मोतीलाल नेहरू के बारे में आम तौर पर सबसे पहले यह कह दिया जाता है कि वह भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता थे. उनका अपना कद भी काफी बड़ा था. वह कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे. स्वंतंत्रता संग्राम के बड़े नेताओं में से थे और उन्होंने भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लोहा लिया था. बतौर वकील उनकी काबिलियत का लोहा अंग्रेज भी मानते थे. उनकी पुण्यतिथि (6 फरवरी 1931) पर जानें उनकी जिंदगी के कुछ अनजाने पहलुओं के बारे में.
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मोतीलाल नेहरू के पिता दिल्ली मे एक पुलिस अधिकारी के रूप में काम करते थे लेकिन 1857 की क्रांति में उनकी नौकरी और प्रापर्टी सब छिन गई थी. पढ़ने-लिखने में काफी होशियार थे और उन्होंने वकालत की पढ़ाई की थी. वकालत में उनका सिक्का खूब चलने लगा था. स्वतंत्रता संग्राम से वह छात्र जीवन से ही प्रभावित थे और अपनी काबिलियत और शख्सियत की बदौलत जल्दी ही वह कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार हो गए थे. उन्होंने 2 बार बतौर कांग्रेस अध्यक्ष (1919, 1928) अपनी सेवाएं दी थीं.
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खुद जवाहरलाल नेहरू ने इस घटना का जिक्र अपनी किताब में किया था. मोतीलाल नेहरू को उसूलों का पक्का इंसान माना जाता था. देश के पहले प्रधानमंत्री ने बताया था कि उनके पिता जीवन मूल्यों पर बहुत जोर देते थे. एक बार उन्होंने बिना पूछे पिता के कमरे से एक पेन उठा लिया था. पेन जब उनके कमरे से मिला तो उनके पिता ने उनकी पिटाई की थी. जवाहरलाल नेहरू कहते हैं कि इस घटना ने उनके जीवन पर गहरा असर डाला था. उन्हें यह समझ आ गया था कि बिना पूछे पिता की भी कलम लेना चोरी है.
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मोतीलाल नेहरू ने अपनी वकालत की कमाई से 19,000 रुपये में इलाहाबाद में आनंद भवन खरीदा था. बाद में यह घर आजादी की लड़ाई में मील का पत्थर साबित हुआ था. 1920 मे असहयोग आंदोलन यहीं से शुरू हुआ था. कहा जाता है कि आनंद भवन नाम अकबर इलाहाबादी ने रखा था.
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मोतीलाल नेहरू की 2 बेटियां और एक ही बेटा था. कहते हैं कि उनकी ख्वाहिश एक पोते की थी. जब जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू के घर बिटिया का जन्म हुआ तो मोतीलाल नेहरू ने कहा था कि यह बेटी बहुत से बेटों पर भारी पड़ेगी. उनकी भविष्यवाणी सच भी साबित हुई. इंदिरा गांधी ने बतौर प्रधानमंत्री देश की बागडोर संंभाली और भारत के लिए कई बड़े फैसले किए थे.
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मोतीलाल नेहरू का निधन 6 फरवरी 1931 को लखनऊ में हुआ ता. उनके निधन पर तत्कालीन इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस सर ग्रीमवुड मीरर्स ने कहा था, 'वह एक उम्दा वकील और बेहतरीन वक्ता थे. उनके पास नैसर्गिक प्रतिभा थी. अपनी बात को कहने का विलक्षण अंदाज था और उन्हें सुनना सबको अच्छा लगता था. वह अपने पीछे इस कोर्ट के लिए महान परंपरा छोड़ गए हैं.'