भाजपा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के एक बयान ने राज्य की सियासत में हलचल मचा दी है. जायसवाल ने एक बार फिर कहा है कि चुनाव के बाद बिहार का सीएम कौन होगा, इसका फैसला भाजपा का संसदीय बोर्ड और एनडीए के घटक दल करेंगे. जायसवाल ने यह भी साफ किया कि चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. तीन दिन पहले तक नीतीश कैबिनेट में मंत्री रहे जायसवाल के इस बयान से स्पष्ट है कि नीतीश चुनाव में एनडीए का फेस होंगे, लेकिन सीएम फेस होंगे या नहीं, इसको लेकर पेच फंस सकता है. जायसवाल का यह बयान नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की मांग के बाद आया है. पॉलिटिकल लॉन्चिंग की अटकलों के बीच निशांत ने कहा था कि एनडीए नीतीश कुमार को अपना सीएम फेस घोषित करे. अब जायसवाल ने निशांत को जो जवाब दिया है, उससे विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में राजनीतिक उलटफेर की संभावना हो सकती है, लेकिन भाजपा संभवतः पूरी तैयारी करके बैठी है. सीएम पद को लेकर नीतीश के हठ से सभी वाकिफ हैं. इसे ध्यान में रखते हुए भाजपा नीतीश के बिना भी चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है.
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सीएम फेस घोषित करने के सवाल पर जायसवाल ने कहा कि करने वाला केवल भगवान है. हम नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे, लेकिन सीएम फेस कौन होगा, इसका फैसला बीजेपी का संसदीय बोर्ड और एनडीए के घटक दल मिलकर करेंगे. भाजपा की ओर से मैसेज साफ है कि नीतीश सीएम फेस घोषित किए जाने की उम्मीद न रखें. बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को नीतीश से ज्यादा सीटें मिली थीं. इसके बावजूद भाजपा ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन इस बार शायद ऐसा नहीं हो. भाजपा अब गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में आना चाहती है, यदि उसे चुनाव में ज्यादा सीटें मिलीं तो. यानी एनडीए में रहकर नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बनने के प्रति आश्वस्त नहीं रह सकते. उनके लिए दूसरे विकल्प हों या नहीं, लेकिन भाजपा अपने सभी विकल्पों पर मंथन कर रही है. इसका संकेत उसने कैबिनेट के हालिया फेरबदल से दे दिया है.
सबसे पहले बात करें कि नीतीश क्या कर सकते हैं. वे एनडीए छोड़कर महागठबंधन में जा सकते हैं. नीतीश पहले ऐसा कर चुके हैं और इस बार भी उन्हें आमंत्रण मिल रहे हैं. लेकिन सवाल है कि क्या महागठबंधन उन्हें अपना सीएम फेस घोषित करेगा. शायद नहीं क्योंकि इस पर तेजस्वी यादव का दावा है. लालू प्रसाद यादव भी शायद अब सीएम पद पर कोई कंप्रोमाइज करने को तैयार न हों. तो फिर क्या नीतीश कोई तीसरा विकल्प खड़ा करने की कोशिश करेंगे या अकेले दम पर चुनावी मैदान में उतरेंगे. इसका जवाब फिलहाल देना संभव नहीं है. इतना जरूर कहा जा सकता है कि लगातार 15 साल सीएम रहने के बाद नीतीश के लिए अपने बूते चुनाव में उतरना इतना आसान नहीं होगा.
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अब बात करें कि भाजपा आखिर किस बिना पर नीतीश को आंखें दिखाने का साहस दिखा पा रही है. भाजपा जानती है कि महागठबंधन भी नीतीश को सीएम फेस घोषित करने को तैयार नहीं होगा. बार-बार पाला बदलने के चलते आम लोगों में उनकी विश्वसनीयता पहले ही कम हो चुकी है. इसलिए नीतीश एक और पालाबदल का जोखिम नहीं उठा सकते. यदि पाला बदल भी लिया तो नीतीश को इससे कुछ खास हासिल होने की संभावना नहीं है. मतलब ये कि नीतीश के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं. भाजपा की हालत ऐसी नहीं है. राज्यों में हुए चुनावों में मिली कामयाबी से पार्टी का आत्मविश्वास आसमान पर है. लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को अच्छी सफलता मिली थी. इस साल के बजट में बिहार के लिए कई ऐलान कर भाजपा ने अपनी रणनीति का पहला संकेत दिया था. तीन दिन पहले हुए कैबिनेट फेरबदल में भाजपा की रणनीति और भी स्पष्ट हो गई. भाजपा ने सात नए मंत्री बनाए जिनमें से एक भी यादव नहीं है. सात में से चार मंत्री मिथिलांचल क्षेत्र के हैं जहां से भाजपा के करीब एक-तिहाई सांसद जीते थे. यादव को मंत्री नहीं बनाकर भाजपा ने यह मान लिया है कि यादव वोट राजद के खाते में जाएगा, लेकिन एससी, एसटी, ओबीसी की अन्य जातियों और सवर्णों के वोट बैंक पर पार्टी अपना दावा ठोक रही है. रोचक ये है कि नीतीश कुमार भी इसी वोट बैंक के सहारे इतने सालों से मुख्यमंत्री बने हुए हैं. मतलब ये कि नीतीश ने एनडीए छोड़ा तो चुनाव में भाजपा के साथ उनकी सीधी भिड़ंत होगी.
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'सीएम का फैसला संसदीय बोर्ड करेगा', दिलीप जायसवाल के बयान के क्या मायने, कहीं नीतीश को साइडलाइन करने की तैयारी तो नहीं