डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट ने (Supreme Court) माओवादियों से कथित लिंक की वजह से दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा (GN Saibaba) और पांच अन्य लोगों को बरी करने के फैसले पर रोक लगा दी है. बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन्हें राहत देते वक्त मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं किया गया.
शारीरिक रूप से अशक्त और पूरी तरह व्हीलचेयर पर आश्रित साईबाबा की उम्र 52 साल है. वह गिरफ्तारी के बाद आठ साल से ज्यादा से नागपुर केंद्रीय जेल में बंद हैं और फिलहाल वह जेल में ही रहेंगे क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने भी पांच दोषियों की रिहाई पर रोक लगा दी थी. दोषियों में से एक की मौत हो चुकी है.
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देश की संप्रभुता और अखंडता का सवाल!
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने शनिवार को इस मामले की सुनवाई की. जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने कहा कि निचली अदालत ने जिन अपराधों के लिए आरोपियों को दोषी ठहराया है, वे गंभीर एवं देश की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले की विस्तारपूर्वक समीक्षा करने की आवश्यकता है, क्योंकि हाई कोर्ट ने दोषियों के खिलाफ लगे आरोप की गंभीरता समेत मामले के गुण-दोष पर गौर नहीं किया. कोर्ट ने शारीरिक अशक्तता और स्वास्थ्य स्थिति के कारण जेल से रिहा करने और घर में नजरबंद करने के साईबाबा के अनुरोध को खारिज कर दिया.
क्या थी महाराष्ट्र सरकार की दलील?
महाराष्ट्र सरकार ने इस अनुरोध का विरोध करते हुए कहा था कि आज कल ‘शहरी नक्सलियों’ के घर में नजरबंद होने की मांग करने की नई प्रवृत्ति पैदा हो गयी है. कोर्ट ने, हालांकि इस मामले में साईबाबा को नए सिरे से जमानत याचिका दायर करने की अनुमति दे दी.
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हाई कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले में साईबाबा और अन्य को बरी कर दिया था. पीठ ने मामले में साईबाबा समेत सभी आरोपियों की जेल से रिहाई पर रोक लगा दी. बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने उन्हें जेल से रिहा करने का आदेश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों निलंबित किया रिहाई का आदेश?
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील पर साईबाबा और अन्य को नोटिस जारी किए. कोर्ट ने कहा है कि 8 दिसंबर तक जवाब दाखिल कर दिया जाए. कोर्ट ने इस मामले के सभी आरोपियों को जेल से रिहाई पर रोक लगा दी.
कोर्ट ने 14 अक्टूबर के आदेश को निलंबित करते हुए कहा, 'आरोपियों को सबूतों के गुण-दोष की विस्तृत विवेचना के बाद दोषी ठहराया गया था. अपराध बहुत गंभीर हैं, जो भारत के समाज, संप्रभुता एवं अखंडता के हितों के खिलाफ हैं. उच्च न्यायालय ने इन सभी पहलुओं पर गौर नहीं किया और यूएपीए के तहत अनुमति के आधार पर आदेश पारित किया.'
सामाजिक कार्यकर्ताओं और वामपंथी संगठनों के एक वर्ग ने शीर्ष अदालत के फैसले पर निराशा जाहिर की है और उन्हें चिकित्सा उपचार के लिए जमानत देने का आग्रह किया. छात्र संगठन भी इस फैसले का विरोध कर रहे हैं.
क्या है महाराष्ट्र सरकार का रिएक्शन?
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शीर्ष न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि यह उन पुलिसकर्मियों के परिवारों को राहत मुहैया करेगा, जो नक्सली हमलों में शहीद हो गये हैं. फडणवीस ने कहा, 'मैं प्रो. जी एन साईबाबा को लेकर उच्च न्यायालय के आदेश को निलंबित करने संबंधी शीर्ष अदालत के फैसले से संतुष्ट हूं. कल, मैंने कहा था कि उच्च न्यायालय का फैसला हमारे लिए आश्चर्यजनक और चौंकाने वाला था, क्योंकि तकनीकी आधार पर एक व्यक्ति को रिहा करना, जिसके खिलाफ सीधे माओवादियों की मदद करने के पर्याप्त सबूत थे, गलत था. इसलिए, हमने कल ही सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.'
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सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा कि मामले में कुछ परेशान करने वाली बातें हैं और साईबाबा जम्मू कश्मीर में एक सशस्त्र अलगाववादी आंदोलन चलाने, देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने के खिलाफ युद्ध छेड़ने और माओवादी कमांडर्स की बैठकों की व्यवस्था करने समेत विभिन्न गतिविधियों में शामिल थे. वह उनका मास्टरमाइंड था और उनकी विचारधारा को लागू करता था. (इनपुट: भाषा)
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DU के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा की रिहाई पर क्यों लगी 'सुप्रीम रोक'? समझें फैसले की बारीकियां