First Aircraft Factory in India: भारत में हवाई यात्रा का एक लंबा इतिहास रहा है. 18 फरवरी 1911 को पहली वाणिज्यिक विमानन उड़ान से लेकर 1931 में नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) की स्थापना और 1932 में शुरू की गई भारत की ध्वजवाहक एयर इंडिया तक हवाई यात्रा ने कई चरण देखे हैं. पिछले दो दशकों में हवाई यातायात में भारी वृद्धि देखी गई है. इसमें नागरिक और सैन्य दोनों तरह के विमान शामिल हैं. 1947 में भारत की आजादी के बाद से, भारत ने विमानन के क्षेत्र में बड़ी प्रगति की है और अपने स्वयं के विमान बना रहा है. भारत की इस विमान प्रगति को देखते हुए यह जानना भी जरूरी है कि भारत में पहली विमान फैक्ट्री किसने बनाई थी? यहां जानें उस शख्स के बारे में सारी जानकारी.
क्या था उस शख्सियत का नाम?
उनका नाम वालचंद हीराचंद दोशी है, जो एक भारतीय उद्योगपति थे जिन्होंने वालचंद समूह की स्थापना की थी. उन्हें 'भारत में परिवहन का जनक' भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने मैसूर साम्राज्य के कृष्ण राजा वाडियार चतुर्थ के साथ मिलकर 23 दिसंबर 1940 को बैंगलोर (अब बेंगलुरु कहा जाता है) में हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड (HAL) की स्थापना की थी. वालचंद हीराचंद कंपनी के अध्यक्ष बने और इसका कार्यालय डोम्लुर रोड पर 'इवेंटाइड' नामक बंगले में खोला गया.
वालचंद समूह की स्थापना
वालचंद ने वालचंद समूह की स्थापना की और भारत का पहला आधुनिक शिपयार्ड, पहला विमान कारखाना और पहला कार कारखाना स्थापित किया. उन्होंने निर्माण कंपनियां, गन्ना बागान, चीनी कारखाने, कन्फेक्शनरी, इंजीनियरिंग कंपनियां और कई अन्य व्यवसाय भी स्थापित किए. उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री हासिल की. बाद में उन्होंने पुणे में डेक्कन कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन बैंकिंग और कपास व्यापार के अपने पारिवारिक व्यवसाय में शामिल होने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी.
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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा
बाद में, वे एक पूर्व रेलवे क्लर्क के साथ साझेदारी में एक निर्माण ठेकेदार बन गए. उनका सबसे बड़ा ग्राहक ब्रिटिश सरकार थी और वे एक सफल रेलवे ठेकेदार साबित हुए जो अन्य व्यावसायिक विचारों के लिए भी खुले थे. हीराचंद सरकार के अन्य विभागों में ठेकेदार बन गए और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का भी समर्थन किया. 1947 तक, वालचंद समूह की कंपनियां देश के 10 सबसे बड़े व्यापारिक घरानों में से एक थीं. 1949 में उन्हें स्ट्रोक हुआ और अगले साल उन्होंने व्यवसाय से संन्यास ले लिया. अप्रैल 1953 में गुजरात में उनका निधन हो गया. वालचंद अपनी महत्वाकांक्षा और दूरदर्शिता के लिए जाने जाते थे और उनका बहुत सम्मान किया जाता था.
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