लिहाज से साढ़े पांच साल की पढ़ाई पर तकरीबन एक करोड़ 15 लाख रुपये से ज्यादा खर्च हो जाते हैं. जबकि यूक्रेन के मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की साढ़े पांच साल की पढ़ाई का पूरा खर्च तकरीबन 25 लाख रुपये ही है. इसमें हॉस्टल व भोजन का खर्च भी शामिल है और इसीलिए सैकड़ों छात्र विदेश चले जाते हैं.
गौरतलब है कि डॉक्टर बनने की ख्वाहिश लिए यूपी से प्रत्येक वर्ष हजारों छात्र-छात्राएं रूस, मलेशिया, यूक्रेन, पोलैंड समेत अन्य देशों की ओर रुख कर रहे हैं. विदेश के कॉलेजों में प्रवेश से पहले छात्र छात्राओं को यूजी नीट की परीक्षा पास करनी होती है जो छात्र परीक्षा पास कर लेते हैं उन्हें मनपसंद कॉलेज में दाखिला मिल पाता है.
यूक्रेन स्थित विन्सेशिया नेशनल पिरोगोव मेमोरियल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस की एक साल की फीस करीब साढ़े चाल लाख है. 50 हजार रुपये हॉस्टल व भोजन के लिए जमा कराए जाते हैं. साढ़े पांच साल की पढ़ाई पर करीब 25 लाख रुपये का खर्च आता है. वहीं यूपी के कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई पर हर साल 25 लाख रुपये का खर्च आ रहा है. साढ़े पांच साल की पढ़ाई पर एक करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च वहन करना पड़ता है.
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ऐसी में यूपी की महंगी मेडिकल शिक्षा को छोड़ परिजन बच्चों को विदेश से एमबीबीएस कराना बेहतर मान रहे हैं. अधिकारियों का कहना है कि विदेश से परीक्षा पास करने के बाद छात्रों को भारत का आकर एक्जिट परीक्षा पास करनी होती है. इसके बाद छात्र भारत में भी मरीजों का इलाज कर सकते हैं और यह छात्रों के लिए कहीं ज्यादा सस्ता पड़ता है. वहीं अब जब रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण स्थिति विकट है तो ये छात्र भारत का रुख कर रहे हैं.
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