यूपीएससी ने विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, उप सचिव और निदेशकों के 45 पदों पर लेटरल एंट्री के तहत भर्तियां निकाली हैं. बिना यूपीएससी की परीक्षा दिए अधिकारी बनने का ये अच्छा मौका है.
हालांकि, इस मामले में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सवाल उठाए हैं. साथ ही इसे देश विरोधी कदम' बताया है. उन्होंने कहा कि ऐसा करके 'खुलेआम आरक्षण छीना जा रहा है.'
क्या होती है लेटरल एंट्री
लेटरल एंट्री में उम्मीदवारों का चयन सिर्फ इंटरव्यू के आधार पर किया जाता है. यूपीएससी में लेटरल एंट्री की शुरुआत साल 2018 में हुई थी. इसे डाएरेक्ट एंट्री भी कहते हैं. सरकार का कहना था कि निजी क्षेत्र के अनुभवी उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों को भी विभिन्न सरकारी विभागों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उपसचिव स्तर के पदों पर नियुक्त किया जाए, ताकि ब्यूरोक्रेसी को और गति मिले. इस सोच के साथ 2018 में ब्यूरोक्रेसी में लेटरल एंट्री की शुरुआत हुई और इसके तहत पहली बार सिर्फ इंटरव्यू के तहत विभिन्न सरकारी विभागों में संयुक्त सचिव के 9 पदों पर निजी क्षेत्र के उच्चाधिकारियों को चुना गया.
विपक्ष ने साधा निशाना
हालांकि विपक्ष ने यूपीएससी की इस भर्ती प्रक्रिया को लेकर विरोध शुरू करते हुए इसे देश विरोधी कदम बताया है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव से लेकर मायावती और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने भी इसकी निंदा की है. बसपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी सरकार के इस फैसले को गलत ठहराया है. उन्होंने 'एक्स' पर लिखा, 'केंद्र में संयुक्त सचिव, निदेशक एवं उपसचिव के 45 उच्च पदों पर सीधी भर्ती का निर्णय सही नहीं है, क्योंकि सीधी भर्ती के माध्यम से नीचे के पदों पर काम कर रहे कर्मचारियों को पदोन्नति के लाभ से वंचित रहना पड़ेगा.''
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क्या होती है UPSC की लेटरल एंट्री? सिविल सेवा में इसके तहत भर्ती निकालने पर विपक्ष ने क्यों उठाए सवाल