डीएनए हिंदीः सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने तलाक-ए हसन (Talaq e Hasan) को लेकर दाखिल एक याचिका पर सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले को देखकर प्रथम दृष्टया लगता है कि यह अनुचित नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इसमें महिलाओं के पास भी खुला का विकल्प मौजूद हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 29 अगस्त तक के लिए टाल दी है. इस मामले की सुनवाई जस्टिस संजय कौल की कोर्ट में हो रही है.  

'ये मुद्दा एजेंडा ना बने'
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस मामले को अभी और देखने की जरूरत है. अभी तक जो तथ्य सामने आए हैं उन्हें देखकर नहीं लगता है कि इसमें कुछ अनुचित है. कोर्ट ने कहा कि आप ये बताएं कि आप सहमति से तलाक के लिए तैयार है या नहीं. कोर्ट ने याचिकाकर्ता महिला से ये भी पूछा कि 'वो इस मामले को लेकर सीधा सुप्रीम कोर्ट क्यों आई हैं? इस मामले को लेकर हाई कोर्ट गए या नहीं. क्या ऐसे और मामले भी लंबित हैं?' जस्टिस संजय किशन कौल ने यह भी कहा कि मैं नहीं चाहता कि यह मुद्दा किसी और वजह से एजेंडा बने. 

ये भी पढ़ेंः तलाक-ए-हसन क्या है? मुस्लिम महिलाएं क्यों कर रही हैं इसे खत्म करने की मांग 

क्या है मामला
सुपरीम कोर्ट में गाजियाबाद की रहने वाली आठ महीने के बच्चे की मां बेनजीर ने याचिका दाखिल की है. महिला को उसके पति ने तलाक-ए हसन के तहत नोटिस भेजे थे जिसे उसने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. याचिका में तलाक-ए-हसन और एकतरफा तलाक के सभी तरीकों को गैर कानूनी घोषित करने की मांग की है. पीड़िता की ओर से एकतरफा तलाक के सभी तरीकों को गैर-कानूनी घोषित करने की मांग की है.  

क्या है तलाक-ए-हसन?
तीन तलाक की तरह तलाक-ए-हसन भी तलाक देने का एक तरीका है. इसमें शादीशुदा मर्द तीन महीने में तीन बार एक निश्चित अंतराल के बाद तलाक बोलकर रिश्ता तोड़ सकता है. तलाक का यह तरीक भी तीन तलाक की तरह एकतरफा ही है. खास बात यह है कि इसमें एक ही बार में तीन बार तलाक नहीं बोला जाता है. तलाक-ए-हसन में शौहर अपनी बीवी को तीन महीने में एक-एक कर तीन बार तलाक बोलता है. तीन महीने पूरे होने और आखिरी बार तलाक बोलने पर दोनों के बीच रिश्ता खत्म हो जाता है. 

ये भी पढ़ेंः  आजादी से पहले कैसा था अखंड भारत, कितने देश थे हिस्सा, कब-कब हुए अलग, जानें सबकुछ

क्या है तलाक-ए-हसन की प्रक्रिया
तलाक-ए-हसन में तलाक तो तीन बार बोला जाता है लेकिन इनके बीच एक-एक महीने का फासला होता है. यानी एक बाद तलाक बोलने के एक महीने बाद दूसरी बार तलाक बोला जाता है और उसके एक महीने बाद तीसरी बार तलाक बोला जाता है. तीसरी बार तलाक बोलने के बाद तीन तलाक की तरह इसमें भी शादी खत्म हो जाती है. अगर इस बीच शौहर और बीवी में सुलह हो गई या अंतरंग संबंधों में सहवास करना या साथ रहना शुरू कर देते हैं, तो तलाक को रद्द कर दिया जाता है. तलाक-ए-हसन का एक नियम यह भी है कि इसे तब प्रयोग किया जाना चाहिए जब बीवी को मासिक धर्म नहीं हो रहा हो. इसमें संयम, या ‘इद्दत’ 90 दिनों यानी तीन मासिक चक्र या तीन चंद्र महीनों के लिए तय है.  

ये भी पढ़ेंः एक देश-एक चुनाव से देश को कितना फायदा कितना नुकसान? जानें हर सवाल का जवाब 

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला  
तलाक-ए-हसन का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. इस मामले में जनहित याचिका (PIL) दाखिल की गई है. इसमें तलाक-ए-हसन को मनमाना, तर्कहीन और अनुच्छेद 14, 15 का उल्लंघन करने के लिए शून्य और असंवैधानिक घोषित करने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई. याचिका में कहा गया है कि तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत की तरह यह भी एकतरफा है. बता दें कि शायरा बानो बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 2017 में तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. 

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर. 

Url Title
Talaqe Hasan Important comment of Supreme Court said- prima facie it does not seem to be wrong
Short Title
तलाक-ए हसन पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, कहा- प्रथम दृष्टया नहीं लगता ये गलत
Article Type
Language
Hindi
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
Supreme Court
Caption

Supreme Court (Photo-PTI)

Date updated
Date published
Home Title

तलाक-ए हसन पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, कहा- प्रथम दृष्टया नहीं लगता ये गलत है