डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जाति आधारित गणना के अन्य आंकडें को प्रकाशित होने से रोकने से इनकार कर दिया है. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि हम राज्य सरकार को कोई नीतिगत निर्णय लेने से रोक नहीं सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है. जातीय सर्वे के सभी पहलू पर विचार करना होगा. बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने 2 अक्टूबर को जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी किए थे. सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में जनवरी 2024 में सुनवाई करेगा.
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की तरफ से जातिगत सर्वे अन्य आकंड़ों को जारी करने से रोकने की मांग की गई थी. जिसपर जस्टिस संजीव खन्ना और एसवीएम भट्टी की पीठ ने आज सुनवाई की. पीठ ने कहा कि हम किसी राज्य सरकार को नीति बनाने या काम करने से कैसे रोक सकते हैं. हम उसकी समीक्षा कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने विस्तृत आदेश पारित किया है. हमें भी विस्तार से सुनना होगा. यह सही है कि सरकारी योजनाओं के लिए आकंड़े जुटाना जरूरी है.
सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस किया जारी
सुप्रीम कोर्ट ने पटना उच्च न्यायलाय के एक अगस्त के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक औपचारिक नोटिस जारी किया. हाईकोर्ट ने बिहार में जाति सर्वेक्षण की मंजूरी दी थी. शीर्ष न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं की उन आपत्तियों को खारिज कर दिया कि राज्य सरकार ने कुछ आंकड़ें प्रकाशित कर स्थगन आदेश की अवहेलना की और मांग की कि आंकड़ों को प्रकाशित किए जाने पर पूर्ण रोक लगाने का आदेश दिया जाना चाहिए.
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याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि मामले में निजता का उल्लंघन किया गया और उच्च न्यायालय का आदेश गलत है. इस पर पीठ ने कहा कि चूंकि किसी भी व्यक्ति का नाम तथा अन्य पहचान प्रकाशित नहीं की गई है तो निजता के उल्लंघन की दलील संभवत: सही नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अदालत के लिए विचार करने का इससे ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा आंकड़ों का विवरण और जनता को इसकी उपलब्धता है.
बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले दो अक्टूबर को अपने जाति सर्वेक्षण के आंकड़ें जारी कर दिए थे. इन आंकड़ों से पता चला है कि राज्य की कुल आबादी में 63 प्रतिशत जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की है.
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बिहार में जातिगत सर्वे पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, जारी किया नोटिस