यह मामला अमृतसर (Amritsar) की ऐतिहासिक मस्जिद (Mosque) 'जामा मस्जिद खैर-उद-दीन' का है जहां पर सिख समुदाय के शख्स बलजिंदर सिंह बल्ली (Baljinder Singh Balli), 40 सालों से 'सेवा' करते आ रहे हैं. वो हर शुक्रवार को मस्जिद में मौजूद रहते हैं. यहां पर बलजिंदर हर हाल और मौसम में शुक्रवार को 'सेवा' के लिए पहुंच जाते हैं.
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बलजिंदर सिंह बाली, सब्जी बेचने का काम करते हैं और अपने काम से वक्त निकालकर वो 'सेवा' में जुटे रहते हैं. इस बारे में बात करते हुए बलजिंदर ने बताया- 'मैं 35 साल का था जब मैंने जूते रखने के लिए यहां आना शुरू किया था. पहले मैं श्री दरबार साहिब में जूते रखता था. मेरे पूर्वजों ने भी यहां 90 सालों तक अपनी सेवा दी है. उन्होंने ही मुझे यहां बिठाया है. चाहे बरसात हो या तूफान, मुझे यहां हर शुक्रवार यहां आना ही पड़ता है'.
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जोधा घर में जूते रखने का काम करना बलजिंदर को किसी भी तरह से अपमानजनक नहीं लगता है. उनका कहना है कि किसी ने भी उन्हें इसके लिए उन्हें अपमानित नहीं किया है और ना ही उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है.
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बलजिंदर ने बताया कि परिवार या बाहर के किसी शख्स ने कभी मुझसे ऐसा कुछ नहीं कहा. लोग मुझे बेहद प्यार के साथ ट्रीट करते हैं और जब भी मुझसे मिलते हैं तो किसी बड़े भाई की तरह प्यार जताते हैं और गले लगते हैं. लोग मुझे 'बापू जी' बुलाते हैं. मैं अब 60 का हूं.
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बलजिंदर ने कहा- 'लोग मुझसे कहते हैं कि सरदार जी आप मुस्लिमों से एकता के संदेश के साथ मिलकर अच्छा काम कर रहे हैं'. बलजिंदर ये बताते हुए काफी गर्व महसूस करते हैं.
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उन्होंने सेवा के बारे में बताया- 'मैं मस्जिद में पहुंचते ही टोकन बांट देता हूं और इसके बाद जूतों को लगाता हूं'. इसके अलावा बलजिंदर यहां पर मेंटिनेंस, सैनिटेशन और पार्किंग की व्यवस्था की भी देखरेख करते हैं. वो नमाजियों को होने वाली किसी भी तरह की परेशानी को हल करने की कोशिश करते हैं.
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मस्जिद के मौलवी के बेटे मोहम्मद दानिश ने बताया कि 'सरदार जी' लगभग 40 सालों से बिना किसी भेदभाव के निस्वार्थ भाव से 'सेवा' कर रहे हैं. वो ईद पर भी मौजूद रहते हैं.
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वहीं, बलजिंदर और मस्जिद के प्रशासन के बीच भाईचारे की भावना इस बात से साबित हो जाती है कि जब बलजिंदर का लिवर खराब हो गया था तब उन्हें मस्जिद प्रशासन से सपोर्ट मिला था. बलजिंदर कहते हैं कि 'मुझे सरकार से कोई पेंशन नहीं मिली है'.
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बलजिंदर ने बताया कि- 'उन्होंने मेरे लिए बहुत कुछ किया है और मुझे वापस पैरों पर खड़े होने में मदद भी की है. मैं उनकी मदद के बिना मर जाता'. बलजिंदर अब अपने बेटे को भी सेवा के लिए भेजते हैं.
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बलजिंदर कहते हैं कि उन्हें मस्जिद आकर मन की शांति का एहसास होता है. वो कहते हैं कि जूता रखने की उनकी सेवा दुनिया भर को भाईचारे का संदेश देती है.
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बलजिंदर के इस कदम को चारों तरफ से सपोर्ट मिल रहा है. कई लोग सोशल मीडिया पर भी उनकी तारीफें करते दिखाई दे रहे हैं.
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PHOTOS: अमृतसर की मस्जिद में 40 सालों से 'सेवा' कर रहे 'सरदार जी'