डीएनए हिंदी: मध्य प्रदेश के वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने विंध्य क्षेत्र की 30 सीटों में से 24 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इस क्षेत्र का सियासी इतिहास ऐसा रहा है, जहां से अलग-अलग विचारधारा वाले दलों को मौका मिला है. कांग्रेस की नजर इस बार के चुनाव में इस क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करने पर है जबकि आम आदमी पार्टी (आप) राज्य में पहली जीत दर्ज करना चाहेगी. इस बार के विधानसभा चुनाव में राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस अपनी स्थिति में सुधार करने की कोशिश में है. आइए समझते हैं कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर दलों का क्या समीकरण है.
राज्य के सियासी तस्वीर में अपेक्षाकृत नया दल - आम आदमी पार्टी (आप) भी इस क्षेत्र से विधानसभा में प्रवेश की उम्मीद लगाए बैठी है. आम आदमी पार्टी की इस क्षेत्र से उम्मीद का कारण भी है. इस क्षेत्र से 1991 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का राज्य से पहला लोकसभा सदस्य चुना गया था और साथ में वाम दल को चुनावी राजनीति में प्रतिनिधित्व मिला था. उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे इस क्षेत्र में 30 विधानसभा सीटें हैं और यह मध्य प्रदेश के नौ पूर्वी जिलों - रीवा, शहडोल, सतना, सीधी, सिंगरौली, अनुपपुर, उमरिया और मैहर और मऊगंज जिलों में फैला हुआ है. वर्ष 2018 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करने में असफल रही थी और 30 में से केवल छह सीट जीत पाई थी, जबकि भाजपा ने प्रभावशाली प्रदर्शन करते हुए 24 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी.
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आप ने जीती थी महापौर की सीट
आप ने 2022 में इस क्षेत्र के सिंगरौली शहर की महापौर की सीट जीतकर विंध्य क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज की थी. महापौर और आप की प्रदेश इकाई की अध्यक्ष रानी अग्रवाल अब सिंगरौली विधानसभा से भी अपनी किस्मत आजमा रही हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाले राजनीतिक दल की इस क्षेत्र से उम्मीदें होना स्वाभाविक है, क्योंकि यहां से प्रदेश में तीन बार बसपा सांसद चुनने का इतिहास है. बसपा के इस क्षेत्र से तीन बार लोकसभा सदस्य चुने गए हैं , रीवा निर्वाचन क्षेत्र से 1991 में भीम सिंह पटेल, 1996 में बुद्धसेन पटेल और 2009 में देवराज सिंह पटेल. मायावती के नेतृत्व वाली पार्टी ने गुढ़ विधानसभा सीट से 1993 और 1998 में दो बार जीत हासिल की और उसके उम्मीदवार आईएमपी वर्मा 1993 से 2003 तक लगातार तीन बार मऊगंज से विजयी रहे. बसपा उम्मीदवार सुखलाल कुशवाह ने 1996 में सतना लोकसभा सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह को हराया था. क्षेत्र की राजनीतिक विविधता इस तथ्य से भी स्पष्ट होती है कि इसने राम लखन शर्मा को 1993 और 2003 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के उम्मीदवार के रूप में और 1990 में जनता दल के टिकट पर रीवा जिले की सिरमौर विधानसभा सीट से चुना. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के विशंभर नाथ पांडेय 1990 में गुढ़ से विधायक चुने गए थे.
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नई पार्टी के साथ मैदान में हैं पूर्व बीजेपी विधायक
मैहर के पूर्व भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी द्वारा नवगठित राजनीतिक दल विंध्य जनता पार्टी क्षेत्र की विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहा है. त्रिपाठी 2003 में समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर विधानसभा के लिए चुने गए थे. आप की चुनावी संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय संयुक्त सचिव पंकज सिंह ने बताया कि उनका संगठन राज्य विधानसभा में प्रवेश के लिए इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. आप ने अब तक राज्य भर में 70 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है, जिनमें से 17 विंध्य से हैं. सिंह ने कहा कि इस बार विधानसभा में उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हमारी कोशिशें जारी हैं लेकिन अंततः यह मतदाताओं पर निर्भर करता है. विंध्य क्षेत्र में नए राजनीतिक विचारों को अपनाने का इतिहास रहा है इसलिए राज्य के अन्य हिस्सों के साथ-साथ इस क्षेत्र पर भी ध्यान केंद्रित होगा.
विंध्य का दौरा कर चुके हैं दिल्ली सीएम
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ अपनी पार्टी के प्रचार के लिए इस क्षेत्र का दो बार क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं. मान ने आप उम्मीदवारों के समर्थन में अलग से कई सार्वजनिक सभाएं भी की हैं. वरिष्ठ पत्रकार और इस क्षेत्र पर गहरी नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक जयराम शुक्ला कहते हैं कि आजादी के बाद विंध्य में जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव जैसे दिग्गजों के नेतृत्व वाले समाजवादी आंदोलन का गहरा प्रभाव रहा है. शुक्ला ने कहा कि आजादी के बाद शुरुआती चुनावों में विंध्य की कुछ सीटें सोशलिस्ट पार्टी ने भी जीती थीं. इस क्षेत्र की विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं को अपनाने की प्रवृत्ति के बारे में बात करते हुए, शुक्ला ने कहा कि क्षेत्र के युवा शुरू में समाजवादी हस्तियों से प्रभावित थे. उन्होंने कहा कि नतीजा यह हुआ कि आजादी के बाद इस क्षेत्र में सीधी जिले की सभी आठ विधानसभा सीटों और दो संसदीय क्षेत्रों में कांग्रेस हार गई थी. क्षेत्र में राजनीतिक उन्होंने कहा कि जागरूकता का श्रेय मुख्य रूप से मजबूत समाजवादी आंदोलन को दिया जा सकता है, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), आदिवासियों और दलितों की भागीदारी देखी गई, जबकि ऊंची जातियां आजादी के बाद कांग्रेस के साथ रहीं. शुक्ला ने कहा कि भाजपा ने राज्य की सत्ता में आने के बाद इस क्षेत्र में पिछड़ा वर्ग, आदिवासियों और दलितों के बीच अपना आधार बढ़ाया.
बीजेपी के पास है पिछड़ा वर्ग का एक बड़ा आधार
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के पास पिछड़ा वर्ग का एक बड़ा आधार है और इस दल की सरकार द्वारा हालिया वर्षों से शुरू हुई. कल्याणकारी योजनाओं का आगामी चुनावों के परिणाम पर प्रभाव हो सकता है. विंध्य से आने वाले राज्य भाजपा के मीडिया सेल के सह-प्रभारी अनिल पटेल ने दावा किया कि राज्य सरकार और केंद्र द्वारा विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन को देखते हुए, उनकी पार्टी क्षेत्र में 24 से 25 सीटें जीतकर 2018 के प्रदर्शन को दोहराएगी. दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस महासचिव गुरमीत सिंह मंगू कहते हैं कि मध्य प्रदेश के बाकी हिस्सों की तरह विंध्य क्षेत्र में भी कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है. उन्होंने कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूं कि इस बार कांग्रेस विंध्य क्षेत्र में 22 सीटें (30 में से) जीतेगी. वर्तमान राज्य सरकार के खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर है. अन्य दलों के लिए कोई गुंजाइश नहीं है. भाजपा ने विधानसभा चुनाव में विंध्य क्षेत्र में दो मौजूदा लोकसभा सदस्यों - सतना से गणेश सिंह और सीधी से रीति पाठक को मैदान में उतारा है. राज्य की 230 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव 17 नवंबर को होगा और मतगणना 3 दिसंबर को होगी. (इनपुट - भाषा पीटीआई)
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2018 में भाजपा ने जीती थीं अधिकतर सीटें, समझिए विंध्य क्षेत्र का चुनावी समीकरण