प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की जिंदगी उतार-चढ़ाव से भरी रही है. ट्रेन के डिब्बों में चढ़कर चाय बेचने से लेकर देश की सत्ता संभालने तक उनकी कहानी ऐसी रही है, जिस पर लोग भरोसा न करें. प्रधानमंत्री मोदी बचपन से ही घुमक्कड़ रहे हैं. कभी उन्हें जंगल लुभाते थे तो भी पहाड़. भारत का शायद ही ऐसा कोई कोना हो जहां वह घूम न चुके हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यकर्ता के तौर पर उन्होंने कई अहम जिम्मेदारियों को भी निभाया है. आइए जानते हैं कैसे संन्यास से सत्ता तक का पीएम मोदी ने कैसे तय किया सफर.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सिंतबर 1950 को गुजरात के वडनगर में एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था. वह अपना 72वां जन्मदिन मनाने वाले हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां का नाम हीराबेन और पिता का नाम दामोदरदास मूलचंद मोदी था. पीएम के पिता चाय बेचते थे और उनकी मांग उनका हाथ बंटाने के लिए दूसरों के घरों में बर्तन मांजती थी. पीएम मोदी खुद गुजरात के महेसाणा रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में अपने पिता की मदद किया करते थे. पीएम मोदी खुद बता चुके हैं कि साल 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान उन्होंने स्टेशन से गुजरने वाले सैनिकों को चाय पिलाई थी. वह सैनिक स्कूल में पढ़ना चाहते थे लेकिन पढ़ नहीं सके. यहीं से उनके मन में संन्यास की इच्छा पनपने लगी थी.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उम्र जब 18 साल की हुई तो उनकी शादी करा दी गई. वह सांसारिक में रचना-बसना नहीं चाह रहे थे. उन्होंने गृहस्थ जीवन रास नहीं आया. वह पत्नी सहित घर-बार छोड़कर संन्यास की राह थाम ली. वह देश के पूर्वी हिस्से लेकर उत्तर-पूर्व भारत तक भ्रमण करते रहे. पीएम ने इस दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर वहां की संस्कृतियों को समझा. प्रधानमंत्री अलग-अलग मठों में भी वह जाते रहे. स्वामी विवेकानंद के वेलूर मठ, असम में सिलिगुड़ी और गुवाहाटी, अल्मोड़ा के अद्वैत आश्रम और राजकोट के रामकृष्ण मिशन में भी पीएम मोदी ने अपना समय बिताया. प्रधानमंत्री मोदी अध्यात्म में भटकते रहे लेकिन उनके भाग्य में संन्यास नहीं था.
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संन्यास भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रास नहीं आया. उनके कर्तव्यबोध ने उन्हें संन्यासी नहीं बनने दिया. वह देश से लौटकर अपने गृह राज्य गुजरात आए और उसके बाद उन्हें सार्वजनिक जीवन में उतना पड़ा. प्रधानमंत्री मोदी ने यहां से अपनी छूटी हुई पढ़ाई शुरू की और राजनीति शास्त्र में एमए किया. उन्होंने साल 1967 में संघ की सदस्यता ले ली और संघर के प्रचारक बने रहे. यहीं से उनकी भारत को लेकर समझ गहरी होती गई और देखते-देखते वह ब्रांड मोदी बन गए.
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साल 1967 से लेकर 1971 तक वह स्वयं सेवक के तौर पर वह देश के लिए काम करते रहे. वह साल 1971 में हुए दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में जनसंघ के सत्याग्रह में शामिल हुए थे. मोदी को राजनीतिक कैदी के तौर पर तिहाड़ जेल में भी कुछ दिन बिताने पड़े थे.
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इमरजेंसी के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीतिक तौर पर बेहद सक्रिय हो गए थे. इमरजेंसी के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी बेहद मुखर होकर विरोध करते रहे. प्रधानमंत्री मोदी इस दौरान कभी संन्यासी का भेष बनाते तो कभी सिख बनते. वह छिपकर इमरजेंसी के खिलाफ सरकार की आलोचना जनता तक पहुंचाते रहते थे.
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इमरजेंसी ने पीएम मोदी को नई दिशा दी. साल 1979 में नरेंद्र मोदी दिल्ली ठहर गए. उनकी साल 1985 में संघ से विदाई हुई और उन्हें भारतीय जनता पार्टी (BJP) में भेज दिया गया. साल 1987 में अहमदाबाद नगर निगम चुनाव हुआ और मोदी के नेतृत्व में बीजेपी विजयी हुई. यही साल था जब वह गुजरात बीजेपी के संगठन सचिव बन गए.
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संगठन सचिव के तौर पर पीएम मोदी ने गुजरात में कई अनोखे प्रयोग किए. उन्होंने स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी कराई. नरेंद्र मोदी यह जानते थे अगर लोगों को बांधकर रखना है तो उन्हें सुनना पड़ेगा. साल 1990 में जब दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा कर रहे थे तो उसकी कमान नरेंद्र मोदी के हाथ में थी. साल 1995 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत में मोदी का भी अहम रोल रहा. तभी उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय सचिव बनाया गया. साल 1998 के चुनावों में बीजेपी की जीत का श्रेय भी नरेंद्र मोदी को दिया गया. धीरे-धीरे पार्टी में नरेंद्र मोदी का कद बढ़ता गया. साल 2001 में वह पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने. वह विपक्षी पार्टियों के लिए अजेय बने रहे. साल 2014 तक उन्होंने गुजरात की सत्ता संभाली.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़े गए चुनाव को जीतना विपक्ष के लिए मुश्किल हो गया है. साल 2014 के लोकसभा चुनावों में उनके नेतृत्व में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला. 2019 के चुनाव में भी उन्हीं के नेतृत्व में जीत मिली. लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों तक बीजेपी मोदी फैक्टर से ही चुनाव जीत रही है. यूपी से लेकर गोवा तक बीजेपी अजेय बनी हुई है. बीजेपी के लिए चुनाव कहीं भी हो चेहरा नरेंद्र मोदी होते हैं. पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में बीजेपी विधायकों की संख्या सम्मानजनक स्थिति में पहुंच गई है. मोदी मैजिक के आगे सारे फैक्टर्स फीके पड़ गए हैं.