भारतीय राजनीति में द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को देश का 15वां राष्ट्रपति निर्वाचित किए जाने के साथ ही एक नया अध्याय जुड़ गया है. मुर्मू देश की दूसरी महिला, लेकिन पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने जा रही हैं. इसके साथ ही मुर्मू का शुमार भारतीय राजनीति की उन दमदार महिलाओं में हो गया है, जिनकी कही बात को तरजीह दी गई. आइए आपको देश की उन 9 महिलाओं के बारे में बताते हैं, जिन्हें मुर्मू से पहले भारतीय राजनीति के सूरमा के तौर पर जाना गया है.
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Draupadi Murmu देश के सबसे बड़े आदिवासी समुदाय संथाल जनजाति से ताल्लुक रखती हैं. एक मामूली स्कूल टीचर से उन्होंने देश के सर्वोच्च पद यानि राष्ट्रपति बनने तक का सफर तय किया है. केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल भी रह चुकीं द्रौपदी मुर्मू 25 जुलाई को शपथ लेने के साथ ही देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बन जाएंगी. इसके साथ ही वे देश की तीनों सेनाओं की मुखिया भी बन जाएंगी.
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भारतीय लोकतंत्र ने 27 जुलाई 2007 को इतिहास बनाया था, जब प्रतिभा पाटिल (Pratibha Patil) ने देश की पहली महिला राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली थीं. एपीजे अबुल कलाम (APJ Abul Kalam) जैसे राष्ट्रपति की जगह लेने वाली प्रतिभा पाटिल 27 साल की उम्र में पहली बार विधायक बनी थीं. पेशे से वकील प्रतिभा इसके बाद कई बार विधायक और सांसद रहीं. वे अपने राजनीतिक जीवन में कभी कोई चुनाव नहीं हारी. इससे इतर वे देश का सर्वोच्च पद संभालने से पहले राज्यसभा की उपसभापति, राज्य सरकार में मंत्री, महाराष्ट्र में कांग्रेस विपक्षी दल की नेता समेत तमाम संसदीय समितियों की अध्यक्ष व सदस्य के तौर पर काम कर चुकी थीं.
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राजनीतिक परिवार की बहू बनीं शीला दीक्षित के पति IAS अफसर थे. पति की जगह राजनीति में उतरीं शीला पहली बार 1984 में कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचीं. इसके बाद वे केंद्रीय मंत्री रहीं और फिर दिल्ली में भाजपा के वर्चस्व को खत्म करने की जिम्मेदारी मिली तो कांग्रेस को लगातार तीन बार सत्ता का स्वाद चखाया. दिल्ली में तीन लगातार टर्म के लिए मुख्यमंत्री रहने वाली वे इकलौती राजनेता थीं. उनकी उपलब्धियों में दिल्ली को मेट्रो ट्रेन का तोहफा देना और कॉमनवेल्थ गेम्स-2010 का सफल आयोजन करना शामिल हैं.
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पेशे से एक्ट्रेस रहीं स्मृति ईरानी को राजनीति में भी सालों बाद तक हर कोई उनके छोटे पर्दे के किरदार 'तुलसी भाभी' के नाम से ही पहचानता रहा, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि स्मृति ईरानी ने अपनी मेहनत से खुद को मंझा हुआ राजनेता साबित किया है. केंद्रीय मंत्री स्मृति का आज भाजपा में वैसा ही दबदबा माना जाता है, जो एकसमय सुषमा स्वराज का होता था. उनकी सबसे बड़ी पहचान कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से उनका पुश्तैनी गढ़ अमेठी (Amethi) छीनने वाली नेता की है.
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एक साधारण सी साइकिल पर घूमने वाली कार्यकर्ता से देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री की गद्दी तक. मायावती की महज इतनी पहचान नहीं है. उन्हें देश में दलितों को एक ताकतवर वोटबैंक होने का अहसास दिलाने वाले के तौर पर जाना जाता है. हालांकि इसकी नींव उनके गुरु कांशीराम ने रखी थी, लेकिन इस नींव पर दलित राजनीति की इमारत मायावती ने ही रखी. यह वो इमारत थी, जिसने बहुजन समाज पार्टी को कांग्रेस और भाजपा के बाद देश के तीसरे राष्ट्रीय दल की मान्यता दिलाई. पिछले कुछ साल से बेरंग हो गईं मायावती की दबंग राजनीति के किस्से राजनीतिक हलकों में कभी भी सुने जा सकते हैं.
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गरीबी का जीवन, एक्ट्रेस के तौर पर प्रसिद्धि, दक्षिण के लोगों में भगवान का अवतार कहलाने वाले फिल्म स्टार टर्न राजनेता MGR की बेहद करीबीं और उनकी विरासत संभालने के लिए तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनना. यही कहानी थी आम से खास तक सब लोगों की 'अम्मा' जयललिता की. तमिलनाडु की द्रविड़ राजनीति में अपनी पार्टी को सबसे अहम चेहरा बना देने वाली जया को महंगे सामान खरीदने का शौक था, जिसके लिए मुख्यमंत्री रहते हुए उन पर भ्रष्टाचार करने का आरोप भी लगा. 1996 में उनके घर पर छापे में 800 किलो चांदी, 28 किलो सोना, 11,344 साड़ियां, 250 शॉल, 750 जोड़ी जूतियां, 91 घड़ियां और 41 एयरकंडीशनर जब्त किए गए थे. इसके बावजूद उनकी छवि ऐसी दबंग नेता की थी, जिसे छींक आने पर तमिलनाडु ही नहीं दिल्ली में बैठी गठबंधन की केंद्रीय सरकारों को भी पसीने आ जाते थे.
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पश्चिम बंगाल में वामपंथी राजनीति के शीर्ष दौर में कांग्रेस की मामूली कार्यकर्ता से ममता बनर्जी कैसे उसी राज्य की शीर्ष गद्दी तक पहुंचीं, ये शोध का विषय हो सकता है. अपनी तुनकमिजाजी में देश के प्रधानमंत्री को भी ठेंगा दिखाने वाली दबंगई ममता को सबसे अलग बनाती है. उन्हें लड़ाका कहा जाता है, लेकिन इसी लड़ाकू स्वभाव की बदौलत उन्होंने बंगाल में पहले अपनी अलग पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाकर कांग्रेस को पछाड़ा. फिर वामपंथी दलों के 37 साल लंबे वर्चस्व को खत्म किया. लगातार 3 बार से राज्य की मुख्यमंत्री बन रहीं ममता अब केंद्रीय सत्ता में बैठी भाजपा को चुनौती दे रही हैं, जिनके साथ गठबंधन में कभी वे केंद्र सरकार में रेल मंत्री जैसा पद संभाल चुकी हैं.
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पहले सास और फिर पति का देश पर बलिदान देखने वाली सोनिया गांधी के लिए राजनीतिक राह आसान नहीं थी. देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल की मुखिया बनने की उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा उनका विदेशी मूल का होना था. इसके बावजूद सोनिया ने न केवल कांग्रेस का नेतृत्व संभाला बल्कि उसे दोबारा सत्ता में लाकर लगातार 10 साल तक पर्दे के पीछे से देश का शासन भी संभाला. उन्हें एकसमय दुनिया की 10 सबसे ताकतवर महिलाओं में भी चुना जा चुका है.
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प्रखर वक्ता और दबंग राजनेता की छवि तो सुषमा स्वराज की बहुत पहले ही बन गई थीं, लेकिन उनकी असली ताकत देश ही नहीं दुनिया ने भी तब देखी, जब उन्हें केंद्र सरकार में विदेश मंत्री के तौर पर जिम्मेदारी दी गई. उन्होंने सोशल मीडिया की असली ताकत को पहचाना और दुनिया के हर कोने में मौजूद भारतीयों तक ऐसी पहुंच बनाई, मानो विदेश में रह रहे उन लोगों का कोई दोस्त हर पल उनकी मदद के लिए उनके साथ है. पेशे से वकील रहीं सुषमा की वाकपटुता और कुशल व्यवहार को दुनिया भर में आज का तारीख में बनी भारत की मजबूत छवि की नींव कहा जा सकता है.
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देश की सबसे ताकतवर राजनीतिक महिला की बात होगी तो निर्विवादित रूप से यह तमगा इंदिरा गांधी के खाते में ही जाएगा. भारतीय राजनीति की 'गूंगी गुड़िया' से सबसे दबंग और दमदार महिला तक के सफर मे इंदिरा के साथ तमाम विवाद जुड़े रहे, लेकिन देश की तीन बार प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा ने कभी हार नहीं मानी. कांग्रेस में बात नहीं मानी गई तो पार्टी के दो टुकड़े कर दिए. परमाणु शक्ति बनने की जरूरत हुई तो अमेरिकी की चेतावनी के बाद भी परीक्षण कराकर ही मानीं. दूसरी बार अमेरिका को फिर आंखें दिखाई और बांग्लादेश की आजादी के लिए सेना भेज दी. पाकिस्तान को नाको चने चबवाए. आपातकाल लगाने का दाग अपने माथे पर लगाया तो दोबारा पूर्ण बहुमत से सत्ता में लौटकर सभी को हैरान कर दिया. जब देश में शांति बनाने की बात आई तो स्वर्ण मंदिर जैसी जगह पर भी सेना भेजने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई. कुल मिलाकर इंदिरा गांधी हमेशा अपने हिसाब से ही चलीं और अपने मन की बात ही मानी.