डीएनए हिंदी: मध्य प्रदेश में जब भी चुनाव होते हैं तो चंबल के डाकुओं का जिक्र जरूर आता है. मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ताल ठोंककर कहते हैं कि जब वह पहली बार सीएम बने तो राज्य में डाकुओं का आतंक था लेकिन अब वे डाकू खत्म हो गए हैं. दशकों तक बीहड़ों में छिपने वाले डाकुओं पर लूट और हत्या के कई मुकदमे थे लेकिन अब यहां डाकुओं का आतंक नहीं है. कई डाकू ऐसे भी हैं जो आम लोगों के बीच घूमते भी दिख जाते हैं. हालांकि, चुनावी समर में अलग-अलग मुद्दों के साथ-साथ चंबल के ये डाकू भी हर बार चर्चा में आते हैं. कई बार तो इन्हें टीवी डिबेट में भी देखा जा सकता है और कुछ डाकू राजनीति में भी सक्रिय हैं.
 
चबंल के बीहड़ों में अब सन्नाटा पसरा हुआ है. डाकुओं के सरेंडर की मुहिम 70 के दशक में शुरू हुई जिसके बाद कई बड़े-बड़े गिरोह के डाकुओं ने आत्मसमर्पण कर दिया. इन्हीं में से एक गिरोह था डाकू माधो सिंह का जो अपने समय का सबसे बड़ा और खतरनाक गिरोह था. माधो सिंह के बेहद करीबी रहे डाकू बहादुर सिंह ने भी पूरे गिरोह के साथ 14 अप्रैल 1972 को आत्मसमर्पण कर दिया था. बहादुर सिंह के ऊपर पुलिस ने इनाम भी रखा  था. बागी बनने से पहले बहादुर सिंह फौज में थे. भाइयों के बीच ज़मीन विवाद के चलते उन्होंने बंदूक उठा ली और बीहड़ का रूख कर लिया.

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'सरकार ने पूरे नहीं किए वादे'
आत्मसमर्पण के बाद करीब 5 साल बहादुर सिंह ने जेल की सजा काटी और अब वह अपने परिवार के साथ मुरैना के जौरा के पास रिझौनी नाम के गांव में रहते हैं. उनकी पत्नी, तीन बेटे, बहुएं और पोते-पोती सब एक साथ गांव के झोपड़ीनुमा मकान में रहते हैं. बहादुर सिंह बताते हैं, 'सरेंडर के समय सरकार ने जो वादे किए थे उन्हें पूरा तो किया लेकिन ना जमीन का मसला हल हुआ और ना ही कोई रोजगार मिल पाया.' उनका कहना है कि वह अपने बच्चों को हमेशा यही कहते हैं कि कभी गलत रास्ता मत पकड़ना जो गलती उन्होंने की वह उनके बच्चे ना करें. हालांकि, वह अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता भी जताते हैं.

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बहादुर सिंह की पत्नी बताती हैं कि जब डाकू से शादी की बात सुनी तो थोड़ा डर लगा था लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया. हालांकि, घर की हालत और सरकारी योजनाओं का लाभ ना मिलने के कारण उन्हें भविष्य की चिंता भी सताती है कि कहीं उनके बच्चे गलत राह न पकड़ लें. 

राजनीति में सक्रिय हैं मलखान सिंह
एक ओर बहादुर सिंह लगभग गुमनामी की ज़िन्दगी जी रहे हैं तो एक समय में बीहड़ में डर का पर्याय बन चुके पूर्व डाकू मलखान सिंह सियासत में हाथ आज़माकर आज भी चर्चा का विषय बने हुए हैं. मलखान सिंह ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने अपने गिरोह के साथ 1982 में आत्मसमर्पण किया था. उस वक्त बीहड़ में सबसे बड़ा गिरोह मलखान सिंह का ही हुआ करता था. मलखान सिंह ग्वालियर में अपने परिवार के साथ रहते हैं. जब जी न्यूज की टीम उनके घर पहुंची तो वह एक आम इंसान की तरह अपने मोहल्ले वालों के साथ घर के सामने बन रही सड़क का मुआयना कर रहे थे.

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मलखान सिंह ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत बीजेपी के साथ की लेकिन अब उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया है. उनका कहना है कि बीजेपी ने जनता के साथ हमेशा धोखा किया है. वह चुनाव नहीं लड़ना चाहते लेकिन कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करेंगे. मलखान सिंह ने बीहड़ में रहने के दौरान महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार और अत्याचार करने वालों के खिलाफ चेतावनी जारी की हुई थी लेकिन बीहड़ से बाहर आने के इतने साल बाद महिलाओं की सुरक्षा की स्थिति देखकर उन्हें चिंता होती है. इसके लिए वह सरकार को ही जिम्मेदार ठहराते हैं.

जिन डाकुओं के नाम से कभी लोग सिहर जाते थे आज वो ही डाकू आम लोगों के बीच आम आदमी की तरह जी रहे हैं. हालांकि, उनके मन में इस बात को लेकर दुविधा भी है कि कहीं गरीबी और शिक्षा के अभाव में आगे आने वाली पीढ़ियां बंदूक ना उठा लें.

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चंबल में फैला रखा था आतंक, अब कहां हैं बीहड़ों के खूंखार डाकू?
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चंबल में फैला रखा था आतंक, अब कहां हैं बीहड़ों के खूंखार डाकू?

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