साल 2015 में हुए पाटीदार आरक्षण आंदोलन ने हार्दिक पटेल (Hardik Patel) को पूरे देश में चर्चा का विषय बना दिया था. उस समय वह किसी पार्टी में नहीं थे लेकिन बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए. हार्दिक पटेल के खिलाफ पिछले सात सालों में कई मुकदमे दर्ज हुए. अब कांग्रेस छोड़ने के बाद उनके बारे में कहा जा रहा है कि अपने राजनीतिक भविष्य के लिए वह बीजेपी या फिर आम आदमी पार्टी में शामिल हो सकते हैं. दरसअल, गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष जगदीश ठाकोर ने कहा है कि हार्दिक को अपने खिलाफ दर्ज मुकदमों का डर था इसीलिए उन्हें किसी की शरण में जाने की ज़रूरत है. आइए समझते हैं कि क्या उनके खिलाफ दर्ज ये दर्जनों मुकदमे उनकी चुनावी राजनीति में रोड़ा बन सकते हैं?
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हार्दिक पटेल साल 2015 में तब चर्चा में आए जब गुजरात में पाटीदार अनामत आंदोलन शुरू हुआ. इस आंदोलन की मांग थी कि पाटीदार समुदाय के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में पाटीदार समुदाय को आरक्षण दिया जाए. हार्दिक के खिलाप 2015 से 2018 के बीच दर्ज कम से कम 30 एफआईआर में सात केस तो इसी आंदोलन के समय के हैं. इसमें हार्दिक पटेल पर दंगा भड़काने और देशद्रोह जैसे मामले शामिल हैं.
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पाटीदार आंदोलन के बाकी नेताओं से हार्दिक के आतंरकि विवाद के बाद भी कई केस दर्ज हुए. हार्दिक के खिलाफ पैसों की गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए 2015 में केस दर्ज कराया गया. 2016 में हार्दिक के खिलाफ जेल अधिनियम के तहत केस दर्ज हुआ क्योंकि पेशी के लिए ले जाते समय हार्दिक की जेब से एक मोबाइल फोन, चार्जर और बैटरी मिली थी. बाद में यह मुकदमा खत्म हो गया. हार्दिक के मुताबिक, अभी उनके खिलाफ कुल 23 केस चल रहे हैं.
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इसी तरह तमाम प्रदर्शनों में हिस्सा लेने और धारा 144 के उल्लंघन को लेकर भी हार्दिक के खिलाफ केस दर्ज हैं. साल 2016 में हार्दिक ने हाई कोर्ट से राहत की मांग करते हुए शपथ ली कि वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी तरह से आपराधिक गितिविधियों में शामिल हुए बिना पाटीदार समुदाय की समस्याएं उठाएंगे और किसी भी तरह से कानून का उल्लंघन नहीं करेंगे. कई जगहों पर अनुमति के बिना प्रदर्शन या रैली करने की वजह से भी हार्दिक के खिलाफ कई केस चल रहे हैं.
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हार्दिक के खिलाफ चल रहे मुकदमों में से कम से कम 11 ऐसे हैं जिनमें उन्हें अदालत की कार्यवाही का सामना करना पड़ रहा है. इनमें दो मुकदमे देशद्रोह के भी हैं. कुछ मामले ऐसे भी हैं जिन्हें राज्य सरकार ने वापस ले लिया है. कुछ हाई कोर्ट में खारिज हो गए हैं. एक मामले में साल 2018 में हार्दिक पटेल को दो साल की सजा भी सुनाई गई थी.
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2016 में गुजरात हाई कोर्ट ने राजद्रोह के मामले में हार्दिक पटेल को जमानद दे दी थी. हालांकि, शर्त लगाई गई थी कि वह छह महीने तक गुजरात की सीमा से बाहर रहेंगे और कोर्ट की परमिशन लिए बिना इन छह महीनों में अपना पता नहीं बदलेंगे. साल 2018 में दंगों और बीजेपी नेता ऋषिकेश पटेल के कार्यालय में आगजनी के लिए हार्दिक पटेल की सजा के बाद, उन्हें जमानत दे दी गई थी लेकिन इस शर्त पर कि वह मेहसाणा जिले में प्रवेश नहीं करेंगे. हार्दिक ने मेहसाणा में प्रवेश करने की अनुमति देने के लिए दिसंबर 2019 में एक गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.हालांकि बाद में हार्दिक ने याचिका वापस ले ली थी.
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जन प्रतिनिधित्व काननू के नियमों के मुताबिक, दोषी करार दिया गया व्यक्ति त तक चुनाव नहीं लड़ सकता जब तक अदालत उसकी दोष सिद्धि पर रोक न लगा दे. अगर कोई सांसद या विधायक चुने जाने के बाद अपने कार्यकाल के दौरान दोषी पाया जाता है तो उसे सजा के फैसले की तारीख से तीन महीने के अंदर अयोग्य घोषित किया जाता है. हार्दिक के खिलाफ भी जो मामले चल रहे हैं उनमें अगर उन्हें सजा सुनाई जाती है तो हार्दिक की चुनावी राजनीति प्रभावित हो सकती है.
Short Title
Hardik Patel के खिलाफ चल रहे हैं 23 केस, क्या चुनाव लड़कर बन पाएंगे 'माननीय'?