डीएनए हिंदी: कभी जशपुरनगर शहर के दिल की धड़कन मानी जाने वाली बांकी नदी नाला बन चुकी थी. करीब तीन साल पहले अगर आप देखते तो यकीन नहीं कर पाते कि कभी यह जगह खूबसूरत हुआ करती थी बच्चे नदी में गोते लगाया करते थे. वो समय बीता धीरे-धीरे नदी बेजार होती गई. कभी वहां घंटों बिताने वाले बच्चे अब बड़े हो गए थे और जब अपने बचपन की साथी रही नदी के हालात देखे तो हैरान रह गए. उन्होंने करीब तीन साल पहले एक जिम्मेदारी उठाई और आज करीब 400 मीटर के हिस्से को फिर से हराभरा कर दिया और इनका सफर अभी जारी है. इस मुहिम की शुरुआत की समर्थ जैन ने. आज यानी कि 5 जून, पर्यावरण दिवस के मौक पर डीएनए हिंदी ने उनसे खास बातचीत की और इस पहल के बारे में जाना.
1- बदहाली में नाला बन चुकी बांकी नदी के उद्धार के सफर की शुरुआत कब हुई ?
बांकी नदी उद्धार सफर की बात करें तो यह करीब आठ-दस सालों से लोगों के मन में था. इसे लेकर प्रशासन से मांग उठती थी, ज्ञापन भी दिए गए थे, चर्चाएं भी होती थी. यहां पर हमने 19 मई 2022 को विजिट किया तो हाल बहुत ही चिंता जनक थे. इसके बाद 21 मई से स्थानीय लोगों के साथ मिलकर हमने वहां काम शुरू किया और 31 मई तक उस जगह की तस्वीर बदल चुकी थी.
2- सबसे बड़ा चैलेंज क्या था ?
समर्थ ने बताया कि सबसे बड़ा चैलेंज अभी नहीं आया लेकिन जल्द ही हमारे सामने होगा क्योंकि अभी शुरुआत में हम जो काम कर रहे हैं वह 400 मीटर में हो रहा है. यही काम हमें पूरे 18 किलोमीटर में करना है तो लोगों का सहयोग बहुत जरूरी है. यह जनमानस से जुड़ा काम है तो अगर उनका साथ नहीं मिलेगा तो मुश्किल हो सकती है. हमें लोगों का सपोर्ट मिला है लेकिन जितनी उम्मीद थी उससे कम मिला है. प्रशासन से खूब सपोर्ट मिल रहा है लेकिन आम जनता के सहयोग की कहीं कहीं कमी दिख रही है. लोगों ने अतिक्रमण के चलते नदी को उठाकर किनारे कर दिया है. उसे अपनी जगह दिलाना भी एक चैलेंज रहेगा.
3- आप लोग छत्तीसगढ़ में पर्यावरण की सेहत ठीक करने के लिए और क्या-क्या कर रहे हैं?
हमारा फोकस जैविक खेती और वृक्षारोपण का काम हम करते हैं. पिछले चार-पांच सालों से गांव वालों के साथ मिलकर हम यह काम कर रहे हैं. लोगों को हमारी यही सलाह रहती है कि लकड़ी कम काटें. हम खुले में दो वृक्षारोपण करते हैं उससे पौधे डैमेज होने का खतरा ज्यादा रहता है. हमने पहाड़ी पर चार-पांच एकड़ जगह पर घेरा लगाकर वृक्ष लगाने की जगह निर्धारित की है. इसे स्मृति वन का नाम दिया गया है. लोग अपने जन्मदिन, सालगिरह, किसी की बरसी के मौके पर यहां आकर पेड़ लगा सकते हैं. शहरों में कई लोग पेड़ लगाने के इच्छुक होते हैं लेकिन उनके पास जगह जगह और पेड़ नहीं होते. यहां उनको यह विकल्प मिलता है और ज्यादा खर्च नहीं होता. पेड़ सुरक्षा में रहते हैं तो उनकी सेहत की चिंता भी नहीं.
4- पर्यावरण को लेकर लोगों को जागरुक करने के लिए आप क्या मैसेज देना चाहेंगे. लोग इतने असंवेदशील होते जा रहे हैं कि उन्हें अपना नुकसान नहीं दिख रहा.
इसमें लोगों की गलती नहीं है क्योंकि उन्हें पता ही नहीं है कि वो क्या कर रहे हैं. शहर के लोगों की अगर बात करें तो अगर एक दिन आप बिना एसी के रहें या किसी ऐसे गांव या जगह पर छुट्टी बिताएं जहां बेसिक सुविधाएं हों तो आप जान पाएंगे कि आपने प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचाया है. लोगों को शहरों में पीने का पानी नहीं मिल रहा है. शिमला जैसे पहाड़ी इलाकों में पानी से भरी बाल्टियां बिकती हैं. बर्फ भी गिरती है लेकिन पीने का पानी नहीं है. बोलने, पढ़ने या डॉक्युमेंट्री देखने से कुछ नहीं होगा. जब तक आप इसे महसूस नहीं करेंगे तब तक इस काम में इस तरह के प्रकृति को बचाने के लिए शुरू हुई मिशन कामयाब नहीं हो पाएंगे.
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पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा चुके हैं आप? नहीं जानते तो ऐसे पता लगाइए